– राकेश अचल
मप्र में शराबबंदी को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो गई है, हालांकि ये शराबबंदी अभी केवल प्रदेश के धार्मिक महत्व के गिने-चुने शहरों में ही करने की बात की जा रही है। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि राज्य सरकार नीति में सुधार कर, धार्मिक नगरों में शराबबंदी लागू करने पर विचार कर रही है। इस संबंध में साधु-संतों द्वारा दिए गए सुझावों पर राज्य सरकार गंभीर है। धार्मिक नगरों का वातावरण प्रभावित होने संबंधी शिकायतें प्राप्त होती रहती हैं। हमारा प्रयास है कि इन नगरों की पवित्रता अक्षुण्ण रहे। अत: राज्य सरकार जल्द ही निर्णय लेकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।
मप्र में पूर्ण शराबबंदी एक पुराना मुद्दा है। प्रदेश में दो दशक से ज्यादा से सत्तारूढ भाजपा की सरकार इस मामले में कोई ठोस फैसला नहीं कर पाई। इस असमंजस के पीछे आबकारी से मिलने वाला राजस्व है जो लगातार बढता ही जा रहा है। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती जब खुद 9 माह मुख्यमंत्री रहीं तब प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं कर पाई थीं, लेकिन पद से हटने के बाद उन्हें शराबबंदी की याद आई तो वे इस मुद्दे को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ आक्रामक हो गई थीं। उन्होंने आंदोलन भी किए और भोपाल में शराब की दुकान पर पथराव भी किया। लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने न तो शराबबंदी की और न ही शराब की नीति को कडा बनाया, उल्टे उन्होंने शराब की बिक्री के नए रास्ते और खोल दिए वो भी शराब की दुकानों की संख्या बढाए बिना।
आपको बता दूं कि मध्य प्रदेश में इस साल आबकारी राजस्व में रिकार्ड बढोत्तरी दर्ज की गई है। राज्य की 3600 कंपोजिट शराब की दुकानों का निष्पादन 931 समूहों में किया गया, जिससे 13 हजार 914 करोड रुपए का राजस्व मिला, जोकि पिछले वित्त साल 2023-24 के मुकाबले 12 हजार 353 करोड रुपए से 12.63 फीसदी ज्यादा है। यानि आबकारी कारोबार प्रदेश की सरकार के लिए कल्पवृक्ष की तरह है, जिसे कोई त्यागना नहीं चाहता। मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के लिए भी ये आसान नहीं है, लेकिन उन्होंने लोकप्रियता हासिल करने के लिए प्रदेश के गिने चुने शहरों में शराबबंदी लागू करने का मन बनाया है। वे सिंघस्थ से पहले उज्जैन और ओंमकारेश्वर में शराबबंदी लागू करना चाहते हैं। मुमकिन है कि बाद में इस फेहरिस्त में और भी शहरों के नाम जोड दिए जाएं।
मप्र सरकार पिछले दिनों राजस्व के एक बडे स्त्रोत परिवहन विभाग से छेडछाड कर पछता रही है। केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के दबाब के बाद मप्र सरकार ने प्रदेश से परिवहन चौकियों को हटा दिया था, लेकिन कुछ ही महीनों बाद अवैध रूप से अघोषित चौकियां शुरू कर दी गईं। ये वो ही परिवहन विभाग है इसके एक पूर्व सिपाही सौरभ शर्मा के घर से ईडी और सीबीआई ने पिछले दिनों 54 किलो सोना और करोडों की नगदी बरामद की थी। इस अवैध वसूली में प्रदेश के अनेक मंत्रियों, विधायकों और नौकरशाहों के नाम लिए जा रहे हैं, लेकिन सरकार की बदनामी के कारण जांच की रफ्तार धीमी कर दी गई है। वैसे प्रदेश में भाजपा के पूर्व विधायक के घर से भी 14 किलो सोना मिल चुका है।
जग जाहिर है कि परिवहन की तरह ही आबकारी विभाग भी अवैध और वैध कमाई का एक बडा स्त्रोत है। यहां सब काम खराम-खरामा चलता है। नीचे से ऊपर तक पैसा आता-जाता है। प्रदेश की आबकारी नीति हमेशा ठेकेदारों के हिसाब से तय की जाती है, रुपयों का लेन-देन होता है, किन्तु प्रदेश के किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके अरविंद केजरीवाल की तरह कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता। कोई गिरफ्तारी नहीं होती, कोई छापा नहीं डाला जाता।
प्रदेश में हर जिले में वृन्दावन बसाने का सपना देखने वाले मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सत्ता में आने के बाद शराब से आमदनी कम नहीं हुई बल्कि बढी है। एमपी में शराब की दुकानों के निष्पादन से साल 2023-24 में केवल 3.7 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई थी, यह वृद्धि साल 2022-23 में 11.5 प्रतिशत और साल 2021-22 में 9.06 प्रतिशत थी। इससे जाहिर होता है कि साल 2024-25 की प्राप्त 12.6 प्रतिशत की वृद्धि पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा है। ऐसे में यदि मप्र सरकार शराबबंदी की और कदम उठाती है तो उसे कोई नुक्सान होने वाला नहीं है, क्योंकि देश में जहां भी शराबबंदी है वहां शराब का समानांतर कारोबार वैध कारोबार से ज्यादा राजस्व दे रहा है। ये राजस्व सरकारी खजाने में न जाकर नेताओं और नौकरशाही के पास जाता है।
जानकार बताते हैं कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस वर्ष की आबकारी नीति में आंशिक परिवर्तन किए जा सकते हैं, ताकि उज्जैन और ओमकारेश्वर को पवित्र नगरी बताकर वहां शराबबंदी की जा सके, लेकिन इन दोनों ही शहरों में शराब की आवक रोकने के लिए सरकार कुछ कर पाएगी, ये कहना कठिन है। शराबबंदी भारत जैसे देश की जरूरत हो सकती है किन्तु किसी सरकार की जरूरत नहीं है। बिहार और गुजरात जैसे प्रदेशों में शराबबंदी के बावजूद पियक्कडों के लिए कोई संकट नहीं है। शराब दूसरे रास्तों से आसानी से मिल ही जाती है। पूर्ण शराबबंदी महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलने वाली कांग्रेस भी नहीं करा पाई थी, तब कांग्रेस के पदचिन्हों पर चलने वाली भाजपा शराबबंदी कैसे कर पाएगी, विचारणीय प्रश्न है। वैसे यदि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश में आंशिक शराबबंदी करा पाए तो ये उनकी एक बडी उपलब्धि हो सकती है। इस मुद्दे पर उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती समेत बहुत से संत-महंतों का और लाडली बहनों का भी समर्थन मिल सकता है। वैसे मै दुनिया के जितने भी देशों में गया हूं, वहां मुझे भले ही दवा न मिली हो लेकिन शराब जरूर मिली है।