भिण्ड, 01 मार्च। जन्म के बाद मरण एक शाश्वत सत्य है। संसार में आने वाले प्रत्येसक प्राणी को आयु पूर्ण होने पर जाना ही पड़ता है। इसमें जो रत्नत्रय को धारण कर संयम व्रतों की साधना करते हुए संतों के चरणों में प्रभु नाम के स्मरण के साथ अपने जीवन को पूर्ण करते हैं और मृत्यु का महोत्सव मनाते हैं। जी हां, ऐसी ही थीं श्रमणी आर्यिका विनिर्गतश्री माताजी। जिनकी सोमवार की देर शाम को चैत्यालय जैन मन्दिर भिण्ड में समाधि हो गई।
श्रमणी आर्यिका विनिर्गतश्री माताजी का पूर्वनाम श्रीमति सुगरवती देवी (सुग्गोत जैन) था, आप इकदिल नगर की रहने वाली थी, आपकी माता श्रीमती स्वरूपी जैन व पिता रिखवचन्द्र जी थे। एक बेटा व पांच बेटियों का आपका हरा-भरा परिवार था, आपके पति मुन्नालाल जैन थे। प्रारंभ से ही आप धार्मिक सुसंस्कारों से सुसज्जित थीं, आपका रात्रि भोजन व सारी जमीकंद का आजीवन त्याग था तथा 40 साल से आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रही थीं। ग्रहस्थ धर्म का पालन करते हुए आप नियम संयम में रहती थीं। आपने अपने जीवनकाल में कई तीर्थ क्षेत्रों की वंदना के साथ निग्रंथ गुरुओं का आहार दान दिया, साथ ही अपनी ढलती आयु को देख आपने बरासों, महावीर जी, कुण्डलपुर, शिखरजी आदि तीर्थ क्षेत्रों में दान दिया और आने वाली अष्टान्हिका में श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान हेतु कुछ धन राशि प्रदान की। कुछ दिनों से आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, आठ दिन से आपने भोजन नहीं किया, मात्र एक समय पेय ही लिया। आयु का अवसान जान आप बार-बार कह रही थी मैं अब नहीं बचूंगी। मैं जहां से आई हंू वहीं जाऊंगी। सभी डॉक्टारों ने जवाब दे दिया था। 28 फरवरी 2022 को दोपहर 12 बजे आपने धन-दौलत, पलंग, विस्तदर आदि का त्याग किया व सभी से क्षमा याचना की तथा शाम चार बजे थोड़ा जूस व दूध लिया। उसी समय स्वच्छा से सारी औषधियों का त्याग किया। शाम पांच बजे आपने चैत्यालय जैन मन्दिर भिण्ड में विराजमान आर्यिका विश्वासश्री, आर्यिका विजितश्री, क्षुल्लिका विनीताश्री माताजी को भेजा, तीनों माताजियों ने आपको समाधि भावना, णमोकार मंत्र व सुबोधन सुनाया, फिर आपने व्रती बनने की इच्छा जाग्रत की। तभी परम पूज्य समाधि सम्राट गणाचार्य श्री विराग सागर महाराज ने वीडियो कॉलिंग कर आपको सप्तम प्रतिमा के व्रत दिए, तभी आपने सभी से पुन: क्षमा याचना की, पश्चत आपने दीक्षा लेने की भावना के साथ-साथ मन्दिर में ही रुकने की इच्छा प्रकट की, तभी आपको कुटुंबीजनों के साथ मन्दिर लाया गया। आपकी स्थिति गंभीर जान गुरूदेव विराग सागर महाराज ने मंत्रोच्चारण पूर्वक आर्यिका दीक्षा के संस्कार दिए और उनका नाम आर्यिका विनिर्गतश्री माताजी नाम रखा गया। अंत में यम संल्लेखना पूर्वक आपने णमोकार मंत्र व संबोधन सुनते हुए शाम 7:42 बजे अंतिम सांस ली।