मोदी युग में बापूवाद की भूमिका

@ राकेश अचल


आप चौंकिए नहीं। मैंने जिस बापूवाद की भूमिका की बात की है वो आपका, हमारा, सबका गांधीवाद ही है। लेकिन आज देश में गांधी का नहीं मोदी का युग चल रहा है। इस युग में बापूवाद की भूमिका रेखांकित किए जाने की जरूरत है, क्योंकि आज लोगों के मुंह में गांधी लेकिन दिल में गोडसे मुस्कराते नजर आ रहे हैं। गांधी सफाई अभियान और नोटों पर छपने तक सीमित किए जा रहे है। उनके आदर्शों पर चलने में मोदी युग की जनता के पांव कांप रहे हैं।
हाल ही में आपने नईदिल्ली में जी-20 सम्मेलन के मौके पर राजघाट पर विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों को महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पगुच्छ चढ़ाते हुए देखा होगा। तब लगा था कि मोदी युग में भी गांधी प्रासंगिक हैं, लेकिन सम्मेलन के समापन के बाद मित्र राष्ट्रों के बीच और देश के भीतर राजनितिक दलों के मध्य जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर लगता है कि हम महात्मा गांधी को छलने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी आत्मा को दुखी कर रहे हैं। संयोग देखिये कि देश के पास ले-देकर एक ही महात्मा है लेकिन हम उसे बार-बार मारने की कोशिश कर रहे हैं, लगातार कर रहे हैं।
महात्मा गांधी 154 साल पहले देश में अवतरित हुए थे। मैं महात्मा गांधी को इसलिए अवतार कह रहा हूं, क्योंकि आज-कल तो नरेंद्र मोदी को भी अवतार कहा जाता है। महात्मा गांधी को मैंने भी नहीं देखा, क्योंकि वे मुझसे 90 साल पहले जन्मे और मेरे जन्म से 11 साल पहले मार दिए गए। लेकिन किस्मत हम लोगों की कि वे मरे नहीं, आज भी नहीं मरे। वे देश भर में नहीं, दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा देशों में अपनी लाठी लिए खड़े हुए हैं। तनकर खड़े हुए हैं। कहीं चरखा चते हुए, कहीं पदयात्रा करते हुए। गांधी आज भी एक कौतूहल है। सवाल ये है कि गांधी मरते क्यों नहीं हैं, जबकि उन्हें मारने की हर कोशिश की जाती है।
गांधी जी के जन्मदिन पर 2 अक्टूबर को एक बार फिर ये बहस होगी कि गांधी यानि बापू यानि मोहनदास करम चंद ज़िंदा क्यों हैं? ऐसा क्या है जो गांधी को मरने नहीं देता। जबकि इन डेढ़ सौ सालों में बहुत से महान लोग आए और चले गए। उनमें से अनेक आज भी जीवित हैं, लेकिन महात्मा गांधी की तरह नहीं। महात्मा गांधी आज भी राजनीति में, समाज में, अर्थशास्त्र में, आदर्शों में, मूल्यों में और पाठ्य पुस्तकों में जीवित हैं।
साबरमती के संत महात्मा गांधी का नामो-निशान मिटाने के लिए हमने आधुनिकता और संरक्षण के नाम पर उनके आश्रमों को ‘फाइव स्टार’ बनाने की ऐतिहासिक और भयानक कोशिश की। दुनिया में गांधी और उनके जैसे तमाम महान व्यक्तियों की स्मृतियों से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती, किन्तु हमने ये भी की। हमने गांधी के भक्तों के विरोध को अनदेखा किया और वो सब किया जो गांधी यानी बापू और उनके वाद के खिलाफ जाता है। ऐसा करने वाले भी साबरमती के ही आधुनिक संत हैं। दूसरे सूबे का आदमी गांधी की स्मृतियों से छेड़छाड़ के बारे में सोच भी नहीं सकता। मुझे लगता है कि साबरमती के तट पर यदि महात्मा गांधी की आत्मा कभी विचरण के लिए आती होगी तो अपने आश्रम को गिरते और नया रूप लेते देखकर विचलित अवश्य होती होगी।
