– राकेश अचल
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी अच्छे आदमी नहीं हैं। अच्छे आदमी इसलिए नहीं हैं क्योंकि वे दूसरों की दुखती रग पर हाथ रख देते हैं। इस बार उन्होंने गुलाम भारत के उन राजघरानों के बारे में लिख दिया जो आजाद भारत में भी अपने आपको राजा-महाराजा समझते हैं। हालांकि हैं नहीं और अब उनके लिए दोबारा राजपाट मिलने की भी कोई संभावना भी नहीं है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने व्यापार और बाजार परिदृश्य पर विचार प्रस्तुत करते हुए लेख लिखा जो एक अंग्रेजी अखबार में छपा। ये अखबार किसी जमाने में कांग्रेस का प्रबल विरोधी अखबार था। अखबार का नाम है ‘इंडियन एक्सप्रेस’।
राहुल के लेख में उन्होंने एकाधिकार और नफरत फैलाने वालों पर निशाना साधा। उन्होंने शाही परिवारों को भी निशाने पर लिया। राहुल गांधी का लेख पढते ही राजघरानों के लोगों को आग सी लग गई। राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने राहुल गांधी के लेख की आलोचना की। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी के साथ कथित गद्दारी का कलंक लिए घूमने वाले ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के मौजूदा चश्मों चिराग केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी राहुल गांधी की टिप्पणी पर अपनी नाराजगी जताई।
आपको अतीत में ले जाना चाहता हूं। हमने पढा है तो आपने भी पढा ही होगा कि भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू राजा-महाराजाओं, नवाबों की रियासतें हुआ करती थीं। यानि जैसे आज आजाद राष्ट्र में एक महाराष्ट्र है वैसे ही गुलाम भारत में एक-दो नहीं बल्कि पूरी 565 रियासतें थीं। यानि 565 हिंदुस्तान। ये सब स्वतंत्र होकर भी परतंत्र थे लेकिन मजे में थे। अंग्रेजों के साथ अधिकांश राजघरानों की संधियां थीं। कुछ की तो मुगलों से भी संधियां रहीं। अंग्रेज इन्हें इनाम-इकराम और बडे-बडे तमगे भी दिया करते थे, लेकिन इनमें से बहुत से राजघराने थे जो अंग्रेजों से लगातार मुठभेडें भी लेते रहते थे, लेकिन उनकी ये मुठभेडें निजी नफा-नुक्सान को लेकर हुआ करती थीं।
आज कल लोग अखबार कम पढते हैं, लेकिन सोशल मीडिया ज्यादा देखते हैं, इसीलिए राहुल गांधी ने भी अपने ‘एक्स’ के पन्ने पर अपना लेख साझा करते हुए लिखा कि अपना भारत चुनें निष्पक्ष खेल या एकाधिकार? नौकरियां या कुलीनतंत्र? योग्यता या रिश्ते? नवाचार या डरा-धमकाना? बहुतों के लिए धन या कुछ चुनिंदा लोगों के लिए? मैं इस बारे में लिख रहा हूं कि व्यापार के लिए एक नया समझौता सिर्फ एक विकल्प नहीं है, यह भारत का भविष्य है।
आपने शायद राहुल का लेख न पढा हो इसलिए मैं उनके लेख के कुछ अंश यहां साझा करता हूं। उन्होंने लिखा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को चुप करा दिया था। यह अपने व्यापारिक कौशल से नहीं, बल्कि अपने दबदबे से चुप कराया गया था। कंपनी ने हमारे अधिक लचीले महाराजाओं और नवाबों के साथ साझेदारी करके, रिश्वत देकर और धमकाकर भारत का गला घोंटा। इसने हमारे बैंकिंग, नौकरशाही और सूचना नेटवर्क को नियंत्रित किया। हमने अपनी आजादी किसी अन्य राष्ट्र से नहीं खोई; हमने इसे एक एकाधिकारवादी निगम से खो दिया जिसने एक जबरदस्ती तंत्र चलाया।
अब इस लेख में कितनी हकीकत है और कितना अफसाना ये पाठकों को तय करना है, लेकिन मुझे लगता है कि राहुल ने एक बार फिर उस सामंतवादी समाज की दुखती रग पर हाथ रख दिया है जो हमेशा राजसत्ता के इर्दगिर्द मंडराता रहता है। कल भी मंडराता था और आज भी मंडरा रहा है। उसके लिए दल ज्यादा महत्व नहीं रखते। यानि राजघरानों को राजसत्ता के आस-पास ही रहना है। फिर चाहे वो सत्ता कांग्रेस की हो, भाजपा की हो, गठबंधन की हो या बैशाखियों वाली हो।
