मोहन की भागवत का नया अध्याय बच्चे बढाओ

– राकेश अचल


वेदव्यास की श्रीमद् भागवत कथा में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय व 12 स्कंध हैं, लेकिन आरएसएस के डॉ. मोहन भागवत की कथा में न श्लोकों की संख्या तय है और न अध्यायों की और न स्कंधों की। ये लगातार घटते-बढते रहते हैं। डॉ. मोहन भागवत की भगवत कथा भारतीय संविधान की तरह लचीली है। डॉ. भगवत ने अपनी भागवत में एक नया अध्याय जोडा है ‘तीन बच्चे पैदा करो’ का। अब उनके इस नए अध्याय से पूरा देश आल्हादित भी है और चिंतित भी।
संघ प्रमुख कहने को पशु चिकित्स्क हैं किन्तु वे मानवता से ओत-प्रोत हैं। उन्हें पशुओं से ज्यादा मनुष्यों की फिक्र रहती है। आज-कल उन्हें बहुसंख्यक हिन्दू समाज के अल्पसंख्यक होने की चिंता सता रही है, इसीलिए उन्होंने देश की जनता से आव्हान किया है कि हर कोई कम से कम तीन बच्चे तो पैदा करे ही, अन्यथा उनका वजूद मिट जाएगा। डॉ. भागवत को शायद पता नहीं है कि आज-कल बच्चे पैदा करना तो दूर शादी करना भी कठिन हो गया है। देश में बच्चों से ज्यादा बेरोजगारों की सख्या बढ रही है और बरोजगारों की शादी आसानी से नहीं होती। ये बेरोजगार तीन बच्चे पैदा करने के राष्ट्र यज्ञ में कैसे शामिल हो सकते हैं?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे अचरहिं ते नर न घनेरे।’ डॉ. भागवत इन्हीं घनेरे नरों में से एक हैं। उनको नहीं पता कि शादी करना और विवाह करना कोई आसान काम नहीं है। यदि होता तो वे खुद शादी न कर लिए होते। उनके मित्र प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने तो शादी की भी लेकिन भाग खडे हुए। वे तीन क्या, एक बच्चा भी इस देश को नहीं दे पाए। समाज की संरचना में इस लिहाज से डॉ. भागवत और मोदी जी का कोई योगदान नहीं है। इसलिए उन्हें ये कहने का भी अधिकार नहीं है कि लोग तीन बच्चे पैदा करें। इस देश को ‘हम दो, हमारे दो’ का नारा देने वाली देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने शादी भी की और दो बच्चे भी देश सेवा के लिए दिए। यानि भागवत और मोदी के मुकाबले इन्दिरा गांधी का योगदान ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सवाल ये है कि डॉ. भागवत को आबादी बढने की सलाह देने की जरूरत आखिर पडी क्यों? क्या वे समाजशास्त्री हैं? अर्थशास्त्री हैं? नहीं हैं। वे पशु चिकित्स्क हैं। इसलिए उन्हें आबादी के बारे में बात करने की न पात्रता हासिल है और न किसी ने उन्हें ये अधिकार दिया है। देश की आबादी 2024 में 144 करोड थी, जो भविष्य में घटना नहीं है, भले ही देश की प्रजनन दर घटकर 2 प्रतिशत ही क्यों न हो जाए। आबादी बढाने की फिक्र उन देशों की हो सकती है, जिन देशों में लगातार आबादी घट रही है। भारत तो जनसंख्या के मामले में विश्व चैम्पियन है। नंबर वन यानि चीन से भी आगे। इस पर भी डॉ. भागवत कह रहे हैं कि देश का काम केवल दो बच्चों से चलने वाला नहीं ही, कम से कम 3 बच्चे हर विवाहित जोडे को पैदा करना चाहिए।
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत लगता है अपने प्रधानमंत्री के हम उम्र प्रचारक तो हैं किन्तु हमें ख्याल बिल्कुल नहीं है। उन्हें प्रधानमंत्री जी की योजनाओं और चिंताओं का पता नहीं है, यदि पता होता तो वे आबादी बढाने की बात ही न करते। शायद किसी ने डॉ. भागवत को ये नहीं बताया कि इस देश में आज भी सरकार को 85 करोड लोगों को पेट भरने के लिए मुफ्त में अनाज देना पड रहा है। यानि इस आबादी के एक बडे हिस्से के पास न दो जून की रोटी है, न रहने को घर, चिकित्सा, शिक्षा और दीगर सुविधाओं की तो बात ही दूर है। ऐसे में यदि लोगों ने आबादी बढाना शरू कर दी तो ये मुफ्तखोरों की तादाद और नहीं बढा देंगे!
देश को तीन बच्चे पैदा करने का ‘गुरु मंत्र’ देने वाले डॉ. भागवत को अपना समान्य ज्ञान बढाना चाहिए, क्योंकि शायद वे नहीं जानते कि दुनिया की कुल आबादी का कोई 18 फीसदी हिस्सा तो अकेले भारत के पास है। डॉ.भागवत को पशु चिकत्सा शिक्षा के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ की वो रिपोर्ट नहीं पढाई गई होगी, जिसके मुताबिक दुनिया में दुनिया के एक अरब गरीबों में से 23 करोड से ज्यादा लोग अकेले भारत में रहते हैं। इनमें भी बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा यानि आधी है। डॉ. भागवत को ये नहीं पता कि इस वर्ष की रिपोर्ट संघर्ष के बीच गरीबी पर केन्द्रित है, क्योंकि 2023 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक संघर्ष हुए और युद्ध, आपदाओं और अन्य कारकों के कारण अब तक की सबसे अधिक संख्या यानी 11.7 करोड लोगों को अपने घरों को छोडकर विस्थापित होना पडा। इनमें मणिपुर की विभीषिका में बेघर हुए लोग शामिल नहीं हैं।
मुझे पता नहीं है कि डॉ. भागवत ने आधुनिक जनसंख्या विज्ञान किस विश्व विद्यालय से पढा है? मोहन भागवत ने कहा, आधुनिक जनसंख्या विज्ञान कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या (प्रजनन दर) 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज दुनिया से नष्ट हो जाता है जब कोई संकट नहीं होता है। इस तरह से कई भाषाएं और समाज नष्ट हो गए हैं। जनसंख्या 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए। मैं डॉ. मोहन भागवत के ज्ञान को कोई चुनौती देना नहीं चाहता, मेरी हैसियत भी नहीं है चुनौती देने की। लेकिन एक बालक बुद्धि के हिसाब से मैं भी एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की तरह जानना चाहता हूं कि वह अधिक बच्चे पैदा करने वालों को क्या देंगे। क्या वह अधिक बच्चे पैदा करने वालों के बैंक खातों में 1500 रुपए देंगे? क्या वह इसके लिए कोई योजना लाएंगे? बहरहाल तीन बच्चे पैदा करने के मश्विरे के बारे में मैं तो सोचने से रहा, क्योंकि मेरे यहां तो फुलस्टॉप लग चुका है, लेकिन जो अभी इस उद्यम में लगे हैं, वे सोचें, समझें और खुद कोई निर्णय करें। डॉ. भागवत की बातों में बिना समझे न आ जाएं, अन्यथा उनका तीसरा बच्चा भी मुमकिन है उस कतार में बैठा हो जिसे पांच किलो मुफ्त का अनाज खाकर जीवित रहना पडता है।