क्या है प्रधानमंत्री के अपमान की कीमत?

@ राकेश अचल


नए संसद भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करना क्या देश के प्रधानमंत्री का अपमान है? क्या सचमुच विपक्षी दलों को आगामी आम चुनाव में प्रधानमंत्री के अपमान की कीमत चुकानी पड़ेगी? क्या सचमुच प्रधानमंत्री जी का अपमान करने वाला विपक्ष आम चुनावों के बाद और सिकुड़ जाएगा? और क्या कांग्रेस का आगामी आम चुनावों में सफाया हो जाएगा? ये ऐसे सवाल हैं जो देश के गृहमंत्री अमित शाह के बयान के बाद आए हैं।
जलता मणिपुर बचने की जद्दो-जहद में लगे अमित शाह नए संसद भवन के उदघाटन समारोह में विपक्ष के न आने से बेहद भन्नाये हुए हैं, हालांकि सरकार ने इस समारोह में विपक्ष के नेता को बोलने का कार्यक्रम शामिल किया है। लेकिन सरकार का ये फैसला भी अंतर्विरोधी नजर आता है, क्योंकि खुद शाह कहते हैं कि कांग्रेस विपक्ष की हैसियत खो चुकी है, फिर उसके नेता को कार्यक्रम में बुलाया क्यों जा रहा है? कार्यक्रम के बहिष्कार को शाह ने देश के प्रधानमंत्री जी का अपमान मान लिया है। ऐसा करने से उन्हें कोई रोक भी नहीं सकता, ये उनका अधिकार है। लेकिन ये जरूरी तो नहीं की प्रधानमंत्री के मान, अपमान को लेकर जो धारणा शाह की है वो ही पूरे देश की हो।
हमारे देश के गृह मंत्री, प्रधानमंत्री जी की तरह बड़बोले हैं और अक्सर कुछ न कुछ ऐसा कहते हैं जो कि हास्यासद हो। उनका ताजा बयान भी हंसी पैदा करता है। वे कहते हैं कि ‘जनादेश का अपमान विपक्ष को 2024 के आम चुनाव में भारी पड़ेगा।’ शाह कहते है कि कांग्रेस को अपनी मौजूदा सीटें बचाना भी मुश्किल हो जाएगा। मेरा बस चले तो मैं शाह जी के मुंह में घी-शक़्कर भर दूं, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। शाह का शाप हो या वरदान फलित नहीं होता। वे बंगाल, पंजाब, कर्नाटक में 200 से कम विधानसभा सीटों पर राजी नहीं थे लेकिन इन तीनों राज्यों में उनका सपना टूटा।
अब कोई शाह से पूछ नहीं सकता कि वे उस कांग्रेस पर बुरी तरह क्यों बरसते हैं, जिसने हाल ही में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा को, यानि प्रधानमंत्री जी को जनादेश नहीं दिया। क्या ये जनादेश भी प्रधानमंत्री जी का अपमान है? शाह कहते हैं कि कांग्रेस चुने हुए प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री नहीं मानती, जबकि जनता ने उन्हें वोट दिया है। कांग्रेस प्रधानमंत्री जी को संसद में बोलने नहीं देती, जब वे बोलते हैं या किसी कार्यक्रम में जाते हैं तो उसका बहिष्कार कर देती है। अब सवाल शाह जी से ही है कि क्या कांग्रेस इतनी ताकतवर है जो प्रधानमंत्री जी को संसद में बोलने न दे? संसद में कौन बोले और कौन न बोले इसका निर्णय क्या कांग्रेस करती है या लोकसभा के अध्यक्ष? सदन में बोलने वालों को तो भाजपा की सरकार ने सदन से ही बाहर कर दिया है। फिर इन आरोपों का क्या अर्थ है?
संसद की नई इमारत का लोकार्पण सौहार्दपूर्ण तरीके से होना चाहिए, जो नहीं हो रहा, क्योंकि भाजपा की सरकार ऐसा नहीं चाहती। सरकार चाहती है कि जो भी नया इतिहास लिखा जाए उसमें केवल और केवल प्रधानमंत्री जी हों, दूसरा और कोई नहीं। क्या नई संसद के लोकार्पण का काम राष्ट्रपति जी से नहीं कराया जा सकता? आखिर राष्ट्रपति के करकमल नहीं हैं? क्या विपक्ष की इतनी सी मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता? हठधर्मिता कहां है? सरकार के फैसले में या विपक्ष के फैसले में। संसद के नए भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करने का निर्णय अकेले कांग्रेस का नहीं है अपितु 19 और विपक्षी दलों का भी है, फिर केवल कांग्रेस को ही क्यों कोस रहे हैं हमारे शाह साहब? क्या कांग्रेस सचमुच सबसे बड़ा सिरदर्द है?
