फिर एक मन्दिर तोड दिया

-अशोक सोनी निडर


संस्कृति के सुंदर मुखडे को विकृत करके छोड दिया।
दुष्ट दरिंदों ने अस्मत का फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

कितनी मिन्नत की अबला ने, पर न सुनी दीवानों ने।
आंधी बनकर मचली लेकिन दबा दिया तूफानों ने।।
सिंदूरी सपनों का कुमकुम लूट लिया शैतानों ने।
हैवानों को माफ कर दिया कुछ वहशी इंसानों ने।।
बोटी-बोटी नौंच-नौंच कर सारा रक्त निचोड दिया।
दुष्ट दरिंदों ने अस्मत का फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

वक्त हंसा इस कदर उम्र भर, वो न कभी हंस पाएगी।
बिखर गया कर्पूर आरती अब कैसे हो पाएगी।।
अपने मन पर बोझ देर तक सहन नहीं कर पाएगी।
मर जाए तो ठीक अन्यथा, जीते जी मर जाएगी।।
मातम की गलियों में उसके जीवन का रथ मोड दिया।
दुष्ट दरिंदों ने अस्मत का फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

नारी केवल नारी नहीं, वो प्राण सुधा होती है।
जिसके पय को पी-पी कर हर सांस जवां होती है।।
अपना दिल अपनी धडकन, वो अपनी जां होती है।
कुछ भी होने से पहले हर नारी मां होती है।
पूजा के काबिल प्रतिमा को पटक-पटक कर फोड दिया।
दुष्टों दरिंदों ने अस्मत का फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

बिक जाता है पुलिस प्रशासन कुछ रुपयों की थैली पर।
बच जाते हैं गुण्डे सारे कोरी चादर मैली कर।।
बिटिया तो घर से निकली पर लेकर जान हथेली पर।
कैसे बहना लौटेगी अब अपने आप अकेली घर।।
साहस की जननी का देखो डर से नाता जोड दिया।
दुष्ट दरिंदों ने अस्मत का फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

संस्कृति के सुंदर मुखडे को विकृत करके छोड दिया।
दुष्ट दरिंदों ने अस्मत का ,फिर एक मन्दिर तोड दिया।।

कवि- राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उप्र के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी/ उत्तराधिकारी संगठन मप्र के प्रदेश सचिव हैं।