– राकेश अचल
शीर्षक पढकर चौंकिए मत! मैं सचमुच सिंधिया शाही की जय बोल रहा हूं। मुझे क्या ग्वालियर के हर रहवासी को कल भी सिंधिया शाही की जय बोलना पड रही थी, आज भी बोलना पड रही है और कल भी बोलना पडेगी। क्योंकि ये शहर आजादी के 77 साल बाद भी सामंती मानसिकता से आजाद नहीं हुआ है। ग्वालियर में चाहे जिस दल के नेता और कार्यकर्ता हों, सबके सब सिंधिया शाही जिंदाबाद बोलने के लिए अभिशप्त हैं। वे यदि ऐसा न भी करना चाहें तो उन्हें ऐसा करने के लिए अघोषित रूप से बाध्य किया जा रहा है।
देश के प्रधानमंत्री ने अपने पहले और दूसरे कार्यकाल में देश के तमाम शहरों के लिए स्मार्ट सिटी परियोजना शुरू की थी। हमारा प्यारा ग्वालियर भी इस परियोजना के लिए चुना गया। शायद सिंधिया जी की ही मेहनत इसके पीछे रही होगी। परियोजना के तहत शहर को स्मार्ट बनाने के लिए केन्द्र सरकार से करोडों रुपए भी मिले लेकिन दुर्भाग्य ये है कि हमारा शहर आज तक स्मार्ट नहीं हो पाया, क्योंकि हमारे शहर की स्मार्ट सिटी परियोजना के मुख्य कार्यपालन अधिकारी स्मार्ट नहीं निकले। वे ग्वालियर को स्मार्ट बनाने के बजाय ग्वालियर रियासत के भग्नावशेषों को सजाने-संवारने में लग गए। ग्वालियर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कार्पोरेशन द्वारा शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने के लिए कुल 58 परियोजनाएं शुरू की गई थीं, जिनमें से 38 पूरी हो चुकी हैं। अभी भी 20 परियोजनाएं ऐसी हैं, जिनका काम अभी या तो चल रहा है या फिर शुरू ही नहीं हुआ है। स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन का कार्यकाल जून 2023 तक है। ऐसे में इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए सिर्फ चार महीने का समय ही शेष बचा हुआ है।
चूंकि ग्वालियर की जनता और जनप्रतिनिधि बहुत भोले हैं, इसलिए अपने शहर को स्मार्ट बनाने के लिए किए जा रहे किसी भी काम में दखल नहीं देते। वे नहीं देखते कि उनके शहर को किन परियोजनाओं के जरिए स्मार्ट बनाया जा रहा है? लेकिन मैं आपको बताता हूं कि केन्द्र सरकार की 100 स्मार्ट सिटी का प्रथम चरण का कार्यकाल 30 जून 2021 में पूरा किया जाना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते कार्यकाल को दो साल का बढाकर जून 2023 तक स्मार्ट सिटी के सभी प्रोजेक्ट को पूरे करने होंगे। शहर में स्मार्ट सिटी योजना के तहत किए जा रहे 58 कायो्रं में से 38 पूर्ण हो चुके हैं और 20 कार्य अभी भी अधूरे पडे हैं, इन्हें जून 2023 तक पूर्ण करना है। वर्तमान में स्मार्ट सिटी की म्यूजिकल फाउंटेन, टाउन हॉल, फसाड लाइटिंग, फूलबाग चौपाटी, इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमाण्ड सेंटर, डिजिटल लाइब्रेरी, पार्क, स्मार्ट टॉयलेट्स, गोरखी स्कूल, जीआईएस सब स्टेशन के जरिए स्मार्ट बनाने की कोशिश की गई है।