राहुल गांधी के लेख की कुछ पंक्तियों ने देश के तमाम राजशाही परिवारों को नाराज कर दिया। राजघरनों के लिए मशहूर राजस्थान के जयपुर के पूर्व शाही परिवार की सदस्य और राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने भी अपने एक्स हैंडल से राहुल गांधी पर निशाना साधा। राजकुमारी दीया कुमारी ने लिखा कि मैं संपादकीय में राहुल गांधी की ओर से भारत के पूर्व शाही परिवारों को बदनाम करने के प्रयास की कडी निंदा करती हूं। उनका कहना है कि एकजुट भारत का सपना भारत के पूर्व शाही परिवारों के अत्यधिक बलिदान के कारण ही संभव हो सका। ऐतिहासिक तथ्यों की अधूरी व्याख्या के आधार पर किए गए निराधार आरोप पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं।
राहुल गांधी के लेख से सबसे ज्यादा आहत हुए उनके पुराने दोस्त और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिय। सिंधिया जिस परिवार से आते हैं उसके ऊपर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ प्रथम स्वतांत्रता आंदोलन के समय ‘गद्दारी’ करने का आरोप लगाया गया था, जो आज भी लोकधारणा में जिंदा है। सिंधिया परिवार इस आरोप से इतना लज्जित था कि पिछले डेढ सौ साल में इस परिवार का कोई सदस्य रानी लक्ष्मीबाई की ग्वालियर स्थित समाधि पर नहीं गया था, खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नहीं गए थे, लेकिन 2020 में भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें भी रानी झांसी को वीरांगना स्वीकार कर उनकी समाधि पर शीश नवाने के लिए विवश कर दिया था।
राहुल के लेख पर बिफरते हुए सिंधिया ने लिखा कि नफरत फैलाने वालों को भारतीय गौरव और इतिहास पर व्याख्यान देने का कोई अधिकार नहीं है। राहुल गांधी का भारत की समृद्ध विरासत के बारे में अज्ञान और उसका औपनिवेशिक मानसिकता सभी सीमाओं को पार कर गई है। सिंधिया ने आगे कहा कि यदि आप राष्ट्र को उन्नत करने का दावा करते हैं, तो भारत माता का अपमान करना बंद करें और महादजी सिंधिया, युवराज बीर तिकेन्द्रजीत, कित्तूर चेन्नम्मा और रानी वेल्लु नचियार जैसे सच्चे भारतीय नायकों के बारे में जानें, जिन्होंने हमारी आजादी के लिए कडा संघर्ष किया।
राहुल और सिंधिया लेख भी लिखते हैं ये मुझे पता नहीं था, किन्तु राहुल के लेख पर उफनते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लिखा कि अपने स्वयं के विशेषाधिकार के बारे में आपकी चयनात्मक स्मृतिलोप उन लोगों के लिए एक अपमान है जो वास्तव में विपरीत परिस्थितियों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। आपका असंगति केवल कांग्रेस के एजेंडे को और अधिक उजागर करती है- राहुल गांधी आत्मनिर्भर भारत के कोई चैंपियन नहीं हैं, वह केवल एक पुराने अधिकार का उत्पाद हैं। भारत की विरासत की शुरुआत या अंत गांधी उपनाम से नहीं होती है। केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ही हमारे वास्तविक योद्धाओं की कहानियों का अंतत: जश्न मनाया जा रहा है। भारत के इतिहास का सम्मान करें, या उसके लिए बोलने का दिखावा न करें।
राहुल गांधी को ये लेख लिखने की और पुराने राजघरानों को निशाने पार रखने की जरूरत आखिर क्यों पडी, ये मेरी समझ में नहीं आया। उन्होंने ये लेख खुद लिखा या किसी से लिखवाया ये वे जाने, किन्तु उन्होंने इस मुद्दे का सामन्यीकरण कर उन राजघरनों के लोगों को भी आहत किया जो अंग्रेज परस्त नहीं थे, मुगल परस्त नहीं थे। खैर दुखती रग तो दुखती रग है। राहुल के लेख के जबाब में सिंधिया ने भी राहुल की दुखती रग छूने की कोशिश की है, बावजूद इसके एक हकीकत ये है कि पुराने पांच सैकडा से ज्यादा राजघरानों में से मिर्ची केवल जयपुर और ग्वालियर के राजघराने को लगी। ग्वालियर में तो सिंधिया राजघराने के मुखिया तो आज भी ग्वालियर के चौराहों पर सिंधिया राजघराने के प्रतीक चिन्हों की जालियां लगवाने के लिए स्मार्ट सिटी का ही नहीं बल्कि दूसरे मदों का पैसा भी पानी की तरह खर्च करा रहे हैं, ताकि उनका ऐश्वर्य जिंदा बना रहे। वैसे आपको बता दूं कि हमारे सिंधिया शासकों के पास अंग्रेजों द्वारा दी गई तमाम उपाधियों में से नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द ऑर्डर, ऑफ द स्टार, ऑफ इंडिया, कैसर-ए-हिंद पदक, चीन युद्ध पदक और रॉयल विक्टोरियन ऑर्डर का नाइट ग्रैंड क्रॉस प्रमुख था।