राजनीति में जलेबी बाई की भूमिका में राहुल गांधी

– राकेश अचल


नेताओं के दिल में भी एक छोटा बच्चा बैठा रहता है, भले ही नेत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी हों या लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल राजीव गांधी हों। दोनों के मन का बच्चा भारतीय राजनीति में मिठास, परिहास, विश्वास और विश्वास घोलता रहता है। कभी-कभी सोचता हूं कि नेताओं का बचकाना व्यवहार सुखद है, तो कभी लगता है कि ये एक तरह का मुफ्त का मनोरंजन है।
राहुल गांधी ने दीपावली पर पुरानी दिल्ली में एक मिठिया की दुकान पर लड्डू और जलेबी बनाए तो मोदी जी ने आईएनएस विक्रांत पर जाकर नेवी की नीली वर्दी पहनकर अपना एक और सपना पूरा किया। राहुल ने अपने सोशल मीडिया खाते पर एक दिलचस्प वीडियो के साथ देश वासियों को दीपावली की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने यूजर्स से सवाल भी पूछा कि वे इस त्योहार को कैसे खास बना रहे हैं। राहुल गांधी ने ‘एक्सÓ पर एक वीडियो पोस्ट किया और लिखा, पुरानी दिल्ली की मशहूर और ऐतिहासिक घंटेवाला मिठाइयों की दुकान पर इमरती और बेसन के लड्डू बनाने में हाथ आजमाया।
राहुल गांधी का जलेबी प्रेम अदभुद है। वे जलेबी बनाते भी हैं, खाते भी हैं और खिलाते भी हैं। राहुल ने जलेबी बनाई तो नेता बिदक गए। लालू यादव का जेठा बेटा तेजप्रताप बोला राहुल को जलेबी बनाना उसने सिखाया है। यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी राहुल पर तंज कसा, लेकिन सियासत की कड़वाहट कम नहीं हुई। आपको याद होगा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब सोनीपत के गोहाना में जनसभा को संबोधित करने गए थे तो कांग्रेस सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने उन्हें गोहाना की जलेबी खिलाई थी। गोहाना की जलेबी की राहुल गांधी ने खूब तारीफ की थी। राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी के लिए जलेबी लेकर गए थे। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद जलेबी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ट्रेंड करने लगा। जलेबी बनाने वाले दुकानदार ने कहा कि राहुल गांधी ने जलेबी की तारीफ की थी। ये देसी घी में बनी हुई है। एक हफ्ते तक खराब नहीं होती। यह एक हफ्ते से ज्यादा ही चलती है। जब राहुल गांधी ने इसकी तारीफ की है, तो आइटम में दम होगा।
जलेबी का इतिहास वास्तव में बहुत रोचक है। यह सिर्फ भारत की मिठाई नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक यात्रा का हिस्सा है, जो अरब से फारस और फिर भारत तक फैली है। जलेबी की जड़ें पश्चिमी एशिया (मध्य पूर्व) में मानी जाती हैं। वहां इसे जलाबिया या जुलबिया कहा जाता था। जलेबी का जिक्र 13वीं सदी की अरब और फारसी रसोई की किताबों में मिलता है, जैसे- किताब-उल-तबीख और इब्न सैय्यार अल-वार्राक (10वीं सदी), किताब अल-तबीख व अल-इस्लाह, अल-बगदादी (13वीं सदी) में जुलबिया को चीनी की चाशनी में डुबोई हुई तली हुई मिठाई बताया गया है यानी बिल्कुल जलेबी जैसी।
माना जाता है कि जलेबी भारत में 13वीं-14वीं सदी में फारसी व्यापारियों और मुस्लिम शासकों के साथ आई। उस समय यह जुलबिया नाम से जानी जाती थी, जिसे बाद में भारतीयों ने जलेबी कहना शुरू किया। जलेबी शब्द संस्कृत शब्द जलवलिका या जलवलि से भी जुड़ा माना जाता है, जिसका अर्थ है- घुमावदार आकार वाली मिठाई।
सबसे पुराने भारतीय ग्रंथों में से एक, प्रसाद मंडन (15वीं सदी) में जलेबी जैसी मिठाई का उल्लेख कुंडलिका के रूप में मिलता है।’गुणाकर दीक्षित’ की गुंजनमंजरी (17वीं सदी) में भी जलेबी शब्द मिलता है। यानी 15वीं सदी तक जलेबी भारतीय रसोई में स्थापित हो चुकी थी। मुगलकाल में जलेबी शाही भोजन का हिस्सा बनी। बाद में यह आम जनता की मिठाई बन गई- उत्तर भारत में पूड़ी-जलेबी, राजस्थान में मावे की जलेबी और बंगाल में चाशनीदार जलेबी प्रचलित हुई।
भारत में जलेबी आज त्योहारों, शादियों और नाश्तों का अभिन्न हिस्सा है। जलेबी बाई, जलेबी राई जैसे मुहावरे और गाने इसकी सांस्कृतिक पहचान दिखाते हैं। हर राज्य में इसकी अपनी किस्म मिलती है, जैसे- इमरती, खमीर जलेबी, रबड़ी जलेबी आदि।
बहरहाल अब राहुल गांधी राजनीति की जलेबी बाई बन गए हैं। राहुल का जीवन जलेबी प्रेम के कारण ही सरस है। मेरे ख्याल से भारत की कड़वी राजनीति में अकेली जलेबी है जो मिठास वापस ला सकती है। देश के एक राष्ट्रपति थे डॉ. शंकरदयाल शर्मा, बड़े जलेबी प्रेमी थे। उनके कार्यकाल में मेहमानों का स्वागत छोटी छोटी जलेबियों से किया जाता था। देश के एक प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई मसककर जलेबी खाते थे, उन्हें मंगौड़े भी प्रिय थे।