इन आंकडों पर कौन न मर जाए ऐ खुदा

– राकेश अचल


इस देश में अब सब कुछ चौंकाने वाला हो रहा है। चुनाव पूर्व सर्वे हों या मतदान के बाद के सर्वे। सब चौंकाने वाले होते हैं। सर्वे गलत हों या सही, लेकिन कोई इसके लिए जिम्मेदार नहीं होता। सर्वे का काम लोगों को भरमाना और अपने प्रायोजक का नफा-नुक्सान देखना भर होता है। सर्वेक्षणों के झूठ-सच पर निगाह रखने के लिए देश में कोई नियामक आयोग नहीं है। अब एक नया सर्वे आया है पीरियोडिक लेबर फोर्स के इस सर्वे के मुताबिक हमारा प्यारा मध्य प्रदेश अकेला ऐसा प्रदेश है जहां बेरोजगारी न के बराबर है यानि मात्र एक फीसदी।
नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस द्वारा जुलाई 2023 से जून 2024 के लिए जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की सालाना रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफपीआर) 2023-24 के दौरान सात साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। ये सर्वे किसी गोदी मीडिया का नहीं है, बल्कि सरकार का है, इसलिए इसके ऊपर उंगली उठाने में भी संकोच होता है, लेकिन इस सर्वे के नतीजे हकीकत और अफसाने जैसे हैं, इसलिए उंगलियां अपने आप उठाई जाती हैं।
दरअसल इस सर्वे की रिपोर्ट जारी करने के समय को लेकर ही पहला सवाल उठाया जा सकता है कि ये सर्वे हरियाणा विधानसभा के चुनावों के ठीक 11 दिन पहले आया है। सर्वे का दावा है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में घटी है, अर्थात सबसे ज्यादा रोजगार हरियाणा ने दिए हैं। रिपोर्ट कहती है कि 2023-2024 में हरियाणा में बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी है, जो बीते साल छह प्रतिशत से ज्यादा थी। जाहिर है की ये रिपोर्ट साबित करना चाहती है कि हरियाणा की डबल इंजिन की सरकार ने बीते साल में हरियाणा में सबसे जयादा रोजगार मुहैया कराए हैं। सर्वे रिपोर्ट पर आप यकीन करें या न करें ये अलग बात है, लेकिन सरकार तो अपना काम कर रही है, सर्वे के मुताबिक एक साल में इसमें 2.7 फीसदी की गिरावट आई है। हरियाणा से ज्यादा गोवा 9.7 फीसदी के बाद देश में सबसे ज्यादा थी। ये गिरावट देश के किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा है। साल 2023-24 में गोवा में बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा 8.5 फीसदी है। केरल में ये 7.2 फीसदी है। वहीं, देश की औसत बेरोजगारी दर 3.2 फीसदी है।
सर्वे तो कहता है कि मप्र देश का एकमात्र राज्य है, जहां बेरोजगारी दर एक फीसदी से भी कम यानि (0.9 प्रतिशत) फीसदी है। यानि मप्र युवाओं के लिए रोजगार के मामले में किसी स्वर्ग से कम नहीं है, इस सूची में दूसरे नंबर पर गुजरात (1.1) फीसदी और तीसरे पर झारखण्ड (1.3) फीसदी है। यानि मप्र और गुजरात की डबल इंजिन की सरकारों ने तो रोजगार देने में कमाल ही कर दिया है। मुझे याद आता है कि मप्र विधानसभा में सरकार ने भी कुछ-कुछ इसी तरह के आंकडे दिए थे। मप्र सरकार का दावा है कि 2023 की तुलना में मई 2024 तक नौ लाख 90 हजार 935 बेरोजगारों की संख्या कम हो गई है। सरकार दावा करती है कि पिछले साल 35 लाख 73 हजार बेरोजगार थे, जबकि इस साल मई 2024 की स्थिति में यह संख्या घटकर 25 लाख 82 हजार हो गई है। जबकि ताजा आर्थिक सर्वे में ये आंकडा 33 लाख से कुछ ज्यादा है।