गांधी के सपनों का भारत आजादी के अमृतकाल में भी नहीं बन पाया। पं. जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह ने भी खूब कोशिश की। गांधी के सपनों का भारत कांग्रेस के सपनों का भारत नहीं है। वो देश के आम आदमी के सपनों का भारत है। कांग्रेस ने कोशिश की गांधी के सपनों में रंग भरने की। कांग्रेस की कोशिशें पूरी होने में बहुत समय जाया हो गया। दुर्भाग्य ये कि गांधी के सपनों का भारत बनने से पहले ही गांधीवादी यानि बापूवादी सत्ता से बेदखल कर दिए गए और ठीक बेदखल कर दिए गए। उनकी जगह गांधीवादी नहीं गौड़से और सावरकरवादी सत्ता में आ गए। उनके सपनों का भारत एक अलग तरह का भारत है। पिछले दस साल से भारत को गांधी के सपनों का नहीं, मोदी के सपनों का भारत बनाया जा रहा है।
मोदी जी के सपनों का भारत ऐसा भारत है जिसमें आईआईटी नहीं, जिसमें की नया राज्य नहीं बन रहा, बल्कि पुराने राज्यों से उनका राज्य का दर्जा छीना गया है। आज के भारत में राम मंदिर बन रहा है। आज का भारत ऐसा भारत है जिसमें मणिपुर जल रहा है। आज का भारत ऐसा भारत है जो लगातार विश्व गुरु बनने के लिए मित्रता के बजाय अदावत को महत्व दे रहा है। मोदी के सपनों के भारत में आधुनिक भारत की नीव में रखे गए गुट निरपेक्षता और शर्मनिरपेक्षता के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। हो भी नहीं सकती। आज के भारत में जब बापू के लिए जगह नहीं, तब उन सिद्धांतों और मूल्यों के लिए जगह कहां से होगी जो बापूवाद से प्रेरित हैं। आज के भारत में न बापू के लिए कोई स्थान है और न कांग्रेस के लिए, किन्तु अदभुत संयोग है कि बापू जी और कांग्रेस लगातार मोदी जी के सीने पर दाल दल रहे हैं। न बापू मरते हैं और न कांग्रेस।
मोदी जी के भारत में संसद में रमेश बिधूड़ी होते हैं, वे गांधी और गांधीवाद को क्या जानें। उनकी मजबूरी है कि वे खादी पहनते हैं और नेहरूकट जैकेट को छोड़ नहीं पाते। बिधूड़ी की पीढ़ी को उनके स्कूल में गांधी पढ़ाये ही नहीं गए। उन्हें तो गोडसे और सावरकार पढ़ाये गए। उन्हें ‘पीर पराई जाने रे!’ भजन सिखाया और सुनाया ही नहीं गया। उन्हें जो पढ़या, सुनाया और सिखाया गया, वो सब देश के सामने है। देश के सामने है कि आप ओमप्रकाश बाल्मीक की कविता इस देश में नहीं पढ़ सकते। यदि आज का भारत गांधी के सपनों का भारत होता तो कदाचित उसमें बिधूड़ी स्वर न गूंजते संसद में। मनोज झा को न धमकाया जाता। भारत के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति सत्तारूढ़ दल के प्रचारकों की तरह इस्तेमाल न किए जा रहे होते।
हमारी पीढ़ी का सौभाग्य है कि हमने गांधी के अधूरे सपनों का भारत भी देखा है और मोदी जी के सपनों का भारत भी। मोदी जी के सपनों का भारत यदि पं. दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सपनों का भी भारत होता तो शायद आज के भारत से तो बेहतर होता। उसमें गांधी की छाप होती। आप उपाध्याय और मुखर्जी की तस्वीरों को देखिए उनके पहनावे में आपको गांधीवाद के दर्शन हो जाएंगे। उनकी जीवनी पढ़िए आपको उनके रहन-सहन में गांधी झलकते दिखाई देंगे। लेकिन उनके अनुयायियों के रहन-सहन में वे भी नहीं हैं। उनके अनुयायी तो जो बाइडेन से मुकाबला कर रहे हैं। पहनावे के मामले भी और खानपान, रहन-सहन के मामले में भी। अगर आज की सरकारी पार्टी अपने ही नेताओं के वाद पर काम करती तो संसद कलुषित न होती। गुजरात में गांधी का आश्रम न उजड़ता। सादगी प्रभुता के भौंडे प्रदर्शन का शिकार न होती।