हमारे शहर को स्मार्ट बनाने के लिए स्मार्ट रोड अंडर ग्राउण्ड मल्टी लेवल पार्किंग सहित 15.62 किमी की सडक, आईएसबीटी परियोजना का कार्य, शासकीय प्रेस बिल्डिंग का जीर्णोद्धार, राजपायगा रोड, तीन कचरा ट्रांसफर स्टेेशन, शहर के चार प्रवेश द्वार, गोला का मंदिर से एयरपोर्ट तक सर्विस रोड का निर्माण जैसे कार्य अधूरे पडे हुए हैं। इन्हें जून 2023 तक पूरा करना था लेकिन ये मुमकिन नहीं हुआ। इनका पूरा संभव नजर भी नहीं आ रहा है। इस मामले में स्मार्ट सिटी की मुख्य कार्यपालन अधिकारी नीतू माथुर का कहना है कि स्मार्ट सिटी के तहत 58 परियोजनाओं में से 38 के कार्य पूरे हो चुके है। कुछ परियोजनाएं एक महीने में पूरी भी होने वाली है। हमारी पूरी कोशिश है कि सभी परियोजनाएं समय सीमा में पूर्ण हों।
आपको शायद पता न हो इसलिए बताता हूं कि स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड शहर की 18 हजार 508 मीटर लंबी 12 खस्ताहाल सडकों का निर्माण कराएगा। इन मार्गों में पडाव से हजीरा, गुडागुडी के नाके से चिरवाई, इनकम टैक्स ऑफिस से पटेल नगर, माधवराव सिंधिया मार्ग से कैलाश विहार मैन रोड शामिल है। ये सडकें कितनी स्मार्ट हुई हैं इसका पता आपको खुद करना चाहिए। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के सिटीज 2.0 चैलेंज अभियान में ग्वालियर की दावेदारी खत्म हो चुकी है। हालांकि पहले चरण में ग्वालियर स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन और नगर निगम ने 36 शहरों में जगह बना ली थी। इसके बाद अंतिम 18 शहरों का चयन किया जाना था। इसके लिए निगमायुक्त और स्मार्ट सिटी सीइओ दिल्ली में प्रेजेंटेशन भी दिया था, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।
हमारा शहर इतना स्मार्ट है कि आजतक इस शहर में सिटी बस सेवा शुरू नहीं हो पाई, लेकिन न यहां कि जनप्रतिनिधियों को इसका मलाल है और न राजा-महाराजों को। हालांकि शहर में कई बडे मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है और कई शुरू होने की तैयारी में है। इनमें से एक बडा मेगा इंफ्रा प्रोजेक्ट अंतर्राज्यीय बस टर्मिनल का है जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। ग्वालियर स्मार्ट सिटी के द्वारा ग्वालियर मुरैना हाईवे पर स्थित ट्रिपल आईटीएम के सामने हेरिटेज लुक में अंतर्राज्यीय बस टर्मिनल तैयार किया जा रहा है। लगभग 100 करोड की लगात वाले इस प्रोजेक्ट में 40 अंतरराज्यीय बसें एक साथ प्लेटफार्म से रवाना हो सकेगी। साथ ही 52 बसों के लिए अलग-अलग प्लेटफार्म बनाए जाएंगे। इसके अलावा 300 से अधिक बसों और चार पहिया वाहनों के लिए हाईटेक पार्किंग सुविधा रहेगी। यानि जब नौ मन तेल होगा तब राधा जरूर नाचेगी।
स्मार्ट सिटी के लिए प्रथमिकताएं आखिर कौन तय करता है? ये जानना भी जरूरी है। इसका संचालक मण्डल उन लोगों कि हाथों की कठपुतली है जो महल का प्रतिनिधित्व करते हैं। सांसद, महापौर, विधायकों की कोई हैसियत नहीं है, इसमें हालांकि वे सदस्य जरूर हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना का कार्यपालन अधिकारी कोई भी रहा हो वो इस शहर कि सिंधिया परिवार कि समाने नर्तन करता नजर आता है। नतीजा ये हुआ कि शहर को सिटी बसें नहीं मिलीं लेकिन 13 करोड की लागत से शहर की 18 बिल्डिंग में लाइटिंग पर खर्च कर दिए गए। शहर को चमकता जो दिखाना है। जय विलास पैलेस की चारदीवार का संधारण और जय विलास पैलेस से लकर न जाने कहां तक की सडक और चौराहों को अतीत के दिनों में वापस ले जाना स्मार्ट सिटी परियोजना की प्राथमिकता है।
