छठ पूजा के बाद आठवां वेतन आयोग का लेमनचूस

– राकेश अचल


नरेन्द्र मोदी सरकार ने 8 वें वेतन आयोग की टर्म्स ऑफ रिफरेंस यानी को मंजूरी दे दी है। सेंट्रल गवर्नमेंट के 50 लाख कर्मचारियों और 69 लाख पेंशनर्स को इस फैसले से बड़ा फायदा मिलने वाला है। वेतन बढ़ेगा, भत्ते बढ़ेंगे और रिटायर लोगों की पेंशन भी मजबूत होगी। यह सब एक जनवरी 2026 से लागू होने की उम्मीद है। यह फैसला लिया कब गया है। बिहार में 6 नवंबर से चुनाव शुरू होंगे।
केन्द्र की दूरदृष्टा सरकार 8 वेतन आयोग के लेमनचूस के जरिए बिहार ही नहीं बल्कि बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में को भी जीतना चाहती है। आने वाले दिनों में इन सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं। इन राज्यों में बड़े आकार का शासकीय कार्यबल है। इनका वोट बैंक ही इस फैसले की सबसे बड़ी कुंजी है। यही वजह है कि विपक्ष इसे साफ-साफ चुनावी दांव बता रहा है।
कोई माने या न माने लेकिन हकीकत यही है कि 8वें वेतन आयोग के नाम पर मोदीजी की सरकार ने चुनावी मोर्चे पर बड़ा तीर चलाया है, इसका लाभ सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा, पर असर वोटिंग मशीन पर दिखेगा। बिहार से लेकर बंगाल और तमिलनाडु तक सरकारी बाबुओं की खुशियों में बढ़ोतरी का सीधा जोड़ वोट बटोरने की रणनीति से लगाया जा रहा है।
सरकार की ओर से सफाई दी जा रही है कि यह नियमित प्रोसेस है। हर 10 साल में पे कमीशन आता है। 7वें कमीशन की रिपोर्ट 2016 में लागू हुई थी। अब 2026 की बारी है। लेकिन टर्म आफ रिफरेंस पास करने का वक्त दिखा रहा है कि ये सब चुनाव जीतने की चाल है। बिहार में लाखों सेंट्रल कर्मचारी वोट डालेंगे, उनके परिवार भी। इस ग्रुप में रेलवे, डिफेंस, पोस्टल, सीसुब और कई केन्द्रीय विभाग शामिल हैं। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में भी केन्द्रीय कर्मचारियों का प्रभाव काफी अधिक है। इन राज्यों में विपक्षी दल भाजपा को हमेशा कड़ी टक्कर देते हैं। इसलिए कर्मचारियों की खुशामद चुनावी रणनीति का हिस्सा बन चुकी है। सवाल ये है कि 8वें वेतन आयोग की रिपोर्ट के बारे में अभी ऐलान करने की क्या जरूरत थी? ये घोषणा 14 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भी की जा सकती थी। लेकिन छठ पूजा के फौरन बाद सरकार के पक्ष में वातावरण बननाए रखने की मजबूरी आ गई।
आंकड़ों का खेल देखें तो इसकी राजनीतिक महत्ता समझ आती है। कोई 50 लाख कर्मचारी और 69 लाख पेंशनर्स मतलब सीधे एक करोड़ से अधिक वोटर्स की जेब में फायदा पहुंचाया जा रहा है। अगर परिवारों तक इसका असर मापा निकाला जाए तो यह आंकड़ा 5 करोड़ तक पहुंच जाता है। सब जानते हैं कि वेतन बढ़ेगा तो खर्च बढ़ेगा। बाजार में भी हलचल होगी। सरकार इसे आर्थिक मजबूती बता सकती है, पर विरोधी पार्टियां इसे शुद्ध वोट बैंक मैनेजमेंट मान रही हैं।
वेतन आयोग को यह भी देखना है कि खर्च का दबाव कितना बढ़ेगा। राज्य सरकारें भी आमतौर पर सेंट्रल पे कमीशन की सिफारिशें लागू कर देती हैं। इससे उनकी फाइनेंस पर बोझ बढ़ता है। इस बार पुरानी पेंशन स्कीम के अनफण्डेड कॉस्ट पर विशेष नजर होगी। मतलब खुशियां बांटने से पहले खजाने का हिसाब भी जरूरी होगा। इस कमिशन की कमान पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज रंजना प्रभाकर देसाई के हाथ में है। आईआईएम बैंगलोर के प्रोफेसर पुलक घोष अंशकालिक सदस्य हैं। पेट्रोलियम सेक्रेटरी पंकज जैन मेंबर सेक्रेटरी हैं। 18 महीने में पूरी रिपोर्ट देनी है। जरूरत पड़ी तो अंतरिम रिपोर्ट भी आएगी। हालांकि असर दिखेगा 2026 से ही, पर मन जीतने की कोशिश अभी से होगी।
आपको बता दें कि हर छह महीने में डीए यानी मंहगाई भत्ते की समीक्षा होती है। महंगाई बढ़ेगी तो डीए भी बढ़ेगा। यह बेसिक सैलरी पर सीधे असर डालेगा। कर्मचारियों की नजर इसी पर रहेगी कि नया पे कमीशन बेसिक कितना बढ़ाता है? चुनाव के चोचलों में अभी क्या कुछ और सामने आएगा, कोई नहीं जानता। जान भी नहीं सकता।