चंबल में टूट रही हैं पितृसत्ता की बेडिय़ां
भिण्ड, 10 जनवरी। चंबल अंचल में अब पितृसत्ता की बेडिय़ां टूट रही हैं। यहां भिण्ड जिले के ग्राम पानसिंह का पुरा, नुन्हटा में प्रो. जितेन्द्र विसारिया के घर एक ऐसा ही बाक्या देखने को मिला। जहां दो विवाहित पुत्रियों ने अपनी मां का अंतिम संस्कार किया।
मंगलवार को दोपहर पौने एक बजे प्रो. जितेन्द्र विसारिया की नानी जयदेवी गोयल का निधन हो गया। वे इटावा उप्र के ग्राम बमनपुरा भगवतीपुर पोस्ट पिलखर की निवासी थीं। उनके और उनके पति स्व. रामसहाय गोयल की पांच संतानें थी। जिनमें दो विवाहित पुत्रियां और एक 18 साल का जवान लडक़ा असमय ही दुनिया से विदा हो गए थे। 2002 में पति रामसहाय गोयल का भी निधन हो गया। घर-परिवार में जो लोग थे, अधिकांश की उनसे कोई सहानुभूति ना थी। वे कैसे भी उनका घर और जमीन-जायदाद हथियाना चाहते थे। उन्होंने जयदेवी जी को जब तरह-तरह से सताना शुरू किया, तो परेशान जयदेव जी अपनी दोनों बेटियों तारादेवी पत्नी रामस्वरूप विसारिया और सुमनदेवी पत्नी बच्चूलाल विसारिया के घर पानसिंह का पुरा भिण्ड आ गई थीं। तब से अब तक करीब 21 साल हो गए, वे पानसिंह का पुरा में ही अपने बेटी-दामादों के पास रह रही थीं। बेटी-दामादों ने ही उनकी खुशामद की। कभी उनकी देखभाल में कोई कोर-कसर नहीं रख छोडी। उनकी हर छोटी-बडी इच्छा पूरी की। उम्र के नौंवे दशक करीब 82 साल में प्रवेश करने के साथ ही, अभी एक-डेढ महीने से धीरे-धीरे उनका निरंतर स्वास्थ्य गिरने लगा। उनकी दोनों बेटियों तारादेवी और सुमन देवी ने डॉक्टर से लेकर घर के अंदर-बाहर दिन-रात एक करते हुए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखा। दोनों बहनों ने उनके बिस्तर पर दोनों सिरहाने बैठकर, उनकी देखभाल करते, कई-कई रातें बिना पलक झपकाए काटीं। लेकिन अंत में प्रकृति को जो मंजूर होता है, वो होकर रहता है।
मंगलवार को दोपहर पौने दो बजे उन्होंने अपनी दोनों बेटियों की गोद में ही अंतिम सांस ली। फिर जैसा कि सबका अंतिम संस्कार होता है। घरवालों और आस-पास से आकर उपस्थित हुए नाते-रिश्तेदारों और परिचितों ने उनके अंतिम यात्रा की तैयारियां शुरू की। साथ ही तय होने लगा कि उनका ‘दाग’ कौन देगा? दाग देने वालों वहां कई परिवारीजन उपस्थित थे। लेकिन उनमें कोई ऐसा नहीं था, जिसमें उनकी दो दशकों से सेवा की हो। उनका रक्त संबंध अपनी बेटियों से था। यह अपने आप में बहुत ही बिडम्बना पूर्ण स्थिति थी। जिसके विरोध की पहल, शोक और विलाप में डूबी तरादेवी और सुमन देवी भी एकदम नहीं कर सकती थीं। लेकिन उनकी बडी बेटी तारादेवी की यह इच्छा अवश्य थी कि उनका अंतिम संस्कार या तो वे दोनों बहने करें अथवा उनका बडा नाती (पुत्री का लडक़ा)। उनके पीहर का कोई अन्य व्यक्ति बिल्कुल नहीं।
उन्होंने वहां रोते हुए ही यह बात अपने बड़े बेटे जितेन्द्र विसारिया को बताई। डॉ. जितेन्द्र विसरिया शहर के शा. एमजेएस महाविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष और संवेदनशील साहित्यकार भी हैं। उन्होंने अपनी मां को धैर्य बंधाते हुए कहा कि आप और मौसी जी नानी की जायज वारिस हैं। आप दोनों ने ही उनकी इतने दिन तक जी-जान से सेवा-संकल्पना की है। तब क्यों ना आप और मौसी जी ही, नानी का यह महत्वपूर्ण संस्कार करें।
यह तारादेवी को ठीक लगी और वे इसके लिए तैयार भी हो गईं। उसके बाद वहां अंतिम संस्कार में शामिल कोई दो-ढाई सौ लोग थे। जो इस बात के लिए कतई तैयार नहीं कि श्मसान घाट में स्त्रियां भी जा सकती हैं। उनके लिए यह एक अजूबा दृश्य था। लेकिन उन दोनों बहनों की दृढता और प्रो. जितेन्द्र विसारिया के दृढ संकल्प के आगे सबको झुकना पडा। शोक सभा में आई अन्य स्त्रियों के साथ तरादेवी और सुमन देवी आगे बढ़ीं और श्मसान घाट तक गईं। जहां बेटों की भांति विधि-विधान से उन दोनों बहनों ने अपनी मां का अंतिम संस्कार किया। साथ ही दूसरे दिन उन दोनों बहनों ने मां के पवित्र फूल चुनकर समीप की नदी में विसर्जित भी कर आईं। उनकी इस पहल की कल से पूरे अंचल भर में चर्चा है।