मैं पहले ही कह चुका हूं कि संसद के नए भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार विपक्ष का समयोचित निर्णय नहीं है, लेकिन मुझे ये कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस तमाम तमाशे की जड़ में सरकार है। सरकार यदि वाकई सबको साथ लेकर चलना चाहती है तो लोकार्पण के लिए राष्ट्रपति को आमंत्रित करने में उसे उज्र क्यों है? राष्ट्रपति हमारे यहां सर्वोच्च पद है। प्रधानमंत्री से भी ऊंचा। प्रधानमंत्री को शपथ दिलाने वाला, फिर क्या दिक्कत है भाई ?
गृह मंत्री जी का ये कहना अच्छा लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार 300 सीटें जीतकर मोदी जी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाएगी और कांग्रेस अपनी मौजूदा सीटें भी नहीं बचा पाएगी। अच्छी बात है, ऐसा ही हो। मोदी जी को यदि देश की जनता प्रधानमंत्री बनाना चाहेगी तो आखिर उसे कौन रोकेगा? कांग्रेस में इतना दम है नहीं और विपक्ष बिखरा हुआ है। वो तो विधानसभा चुनावों में भाजपा जान-बूझकर हार जाती है, ताकि आम चुनाव में जीत सके। विधानसभा चुनावों में भाजपा प्रधानमंत्री जी के चेहरे पर चुनाव लड़ती है, हारती है, लेकिन तब प्रधानमंत्री जी का अपमान नहीं मानती। प्रधानमंत्री जी का अपमान तब होता है जब लगभग पूरा विपक्ष उनके खिलाफ खड़ा होता है।
देश के प्रधानमंत्री जी का सम्मान सबको करना चाहिए, विपक्ष को भी। लेकिन प्रधानमंत्री जी के विरोध करने से किसी को कैसे रोका जा सकता है। लोकतंत्र में यही एक अधिकार है जो जनता और विपक्ष के पास है। इस अधिकार पर भी उंगली उठाना अलोकतांत्रिक बात है। विधानसभा चुनावों में लगातार पराजय से भयभीत केंद्र की भाजपा सरकार के केंद्रीय गृहमंत्री इस समय आतंकित नजर आ रहे हैं। वे न मणिपुर को आग से बचा पा रहे हैं और न भाजपा के ढहते दुर्ग को धंसकने से रोक पा रहे हैं। एक के बाद एक राज्य भाजपा के हाथ से तब निकल रहा है जबकि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री उसके नेता हैं। बेहतर हो कि शाह जी विपक्ष को कोसने या श्राप देने के बजाय भाजपा के धंसकते किले को सम्हालने पर ध्यान दें। मणिपुर को जलने से बचाएं। पूरे विपक्ष के साथ राब्ता बैठाएं। सबका साथ और सबका विकास आखिर भाजपा का मन्त्र है, कांग्रेस का नहीं।
केंद्रीय गृहमंत्री का विलाप ‘अरण्यरोदन’ जैसा है। उनके प्रति सबको सहानुभूति का प्रदर्शन करना चाहिए। इस समय भाजपा को सबकी सहानुभूति की जरूरत है। कांग्रेस को जिम्मेदार विपक्ष के रूप में भाजपा का ख्याल रखना चाहिए। उसे रोकना-टोकना नहीं चाहिए। बहिष्कार के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। अन्यथा दुनिया क्या कहेगी ? दुनिया कहेगी कि भारत में एक ऐसा प्रधानमंत्री है जिसकी बात वहां का विपक्ष नहीं सुनता। राज्यों की जनता नहीं सुनती। कम से कम देश की खातिर, प्रधानमंत्री जी की खातिर ही यदि विपक्ष अपना फैसला बदल ले तो देश कि इज्जत बच सकती है। अभी सवाल देश की इज्जत का है। प्रधानमंत्री जी की इज्जत का है। प्रधानमंत्री जी से दो-दो हाथ फिर कभी किए जा सकते हैं। वैसे एक रास्ता है कि सरकार नए संसद भवन का उदघाटन अमेरिका के राष्ट्रपति से करा लें। उनसे प्रधानमंत्री जी के रिश्ते भी बेहतर है। अभी हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हमारे प्रधानमंत्री जी को गले लगाया है, उनके आटोग्राफ लिए हैं।

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