स्मृति शेष : श्रीयुत अटलजी के चरणों में सादर विनम्र श्रद्धांजलि

सुरेश चंद्र द्विवेदी व्याख्याता, डाइट, सागर

क्रूर काल के हाथों से, देखो हम फिर से छले गए!
राजनीति के शिखर हिमालय, अटल बिहारी चले गए!!
अपनी शर्तों पर जिए सदा, कोई टुकडा डाल नहीं पाया!
अटल, अटल ही रहे सदा, कोई उनको टाल नहीं पाया!!

देश धर्म की बात चले, तो मुद्दे पर तन जाते थे!
देशद्रोहियों के सम्मुख, वो स्वयं अगन बन जाते थे!!
आंख मूंदकर तीन रंग का, कफन लपेटा चला गया!
मन आहत है भारत मां का, प्यारा बेटा चला गया!!

चार दशक तक रहे विपक्षी, शुचिता कभी नहीं भूले!
तीन बार बन प्रधानमंत्री, कभी अहम से ना फूले!!
मां वाणी का वरद-हस्त था, वाणी-पुत्र कहाते थे!
चाहे हो सरकार कोई, सब उनको गले लगाते थे!!

राजनीति की शुचिता का, औ उत्कर्षों का नाम अटल है!
कभी न देखे पग के छाले, उन संघर्षों का नाम अटल है!!
जिससे भारत था रोशन, वो रवि भी आखिर चला गया!
राजनीति का शिखर-पुरुष, वो कवि भी आखिर चला गया!!

वह अग्नि-पुंज भारत मां का, मृत्यु से हार नहीं सकता!
अटल अमर हैं दुनिया में, कोई उनको मार नहीं सकता!!
जो सपने देखे थे तुमने, अब उनको सफल बनाना है!
और तिरंगा दुनिया के, हर कोने में लहराना है!!

कोटिश: नमन वन्दन प्रणाम… जय भारत जय भारती