महात्मा गांधी के जन्मदिन पर मैं जो कुछ कह रहा हूं वो सब अकेले मेरे मन की पीड़ा तो है ही, मुमकिन है कि आपके मन की भी हो और आप उसे व्यक्त न कर पा रहे हों। आज आप गांधी को नमन कर सकते हैं। उनके मार्ग पर न चल पाने के लिए, उनके सपनों का भारत न बना पाने के लिए क्षमा भी मांग सकते हैं। लेकिन बहुत से लोगों के लिए आज का दिन गांधी को एक बार फिर कोसने का दिन है। वे गांधी पर धूल डालने के लिए नए उपक्रमों पर विमर्श कर सकते हैं। उन्हें ये आजादी भी गांधी ने ही दी है। आज के मोदी युग में जिस तरह से मोदीवाद को आरोपित, स्थापित करने की कोशिश कोई जा रही है वो वंदनीय है। वंदनीय इसलिए भी है क्योंकि अब हम हर काम वंदना के लिए करते हैं। हमने हाल ही में नारीशक्ति वंदन कानून बनाया है। हम ईश वंदना के लिए भी कानूनों से लैस हैं। भविष्य में हम नेताओं की वंदना का भी क़ानून बनाएंगे। लेकिन गांधी वंदना भूलकर भी नहीं करेंगे।
हकीकत ये है कि गांधी 75 साल पहले जैसे अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी थे, वैसे ही वे आज की सत्ता की आंख की भी किरकिरी हैं। ऐसी किरकरी जो निकाली नहीं जा सकती। जबकि गांधी किरकिरी नहीं बल्कि सुरमा हैं जो दृष्टि को साफ़ करती है, लेकिन जिन्हें अपनी दृष्टि की चिंता ही नहीं है वे सुरमा को किरकिरी समझने की और उसे आंख से बाहर निकालने की कोशिश का रहे हैं। मुझे आशंका है कि इस कोशिश में कहीं मित्रों की आंख ही न चली जाए। आज की सत्ता को, आज के अवतारों को ये समझ लेना चाहिए कि गांधी सिर्फ नोटों पर ही नहीं बल्कि इस देश की बहुसंख्यक जनता के दिलों पर भी छपे हैं। वे ऐसा टेंटू नहीं है जिसे हटाया जा सके। गांधी की छाप अमिट है। इस देश को गांधी से अलग कर न पहचाना जा सकता है और न जाना जा सकता है। आप देश की पहचान से नेहरू और इंदिरा गांधी या पूरी कांग्रेस को मिटा दीजिए तो भी शायद कोई फर्क न पड़े, किन्तु गांधी के बिना ये देश सांस नहीं ले सकता।
गांधी जी के जन्मदिन पर उनके प्रति श्रद्धान्वत उनके ही रास्ते पर चलने वाले देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को भी नमन करता है। लालबाहदुर शास्त्री आज के प्रधानमंत्री से भी ज्यादा गरीब परिवार से आए थे, लेकिन उन्होंने कभी इसका गीत नहीं बनाया। इसे गाया नहीं। उन्होंने अपनी गरीबी का झुनझुना नहीं बजाया।उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही अपनी तमाम अधूरी हसरतें पूरी करने के लिए खजाने का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने दुनिया घूमने के लिए 8500 करोड़ का विमान भी नहीं खरीदा। उन्होंने कभी किसी को जर्सी गाय भी नहीं कहा। खैर! बापूवाद कल भी प्रासंगिक था, आज भी है और कल भी रहेगा। बापूवाद किसी मोदीवाद की तरह इतिहास नहीं है।
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