क्या मुमकिन है टूटे दलों का एकीकरण?

– राकेश अचल


महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन धडों के एकीकरण की सुगबुगाहट के साथ ही ये मुद्दा भी गर्म होने लगा है कि क्या शिवसेना समेत देश के तमाम विखण्डित राजनीतिक दलों का एकीकरण मुमकिन है? क्या एकीकरण का बिस्मिल्लाह शिव सेना से ही होगा?
शिवसेना नेता और बाला साहेब के पुराने भक्त गजानन कीर्तिकर ने शिवसेना के एकीकरण का सुर्रा तब छोडा जब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की शिवसेनाओं के एकीकरण की सुगबगाहट तेज हुई। कीर्तिकर ने कहा कि बाला साहेब ठाकरे के जीवित रहते हुए भी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक करने की कोशिश हुई थी लेकिन शिवसेना का विभाजन हो गया। शिवसेना और मनसे के अलग-अलग होने से शिवसेना को नुकसान हुआ। अब समय है कि ये दोनों एक साथ आएं। ठाकरे नाम एक ब्राण्ड है और वह ब्राण्ड बना रहना चाहिए। ऐसी इच्छा पुराने शिवसैनिकों की है।
शिंदे गुट के नेता गजानन कीर्तिकर ने कहा, क्या ये दोनों (उद्धव ठाकरे-राज ठाकरे) साथ आएंगे? यह नहीं मालूम, लेकिन सुना है कि दोनों ने कुछ शर्तें रखी हैं। उद्धव ठाकरे ने कहा है कि राज ठाकरे को महायुति (बीजेपी गठबंधन) छोडना चाहिए, तो वहीं राज ने कहा है कि उद्धव को कांग्रेस का साथ छोडना चाहिए। दोनों की बातें सही हैं। गजानन कीर्तिकर ने लोकसभा चुनाव के दौरान एकनाथ शिंदे की शिवसेना के लिए प्रचार भी किया था और शिंदे की उपस्थिति में शिवसेना में दोबारा एंट्री ली थी।
महाराष्ट्र में शिवसेना के तीन हिस्से हो गए है। एक शिवसेना उद्धव ठाकरे की है, दूसरी रज ठाकरे की है और तीसरी एकनाथ शिंदे की। उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी), जो एमवीए के साथ है। एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की पार्टी एनसीपी है। एकनाथ शिंदे गुट की पार्टी शिवसेना जो महायुति के साथ है। इसमें बीजेपी, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी है। तीसरी शिवसेना राज ठाकरे की है। उनकी शिवसेना मनसे के नाम से जानी जाती है। शिवसेना पहले पारिवारिक विवाद के चलते टूटी थी बाद में भाजपा ने उद्धव ठाकरे की सेना को दो फांक कर दिया था।
कीर्तिकर का दावा है कि एकनाथ शिंदे, शिवसेना प्रमुख बाला साहेब की विचारधारा को लेकर ही पार्टी से बाहर निकले थे- जैसे हिन्दुत्व, आक्रमक शैली, राष्ट्रीयता और मराठी लोगों का सर्वांगीण विकास लेकिन बीजेपी के साथ होने की वजह से आगे बढने में उन्हें कई अडचनें आती हैं। दोनों (उद्धव-राज) की शर्तें सही हैं, क्योंकि ये बाधाएं हैं जो अखण्ड शिवसेना बनने से रोक रही हैं। जब तक ये दूर नहीं होतीं, तब तक मजबूत शिवसेना नहीं बन पाएगी।
आपको याद होगा कि एनडीए में पहले उद्धव ठाकरे की शिवसेना थी, फिर उन्होंने साथ छोडा और फिर एकनाथ शिंदे ने उसमें प्रवेश किया। दोनों बाला साहेब की विचारधारा को आगे ले जाने की बात करते हैं। लेकिन मतदाता और कार्यकर्ता बाला साहेब की शिवसेना को जानते हैं, न कि बीजेपी या कांग्रेस प्रेरित शिवसेना को। इसलिए अगर असली शिवसेना को फिर से स्थापित करना है, तो इन तीनों को (राज-उद्धव-शिंदे) अपने-अपने गठबंधन छोडने होंगे।
गजानन कीर्तिकर ने ये भी कहा, बाला साहेब खुद चाहते थे कि राज और उद्धव एक हों। उन्हें इस विभाजन के खतरे की पहले से जानकारी थी। आज अगर राज और उद्धव एक होने का रुख ले रहे हैं, तो वह अच्छा संकेत है लेकिन अगर हम फिर से बाला साहेब की प्रचण्ड, प्रभावशाली शिवसेना देखना चाहते हैं, तो उसमें एकनाथ शिंदे को भी शामिल होना चाहिए। अगर राज, उद्धव और शिंदे तीनों एक साथ आते हैं, तभी एक मजबूत शिवसेना दिखाई देगी। ये जरूरत महाराष्ट्र और शिव सैनिकों की है।
महाराष्ट्र में भाजपा ने केवल शिवसेना को ही नहीं तोडा बल्कि एनसीपी को भी तोडा। एक गुट शरद पंवार का है, दूसरा अजित पंवार का। एक गुट मविअ में है तो दूसरा एनडीए में। अब भाजपा ने शरद पंवार गुट को भी एनडीए में शामिल होने के लिए चारा डाला है। शरद पंवार भी भाजपा की ओर झुकते नजर आ रहे हैं। भाजपा के कारण मप्र में कांग्रेस टूट चुकी है। हरियाणा में भी ऐसी ही टूट जेजेपी में भी हुई। झारखण्ड में भाजपा ने झामुमो को तोडा। बिहार में भी इसी तरह की तोड-फोड प्रादेशिक दलों में हुई। सबसे ज्यादा तोड-फोड का सामना कांगेस ने किया, फिर समाजवादी दल का नंबर आता है। बंगाल में सत्तारूढ तृमूका कांग्रेस का ही उत्पाद है।
अब सवाल ये है कि भाजपा की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के शिकार अनेक दल दोबारा एक होकर भाजपा से बदला लेंगे। इस सवाल का जबाब हां भी हो सकता है और ना भी। लेकिन टूटे दलों का एकीकरण, टूटना आसान है और जुडना कठिन भी। लेकिन राजनीति भी क्रिकेट की तरह संभावनाओं का खेल है। यहां कुछ भी सकता है। यदि टूटे दलों के एकीकरण की प्रक्रिया सत्तारूढ भाजपा के लिए घातक हो सकता है।