अब सवाल ये है कि जनता इन आंकडें पर यकीन करे या जमीनी हकीकत देखे? आंकडे कुछ कहते हैं और जमीनी हकीकत कुछ और है। एलएफपीआर को जनसंख्या में काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिए उपलब्ध लोगों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है। पीएलएफएस की सालाना रिपोर्ट, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को कवर करती है, ने दिखाया कि महिलाओं के लिए एलएफपीआर 2023-24 में बढकर 41.7 फीसदी हो गया, जो पिछले साल 37 फीसदी था।
सरकारी आंकडे धोखा देते हैं या हकीकत बयान करते हैं ये कहना कठिन काम है। क्योंकि इन्हें झुठलाने के लिए जिन आंकडों की जरूरत है वे भी सरकार के ही पास होते हैं, लेकिन जनता को पता है कि आंकडे कितने हवा-हवाई हैं और कितने असली? देश के 25 राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों का लेबर पार्टिसिपेशन रेट राष्ट्रीय औसत से अधिक है। आप हैरान होंगे ये जानकर कि सिक्किम का लेबर पार्टिसिपेशन रेट यानी राज्य की कुल आबादी में काम करने या काम खोजने वाले लोग सबसे अधिक 60.5 फीसदी है। यहां महिलाओं की हिस्सेदारी 55 फीसदी और पुरुषों की 65 फीसदी है। हालांकि इस लिस्ट में डबल इंजिन की सरकार वाला बिहार 29 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है। इसके बाद यूपी (33.8) प्रतिशत और झारखण्ड (34.6) प्रतिशत का नंबर आता है। कुल आबादी में काम करने वालों की संख्या यानी वर्कर पॉपुलेशन रेशे देखें तो सिक्किम (58.2) प्रतिशत सबसे ऊपर है। छत्तीसगढ (51.3) प्रतिशत दूसरे पर है। लेबर पार्टिसिपेशन रेट के मामले में 11 प्रमुख राज्यों की सूची में छत्तीसगढ (52.8) प्रतिशत कि मान से शीर्ष पर है।
इस रिपोर्ट के आंकडे क्या हरियाणा में हांफती भाजपा को कुछ लाभ पहुंचा पाएंगे? मुझे लगता है कि शायद नहीं, क्योंकि इन आंकडों को प्रचारित कर लाभ लेने का मौका हाथ से निकल चुका है। हरियाणा में मुद्दा बेरोजगारी से ज्यादा भाजपा का कुशासन है। मजे की बात ये है कि इस सर्वे में जम्मू-कश्मीर के आंकडे नजर नहीं आते, जबकि वहां एक लम्बे समय से राष्ट्रपति शासन है और वहां बेरोजगारी कम करने की जिम्मेदारी सीधे-सीधे केन्द्र सरकार की है। मुझे याद आता है कि केन्द्र सरकार ने पिछले साल माना था कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी का ग्राफ लगातार बढ रहा है।
गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया था कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 18.3 प्रतिशत है। यह जेके प्रशासन द्वारा शुरू किए गए कई प्रयासों और पहलों के बावजूद है। गृह राज्यमंत्री ने राज्यसभा में बताया था कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के परिणामों से, अप्रैल-जून 2021 की अवधि के लिए विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी दर का अनुमान उपलब्ध नहीं था। जुलाई 2020-जून 2021 के दौरान एनएसएसओ द्वारा आयोजित पीएलएफएस, जम्मू और कश्मीर के लिए 15-29 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच सामान्य स्थिति के अनुसार बेरोजगारी दर का अनुमान 18.3 प्रतिशत था। बहरहाल देश की जनता कि सामने आंकडों की इस भूल-भुलैया में भटकने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि ये पब्लिक है, ये सब जानती है। इसे झूठे-सच्चे आंकडों की बाजीगरी से भरमाया नहीं जा सकत। यदि ऐसा होता तो जून 24 में आया जनादेश कुछ और हो होता। मुझे यकीन हैं कि ये आंकडे सरकार और सरकारी पार्टी के किसी काम आने वाले नहीं हैं।