– राकेश अचल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का लालकिले से 11वां उदबोधन बहुत महत्वपूर्ण रहा। महत्वपूर्ण दो कारणों से रहा, पहला तो उन्होंने पहली बार टेलीप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल किए बिना एक्सटेम्पोर भाषण दिया। दूसरा कारण ये है कि उन्होंने ‘सेक्युलर’ शब्द का इस्तेमाल किया। वैसे तीसरा कारण भी है कि उन्होंने अब हमेशा के लिए ‘जय हिन्द’ कहना छोड दिया, क्योंकि उन्हें अब नेहरू की तरह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भी पसंद नहीं हैं।
मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का अखण्ड समर्थक हूं, इसलिए मैंने उन्हें सुनने के लिए पूरे 98 मिनट खर्च किए। हालांकि मेरे समय का कोई मोल नहीं है। मुझे हैरानी हुई कि मोदी जी ने अपने भाषण में पहली बार सेक्युलर नागरिक संहिता की बात अपने मुखारविंद से कही। पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन जब बार-बार सुना तो तब मानना पडा कि मोदी जी ही सेक्युलर शब्द बापर रहे हैं, अन्यथा मोदी जी और उनके करोडों भक्त लगातार संविधान से सेक्युलर शब्द हटाने की मांग करते रहे है। मोदी एण्ड कंपनी का आरोप है कि संविधान में सेक्युलर शब्द था ही नहीं, इसे तो बाद में जोडा गया है। अब संविधान में सेक्युलर शब्द जोडने वालों का आभार मानना पडेगा मोदी जी को। क्योंकि यदि ये शब्द संविधान में न होता तो वे इसका इस्तेमाल कैसे करते?
लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी भाषण दे रहे थे लेकिन बार-बार भरम हो रहा था कि वे रामलीला मैदान में भाजपा की किसी चुनावी रैली को संबोधित कर रहे हैं न की राष्ट्र को। उनके सामने राष्ट्र जैसे था ही नहीं। वे अपने पुरखों को निशाने पर रखे हुए थे। उन्होंने कृपा इतनी की कि न नेहरू और इन्दिरा गांधी का नाम लिया और न अटल बिहारी बाजपेयी का। वैसे वे लतिया सभी को रहे थे और अच्छा लतिया रहे थे। इस मामले में मोदी जी का लोहा मानना पडेगा। बांग्लादेश में भी देश के स्वतांत्रता सेनानियों को हाल में इसी तरह लतियाया गया। शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाएं भंग की गईं। उनकी पार्टी के नेताओं की हत्या की गई और उनकी बेटी को देश निकला दे दिया गया। गनीमत ये है कि हमारे यहां सियासी अदावत अभी इस मुकाम तक नहीं पहुंची है।
मोदी जी दुनियादारी के फेर में नहीं पडे। उन्होंने बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ ज्यादती पर सिर्फ चिंता जताई लेकिन बांग्लादेश की नई सरकार को कोई चेतावनी नहीं दी। देते भी कैसे? वे तो बांग्लादेश की नई सरकार से भी दोस्ती बरकरार रखना चाहते हैं। ये अच्छी बात है। उन्हें बांग्लादेश से ही नहीं सभी पडौसियों से दोस्ती बनाकर रखना चाहिए, अन्यथा अब कोई पडौसी दोस्त है ही कहां हमारा। प्रधानमंत्री जी ने भारत की विदेश नीति के बारे में दुनिया को कोई संकेत नहीं दिया। दुनिया निराश हो गई। मोदी जी के भाषण में सब कुछ था लेकिन देश की जनता के लिए कुछ नहीं था, जो कुछ था वो विपक्ष के लिए था, अल्प संख्यकों के लिए और अदालतों के लिए था। उनकी असली अदावत इन्हीं तीनों से है। मोदी जी ने सबसे पहले विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अतिथियों की पांचवीं कतार में बैठा दिया। उन्हें इससे सुख मिला होगा। हर आदमी अपने सुख के लिए ही दूसरे को अपमानित करता है, अन्यथा राहुल गांधी के पास भी केन्द्रीय मंत्री का दर्जा है, वे भी केन्द्रीय मंत्रियों के साथ बैठाए जा सकते थे, लेकिन ये संसद नहीं है, जहां व्यवस्था का प्रश्न उठाया जा सकता है। सरकार की व्यवस्था पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता, ये देशद्रोह है और इसके अलावा कुछ नहीं।
नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने तीसरी बार बैशाखियों के सहारे प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले उदबोधन में देश को क्या उपहार दिया? ये हमें तो नहीं पता। आपको पता हो तो अवश्य शेयर कीजिए। डॉक्टरों की 75 हजार सीटें जरूर बढाई गई हैं, लेकिन इसका लाभ गरीब जनता को मिलेगा या अमीर मेडिकल कॉलेज संचालकों को, ये सोचना पडेगा। हमारी सरकार वैसे भी सबसे पहले यानि जनता से पहले अपनी जनता यानि ए-1 और ए-2 का ख्याल रखती आई है। ये दोनों भी सरकार को वैसा ही समर्थन देते आ रहे हैं जैसा की टीडीपी या जेडीयू। मोदी जी का भाषण अकेले हम ही नहीं देश के करोडों लोग सुनते हैं। कम से कम वे 85 करोड लोग तो सुनते ही हैं जिन्हें हमारी सरकार लगातार अनेक वर्षों से एक जून की रोटी मुफ्त में दे रही है। इस भीड को लगता है कि मुमकिन है कि मोदी जी 15 अगस्त को पांच किलो अन्न के साथ दाल और नमक भी मुफ्त देने की घोषणा करें।
नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को हमसे ज्यादा जानने वाले गोदी मीडिया का मानना है कि लाल किले से दिए गए उदबोधन का अर्थ है कि यूसीसी को सेक्युलर कोड संहिता का नया कलेवर दिया जाएगा। भ्रष्टाचारियों पर कडी कार्रवाई जारी रहेगी, मतलब केजरीवाल जैसों पर कार्रवाई होती रहेगी। रिफॉर्म नहीं रुकेंगे। शिक्षा और रोजगार पर जोर जारी रहेगा और हिन्दू-मुसलमान होता रहेगा। मुमकिन है कि गोदी मीडिया आंकलन हमसे ज्यादा सही हो, इसलिए हम इससे इंकार भी नहीं करते और इसीलिए हमेशा से मोदी जी के सामने नतमस्तक रहते हैं। हमारे ऐसे ही एक श्रोता ने हमें आगाह किया कि मोदी जी लाल किले से लगातार 11 साल से सुभाष चन्द्र बोस का अपमान करते आ रहे हैं। आजाद हिन्द फौज में अभिवादन के लिए ‘जय हिन्द’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता था, जो आज भी पुलिस, अद्र्धसैनिक बलों और सेना में प्रचलन में है। इस यादगार को चिरस्थाई बनाने के लिए पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू लाल किले से अपने उदबोधन के बाद जय हिन्द बोला करते थे, जो मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने तक जारी रहा। लेकिन अब मोदी जी जय हिन्द नहीं कहते।
सवाल ये है कि क्या मोदी जी जाने-अनजाने लगातार सुभाष चन्द्र बोस को अपमान करते जा रहे हैं। संभवत: वे अपने संघ के संस्कारों से इतने प्रभावित हैं कि ‘जय हिन्द’ शब्द से नफरत करने लगे हैं। मोदी जी को शायद नहीं पता कि आजाद हिन्द फौज को मार्च का गीत भारतीय सेना ने अपनाया है। सुभाष चन्द्र बोस के हर योगदान को चिरस्थाई बनाया गया। मोदी जी नेहरू जी खिलाफ अभी तक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब उन्हें भी नेहरू की तरह अपना अरि समझने लगे हैं ये हैरान करने वाले बात है। लेकिन मुझे नहीं लगता की ये बात सही होगी।