मुनिश्री के सानिध्य में 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में हुई सिद्धों की आराधना
भिण्ड, 01 अप्रैल। क्रोध उत्तेजक तत्व है, जो मनुष्य को उग्र बनाता है और बैर की नींव डालता है। क्रोध क्षणिक आता है और चला जाता है, किन्तु अपना प्रभाव और भयानक तत्व छोड़ जाता है। जो अनेक जन्मों तक आत्मा पर छाया रहता है। दुश्मनी का पाप जन्मों-जन्मों तक साथ रहता है। क्रोध व बैर के शमन के लिए भगवान महावीर ने उपवास और क्षमा शब्द दिया है। क्रोध के उफान को निरस्त करना उपशम है। क्रोध मानव का मूल स्वभाव नहीं है। मनुष्य मूल प्रकृति शांत भाव से रहने की है। यह बात श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज ने शनिवार को रानी विरागवां स्थित दिगंबर आदिनाथ जैन मन्दिर में आयोजित 32 मण्डलीय सिद्धचक्र महामण्डल विधान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनि श्री विनय सागर महाराज ने कहा कि असत्य हमेशा मरता है, सत्य जीवित रहता है। अपमान होने पर हम कितने दुखी होते हैं, इसलिए हम भी किसी को अपमानित नहीं करें। क्रोध के स्थान पर करुणा हो तो दुश्मन भी मित्र बन जाता है। अभिमान हमें झुकने नहीं देता है, अहंकार छोड़े बिना गुरू परमात्मा का भी नहीं हो सकता है। व्यक्ति को बदलने का अवसर मिलना चाहिए। कर्म के भ्रम को कोई ना जानता है। बैर को समाप्त करना चाहिए। कर्म का लेख टलता नहीं है। पाप करें हम दोषी परमात्मा गुरु को नहीं ठहराएं। मनुष्य शांत प्रकृति से अपने क्रोध को समाप्त कर सकता है। हम सदैव दुश्मन को क्षमा करें।
मुनिश्री ने महा मंत्रों से बृहद शांतिधारा कराई, झूमकर आरती उतारी
मुनिश्री के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि सिद्धचक्र महामण्डल विधान के विधानचार्य राजेन्द्र जैन ने मंत्रों का उच्चारण कर इन्द्रों ने भगवान जिनेन्द्र देव का कलशों से अभिषेक कर जयकारे लगाए। मुनिश्री ने अपने मुखार बिंद से मंत्रों का उच्चारण कर बृहद शांतिधारा रेनू जैन एवं सुनील जैन अहमदाबाद परिवार करने का सौभाग्य मिला। अभिषेक के उपरांत भगवान की महाआरती इन्द्रों ने झूमकर सामूहिक रूप से की।
भजनों पर झूमकर इन्द्रा-इन्द्राणियों ने 516 अघ्र्य किए समर्पित
विधान में मुनि श्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में इन्द्रा-इन्द्राणियों ने पीले वस्त्र धारण कर सिर पर मुकुट गले में माला पहनकर भक्ति भाव के साथ पूजा आर्चन कर भक्तिभाव के साथ जिनेन्द्र देव के समक्ष 516 महाअर्घ समर्पित किए गए।
मुनिश्री के सानिध्य में चार दिन का दिव्य महामहोत्सव होगा
श्रमण मुनि श्री विनय सागर महाराज के सानिध्य में दो अप्रैल को सौधार्म इन्द्र की सभा, माता के सोलह स्वप्न और उनका फल और भव्य अतिभव्य श्री 1008 भगवान महावीर का गर्भ कल्याणक धूमधाम से मनाया जाएगा। तीन अप्रैल को भगवान महावीर के जन्मोत्सव पर दिव्य पालना झुलाया जाएगा। चार एवं पांच अप्रैल को भगवान महावीर का 1008 कलशों से और श्री सहस्त्रनाम मंत्रों से भव्य महामस्तकाभिषेक भी कराया जाएगा।