रामलीला में हुआ नारद मोह लीला का भव्य मंचन

भिण्ड, 28 अक्टूबर। मेहगांव नगर में सरस्वती प्रांगण के सामने श्री रामलीला मैदान में श्रीश्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री रामदास जी महाराज दंदरौअ सरकार की अध्यक्षता में मां सरस्वती सामाजिक एवं धार्मिक रामलीला मण्डल द्वारा आयोजित की जा रही रामलीला में स्थानीय कलाकारों द्वारा नारद मोह की लीला का मंचन किया गया। जिसे देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध नजर आए। मथुरा से आए श्री आदर्श रामलीला मण्डल के कलाकारों ने स्वामी राघवेन्द्र चतुर्वेदी के निर्देशन में रामलीला का मंचन किया। आज रामलीला का शुभारंभ गुरुरूप भगवान भोलेनाथ की आरती के साथ हुआ। आरती कुटी सरकार के महंत श्रीधर महाराज ने की।


रामलीला में कलाकारों द्वारा कैलाश पर्वत पर मां पार्वती द्वारा रामकथा सुनने की अभिलाषा को देखते हुए भगवान भोलेनाथ अंतर्मन में लीला का दर्शन करते हुए कहा कि नारद एक जगह भगवान के भजन में इतने लीन हो जाते हैं कि इन्द्र का सिंहासन डोलने लगता है। सिंहासन जाने के भय के चलते इन्द्र नारद के तप को भंग करने के लिए कामदेव और अप्सरा को भेजते हैं। फिर भी नारद का ध्यान भंग नहीं होता है तो कामदेव नतमस्तक हो जाता हैं और नारदजी से क्षमा मांगते हैं। इसकी जानकारी होने पर नारद को अभिमान हो जाता है कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया है। इसकी जानकारी वह एक-एक करके ब्रह्मा, महेश और विष्णु को देते हैं। अभिमान को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से सुंदर नगर और सुंदर राजकुमारी विश्वमोहिनी की रचना की, जहां पहुंचकर नारद शीलनिधि राजा के आग्रह पर उनकी बेटी विश्वमोहिनी की हस्तरेखा देखते हैं। हस्तरेखा देखकर नारद विश्वमोहिनी से विवाह करना चाहते हैं और भगवान विष्णु से हरि रूप लेकर आते हैं। जबकि हरि रूप में उन्हें बंदर का रूप दिया जाता है। इस दौरान भगवान विष्णु मौके पर पहुंच जाते हैं और विश्वमोहिनी से विवाह करते हैं। यहां नारद श्राप देते हैं कि जिस प्रकार मैं एक स्त्री के लिए व्याकुल हुआ हूं। उसी प्रकार आपको (विष्णु भगवान) भी एक स्त्री के वियोग में व्याकुल होना पड़ेगा। इसके साथ ही जिस बंदर का चेहरा दिया है। ऐसे बंदर ही पृथ्वी लोक पर आपकी मदद करेंगे। इसे विष्णु भगवान स्वीकार करते हैं और बताते हैं कि यह सब तो उनकी माया थी, हृदय की शांति के लिए विष्णु भगवान शंकर का नाम जपने की शिक्षा देते हैं।