इस ‘लिंचिंग’ पर भी बोलना पडेगा आपको

– राकेश अचल


अक्सर मेरे तमाम मित्र मुझसे हिंसा और बलात्कार की हर वारदात पर लिखने की अपेक्षा रखते हैं। अधिकांश अंधभक्तों की अपेक्षा होती है कि कोई लेखक हो, विपक्ष का नेता हो वो सबसे पहले हिन्दुओं पर बोले, बंगाल पर बोले, लेकिन उत्तर प्रदेश या डबल इंजिन की सरकार वाले किसी सूबे के बारे में न बोले। लेकिन हमारी कोशिश होती है कि जहां बोलना जरूरी है, कम से कम वहां जरूर बोला जाए। मिसाल के तौर पर आज हमें हरियाणा में हुई लिंचिंग की ताजा वारदात पर बोलना पड रहा है, क्योंकि हम जानते हैं कि इस वारदात को लेकर कोई सत्तारूढ दल शायद ही बोले।
हरियाणा के चरखी दादरी में गोरक्षक समूह की दरिंदगी सामने आई है। यहां एक शख्स की गौमांस खाने के शक में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस तरह की वारदात को अंग्रेजी वाले लिंचिंग कहते हैं। इस घटना के कुछ वीडियो सामने आए हैं, जिसमें गोरक्षक दल के युवक दो लोगों के साथ बेरहमी से मारपीट करते नजर आ रहे हैं। इस दौरान कुछ लोग हस्तक्षेप भी करते हैं, लेकिन गौरक्षक किसी की नहीं सुनते। यह लोमहर्षक वारदात 27 अगस्त की है, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई तो दूसरा गंभीर रूप से घायल है। पुलिस पूरे एक महीना इस वारदात पर पर्दा डाले रही। हालांकि पुलिस ने बाद में इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है, साथ ही दो किशोरों को भी पकडा गया है।
पुलिस के मुताबिक, चरखी दादरी जिले के बाढडा में कुछ युवकों ने गौमांस बनाकर खाने और बेचने के आरोप में कबाड बेचने वाले एक प्रवासी मजदूर की डण्डों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। युवक की पहचान 26 साल के साबिर मलिक के रूप में की गई है। साबिर बाढडा में झुग्गी झोपडी बनाकर रह रहा था। परिजनों का आरोप है कि कबाड बेचने का बहाना बनाकर उन्हें बुलाया गया और फिर इस वारदात को अंजाम दिया गया। हरियाणा के संवेदनशील मुख्यमंत्री नायब सैनी ने चरखी दादरी की घटना की निंदा की है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की बातें ठीक नहीं हैं। गौ माता की सुरक्षा के लिए हमने कानून बनाया है। लेकिन उन्होंने बडी ही मासूमियत से ये भी कह दिया कि गांव के लोगों को जब पता लगता है कि ऐसा हो रहा है तो उन्हें कौन रोक सकता है? यानि ऐसी वारदातों को सरकार का परोक्ष रूप से संरक्षण है!
धुले में रहने वाले 72 वर्षीय बुजुर्ग अशरफ अली सय्यद हुसैन खुश नसीब थे जो उनकी जान बच गई। वे अपनी बेटी से मिलने के लिए जलगांव से कल्याण जाने के लिए धुले सीएसएमटी एक्सप्रेस में सवार थे। उन्हें भी लोगों ने बीफ ले जाने के संदेह में धुन दिया। गनीमत है कि उनकी जान बच गई। इस मामले में ठाणे जीआरपी में एफआईआर दर्ज करने के लिए रेलवे के पुलिस कमिश्नर ने आदेश दिए थे, जिसके बाद आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पुलिस की मानें तो धुले एक्सप्रेस ट्रेन में पहले सीट को लेकर लडाई हुई और फिर उन पर बीफ लेकर यात्रा करने का आरोप लगाकर पिटाई की गई। इस मामले में पुलिस ने दो आरोपियों की पहचान कर ली है, जो धुले के रहने वाले हैं, पुलिस की टीम उनकी तलाश करने धुले भेजी गई है।
एक ही मिजाज की ये दो वारदातें इस बात को प्रमाणित करती हैं कि समाज में सियासत ने नफरत के जो बीज दस साल पहले बोये थे वे अब फलने-फूलने लगे हैं। अल्पसंख्यकों को बहुसंख्य समाज अपना दुश्मन नंबर एक समझने लगा है। अल्पसंख्यक क्या खाएं, क्या पहने, कहां जाएं या न जाएं ये सब सियासत तय करना चाहती है। असम में विधानसभा में सौ साल से विधानसभा में नमाज के लिए दिया जाने वाला ब्रेक भी असम की सरकार ने बंद कर दिया। ये सरकार की ओर से की गई भावनात्मक लिंचिंग नहीं तो और क्या है? लेकिन इन तमाम मुद्दों पर वो भाजपा मौन है जो कोलकाता में एक महिला चिकित्सक की हत्या और बलात्कार के मामले को लेकर सिर पर आसमान उठाए हुए है। यानि भाजपा के लिए लिंचिंग कोई मुद्दा नहीं है। अल्पसंख्यकों कोई सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है। मणिपुर की हिंसा कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन यदि मुद्दा है तो कोलकाता में महलाओं की सुरक्षा।
देश में महिला सुरक्षा को लेकर जो रुख बंगाल को लेकर है वो उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में होने वाली वारदातों को लेकर क्यों नहीं है? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि न्याय में देरी को खत्म करने के लिए बीते एक दशक में कई स्तर पर काम हुए हैं। पिछले 10 वर्षों में देश ने न्यायिक बुनियादी ढांचा के विकास के लिए लगभग आठ हजार करोड रुपए खर्च किए हैं। मोदी जी का दावा है कि पिछले 25 साल में जितनी राशि न्यायिक बुनियादी ढांचा पर खर्च की गई, उसका 75 प्रतिशत पिछले 10 वर्षों में ही हुआ है। वे हरियाणा की लिंचिंग पर कुछ न बोलते हुए कहते हैं कि महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, बच्चों की सुरक्षा, समाज की गंभीर चिंता है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कठोर कानून बने हैं, लेकिन हमें इसे और सक्रिय करने की जरूरत है। महिला अत्याचार से जुडे मामलों में जितनी तेजी से फैसले आएंगे, आधी आबादी को सुरक्षा का उतना ही बडा भरोसा मिलेगा।
प्रधानमंत्री जी कभी झूठ नहीं बोलते। वे जो कह रहे हैं वो सोलह आना सच होगा ही, उनकी पार्टी की सरकारों ने तो बुलडोजर संहिता लागू कर अदालतों का काम भी सरकारों को करने की छूट दे दी है। भाजपा शासित राज्यों में तो अदालतों के फैसले आने से पहले ही सरकार आरोपियों के घर-मकान, दुकानें, जमींदोज कर देती हैं, लेकिन महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे। यानि बुलडोजर संहिता भी नाकाम हो गई। आने वाले दिनों में क्या होगा, ये कहना कठिन है। अभी तो जान के लाले पडे हुए हैं।