– राकेश अचल
चन्द्रयान-3 के बाद अब जी-20 की दिल्ली में होने वाली बैठक सियासत के हाथ का नया औजार है। देश की आम जनता को नहीं पता कि ये जी-20 क्या बला है? जनता तो केवल जी-20 के नाम पर नेताओं के बीच बयानबाजी होते देख रही है। दरअसल जी-20 दुनिया के 20 प्रमुख अर्थ व्यवस्थाओं के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंक के गवर्नर्स का एक संगठन है, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। इसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और यूरोपीय केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। जी-20 का 17वां शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न होगा।
हमारे प्रधानमंत्री और उनकी पूरी पार्टी देश को समझाने में लगी है कि जिस तरह से चन्द्रयान-3 का चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचना देश की एक बडी उपलब्धि है, उसी तरह जी-20 की बैठक का भारत में होना भी भारत की एक बडी उपलब्धि है। देश की जनता को कोई ये नहीं बताता कि ये बैठक एक ‘ओसरा’ है, यानि ये बैठक बारी-बारी से किसी न किसी सदस्य देश में होती है। संयोग से इस बार भारत का नंबर है। इसलिए इसमें उपलब्धि जैसी कोई बात नहीं है। मोदी जी न होते, कोई और भी प्रधानमंत्री होता तो ये बैठक भारत में होती ही। हां इस बैठक के नाम पर दिल्ली को बंद शायद न किया जाता।
कायदे से आज देश में नीरज चौपडा की उपलब्धि की चर्चा होना चाहिए थी, लेकिन नहीं हो रही। या हो रही है तो केवल खेल जगत में हो रही है। सियासत करने वालों को नीरज से कोई मतलब नहीं है। जबकि ओलिंपिक में 120 साल में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट नीरज चोपडा ने वल्र्ड चैंपियनशिप में भी इतिहास रच दिया है। नीरज ने बुडापेस्ट में हुई वल्र्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो का गोल्ड जीत लिया है। फाइनल में उन्होंने 88.17 मीटर के अपने बेस्ट एफर्ट के साथ गोल्डन कामयाबी हासिल की। जी-20 की बैठक से भारत को जो मिलेगा उसकी चर्चा तो बाद में होगी, लेकिन अभी सरकार को इस बैठक पर आंखें बंद कर खर्च भी करना पड रहा है और ये स्वाभाविक भी है। खर्च को लेकर बताए गए अनुमानित आंकडे चौंकाने वाले हैं। सम्मेलन से संबंधित कार्यक्रमों में सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा एक हजार करोड रुपए से अधिक खर्च किए जाएंगे। बुनियादी नागरिक ढांचे के उन्नयन के अलावा सरकार के विभिन्न विभागों और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद द्वारा सौंदर्यीकरण पर 1084 करोड रुपए खर्च होंगे।
सब जानते हैं कि 20 देशों का ये समूह अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है। यह सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक संरचना और अधिशासन निर्धारित करने तथा उसे मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत के बाद अगले साल 2024 के लिए जी-20 की अध्यक्षता ब्राजील के हिस्से में आएगी, इसलिए इस पर सियासत करने का कोई मतलब नहीं है। अर्थात हर घटना, दुर्घटना को अवसर में बदलने की आदत में हमें छोड देना चाहिए। जैसे चन्द्रयान-3 चन्द्रमा पर उतर गया वैसे ही जी-20 की बैठक भी आराम से हो जाएगी। सरकार के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। दिल्ली की सरकार भले ही आम आदमी पार्टी की हो, लेकिन है तो वो भी केन्द्र की मुट्ठी में। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। जब बात देश की है तो आप हो या भाजपा सब मिल-जुलकर आयोजन को कामियाब लकरने का प्रयास करेंगे ही। कर ही रहे हैं। इसलिए इस बैठक के नाम पर सियासत करने की कोई जरूरत वैसे है नहीं।
हर घटना को उपलब्धि में ढालना भाजपा की मजबूरी है या आदत, ये तय करना होगा। भारत में जी-20 से पहले भी अनेक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हो चुके हैं, लेकिन उनको कभी किसी पार्टी की उपलब्धि के रूप में प्रचारित नहीं किया गया। किया भी नहीं जाना चाहिए। किन्तु जब उपलब्धियों के नाम पर झोली खाली हो तो हर राजनीतिक दल की मजबूरी बन जाती है कि वो हर छोटी-बडी घटना को अपनी उपलब्धियों के नाम पर प्रचारित करे। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि सरकार ऐसे अवसरों पर सचमुच सरकार के अलावा सभी को साथ में लेकर आयोजन करे। इसी से देश की प्रतिष्ठा बढती है। ढोल पीटने से नहीं। ये मौका है जब कांग्रेस और दूसरे दल भी सरकार पर हमलावर होने के बजाय खामोश रहें। अभी बैठक के खर्च का हिसाब-किताब न मांगे। पहले बैठक हो जाने दें और बाद में यदि सरकार सियासत करना बंद न करे तो विपक्ष को भी आजादी है कि वो सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले।
भारत की राजनीति करने वाली पार्टियों को जानना चाहिए कि जी-20 में भारत से बहुत छोटे देश भी शामिल हैं और वे भी अपनी बारी आने पर अपनी क्षमता से इस समूह की बैठकों की मेजबानी करते हैं। समूह के सदस्य देशों में अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। स्पेन स्थाई अतिथि है। भारत के मुकाबले छोटे दशों के लिए समूह की बैठकों की मेजबानी करना एक बडी उपलब्धि हो सकती है, लेकिन भारत के लिए तो ये एक आम बात होना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह चुके हैं कि हम जी-20 की बैठक के जरिये भारत के अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक संभावित टेंपलेट के रूप में पेश करेंगे। हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि वैश्विक दक्षिण में हमारे साथ-चलने वाले देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती है, के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा’। प्रधानमंत्री जी ने इस आयोजन के लिए बडे-बडे विज्ञापन देना शुरू कर दिए हैं। दुनिया के दूसरे देश भी ऐसा ही करते हैं ये हम नहीं जानते, लेकिन हमारे यहां सरकारें और राजनीतिक दल विज्ञापनों और होर्डिंग्स के जरिये ही जनमानस में जगह बनाने की कोशिश करते हैं। इस समय देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की धूम है, इसलिए देश के अखबार पहले से खबरों के बजाय विज्ञापनों से भरे पडे हैं। जी-20 के विज्ञापन तो अखबारों के लिए सोने पर सुहागा हैं।