इतिहास विभाग द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेनानिया के स्वर्णिम इतिहास को संकलित करने का अनुरणीय प्रयास : निडर

– शोध छात्र ने अशोक सोनी निडर से साक्षात्कार में जाना भिण्ड के स्वतंत्रता सेनानियों का इतिहास

भिण्ड, 25 अगस्त। इतिहास विभाग मध्य प्रदेश द्वारा सन 1857 से लेकर 1947 तक के स्वाधीनता आंदोलन के क्रांतिकारियों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के स्वर्णिम इतिहास को संकलित करने का अनुकरणीय प्रयास किया जा रहा है। इसी तारतम्य में आशु अहिरवार शोधार्थी, इतिहास विभाग डॉ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय सागर ने महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामनाथ सोनी के पुत्र राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार के राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शहीद मेला मिशन अमर शहीद अमर जवान के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मप्र स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के प्रदेश सचिव अशोक सोनी निडर से उनके फूफ जिला भिण्ड स्थित निवास पर भेंट कर उनका साक्षात्कार लिया और आजादी के महासंग्राम के शहीदों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इतिहास विशेष कर चंबल क्षेत्र के भिण्ड जिले के सेनानियों के बलिदान को संकलित किया।
अशोक सोनी निडर ने भिण्ड जिले के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1857 की क्रांति का बिगुल बजने के बाद अंग्रेजों से युद्ध करती हुई झांसी रानी लक्ष्मीबाई भिण्ड जिले के इंदुर्खी गांव में आईं जहां एक राष्ट्रभक्त चिनमा जी ने न सिर्फ उनकी मदद की, बल्कि उनकी सेना के लिए रसद आदि का भी प्रबंध किया, लेकिन कुछ गद्दारों द्वारा मुखबरी करने पर ब्रिटिश सरकार ने कुपत होकर महान देशभक्त चिनमा जी सहित 111 लोगों को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया।

उन्होंने सन 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भिण्ड जिले के शूरवीर क्रांतिकारी वरिष्ठ महान स्वतंत्रता सेनानियों दादा बटेश्वरी दयाल शर्मा, श्रीनाथ शर्मा गुरू, रघुवीर सिंह कुशवाह, अमर सिंह कुशवाह, हरिकिशन दस जाधव भूताजी, दीपचंद पालीवाल, लक्ष्मी नारायण शर्मा, गंगाधर मुनीम, फूलचंद्र लोहिया, शांतिस्वरूप बौहरे, रामेश्वर दयाल दांतरे, रामदत्त शर्मा, कंसराज सिंह भदौरिया आदि का उल्लेख करते हुए बताया कि ब्रिटिश सरकार की भयानक यंत्रणाएं सहते हुए कभी छापामार युद्ध तो कभी गोरिल्ला योद्धाओं की तरह गोरों को छकाते रहे। उनकी इमारतों को आग के हवाले करते रहे। अपने साथियों को गोला बारूद तो कभी गुप्त संदेश देकर ब्रिटिश हुकूमत को समाप्त करने में लगे रहे। जेल गए कोडे खाए बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया यहां तक कि कई साथियों के नाखून तक बेदर्दी से उखाड दिए गए। लेकिन मां भारती के इन सपूतों को न झुकना था और न झुके बल्कि पराधीनता की बेडियां काटकर ही दम लिया।
चर्चा के दौरान निडर ने अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी रामनाथ सोनी जो उस समय लखना जिला इटावा में निवास रत थे और स्वतंत्रता आंदोलन में महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहे थे के संस्मरण और एकत्रित जानकारी के आधार ये भी बताया कि आंदोलन को सुचारू रूप से गति प्रदान करने के लिए जिला भिण्ड और जिला इटावा के क्रांतिकारी बराबर एक दूसरे के संपर्क में रहकर क्रांति की अलख जगाए रखते थे। हालांकि उस समय आवागमन के साधन भी नहीं थे किसी नदी पर पुल भी नहीं थे, लेकिन जहां राह वहां चाह की तर्ज पर ये जोशीले युवा वारदात करके बीहड मार्ग से किसी तरह कभी भिण्ड आ जाते थे तो कभी इटावा पहुंच जाते थे। देश आजाद होने के बाद भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सन 1972 में इन बलिदानी देशभक्तों को सम्मानित करने और समाज में राष्ट्रीय परिवार के रूप में विशिष्ट पहचान बनाने हेतु सम्मान निधि रेल तथा बस में नि:शुल्क यात्रा, नि:शुल्क चिकित्सा आदि के साथ कई सुविधाओं सहित ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया।
साक्षात्कार के अंत में अशोक सोनी निडर ने सभी सेनानी परिजनों का आव्हान करते हुए एक अनुरोध किया कि जिस तरह हम धर्म देवताओं के मन्दिर बनाकर पूजते हैं, उसी तरह हर गांव शहर में आजादी की खातिर अपना बलिदान देने वाले शहीदों स्वतंत्रता सेनानियों के राष्ट्रदेव स्मारक रूपी मन्दिर बनाकर राष्ट्र देवताओं के रूप में पूजा करें ताकि भावी पीढ़ी में भी देशभक्ति के संस्कार पैदा हो सकें। उन ज्ञात अज्ञात राष्ट्र वीरों को नमन करते हुए कहा कि ‘सांस का हर सुमन है वतन के लिए, जिंदगी है हवन अब अब वतन के लिए। खून से जिनके सींचा गया ये चमन है हमारा नमन उस चमन के लिए।।’