स्मार्ट सिटी परियोजना थीम रोड पर पडने वाले महादजी सिंधिया चौराहे को जिसे जनता अचलेश्वर मन्दिर चौराहा कहती है पर पत्थर की जालियों पर सिंधिया राजवंश के राज चिन्ह को उकेरना स्मार्ट सिटी परियोजना की प्राथमिकता है। जाहिर है परियोजना के तहत शहर का हैरिटेज जो बचाना है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिन राज चिन्हों को आजादी के बाद म्यूजियम्स में पहुंचा दिया गया था उन्हीं को अब स्मार्ट सिटी परियोजना के लचर अधिकारी सडकों और चौराहों पर जिंदा करने के लिए विवश हैं। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें हटा दिया जाएगा। ग्वालियर में कांग्रेस हो या भाजपा स्मार्ट सिटी परियोजना की इस कार्रवाई पर एक शब्द बोलने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि आखिर सिंधिया जी सबके जो हैं, मेरे भी हैं। मेरा तो एक पत्रकार होने की वजह से राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया से ताल्लुक रहा, लेकिन मुझे सिंधिया राजवंश के चिन्हों को सरकारी खर्च पर उकेरा जाना अनुचित लग रहा है। मुमकिन है कि आपको उचित लग रहा हो, इसीलिए ये सब शहर के मुख्यधारा के मीडिया और सैकडों पत्रकारों को ये सब दिखाई नहीं देता।
मेरी मान्यता है कि राजचिन्हों की वापसी और सलामती से शहर स्मार्ट होने वाला नहीं है। इस शहर को राजचिन्ह नहीं सिटी बसें चाहिए, नियोजित विकास चाहिए। बढिया कानून और व्यवस्था चाहिए। यदि इन राजचिन्हों को स्थापित करने से ये सब संभव है तो स्मार्ट सिटी परियोजना कि तहत पूरे शहर में ये राजचिन्ह जड दिए जाने चाहिए। अकेले महादजी चौराहे पर इन्हें लगाने से क्या हांसिल होगा? ये आलेख मैं सिंधिया की मुखालफत के लिए नहीं लिख रहा। मेरा मकसद इस मुर्दा समांतवाद को पुनर्जीवित करने की कोशिश पर विमर्श शुरू करने का है। विमर्श हो और ये सब रुके तो ठीक अन्यथा मुझे सिंधिया जी से कौन सी तकलीफ है? वे हमारे शहर के सांस नहीं हैं, विधायक नहीं हैं, फिर भी वे ग्वालियर को स्मार्ट बनाने में जी-जान से जुटे हैं ये क्या कम है? पूरा शहर यदि सामंतवाद की पालकी उठाना चाहता है, धूल-धक्कड में रहना चाहता है, गांव से शहर नहीं होना चाहता है, वर्षात में जलमग्न रहना चाहता तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है। मैं तो कहूंगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पुरानी सिंधिया रियासत के हर शहर में सिंधिया राजवंश के चिन्ह लगवा दें, खासकर अपने शहर उज्जैन में। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी तो सिंधिया परिवार की महिला मंत्री को ‘श्रीमंत’ लिखने के लिए राजपत्र में अधिसूचना जारी कराई ही थी। आखिर सिंधिया प्रधानमंत्री के दामाद भी तो हैं। मैं भी जोर से नारा लगाऊंगा-सिंधियाशाही जिंदाबाद।