अमरीकी सीनेटरों से सीखें हमारे सांसद

– राकेश अचल


छोटे मुंह से बड़ी बात करने का दुस्साहस कर रहा हूं। भारत के सांसदों को मश्विरा दे रहा हूं कि वे देश और दुनिया के हित में जरूरी मुद्दों पर अपने भाग्य विधाताओं से ‘मन की बात’ करने का गुर अमरीकी सीनेटरों से सीखें। अमरीकी सीनेटरों में इतना साहस और नैतिकता है कि वे अपने देश के राष्ट्रपति को खत लिखकर ये कह सकते हैं कि उन्हें अपने राजकीय अतिथि से किन-किन मुद्दों पर बात करना चाहिए। हमारे यहां के सत्तारूढ़ दल के सांसद तो छोडिय़े विपक्ष के सांसद भी ये सरल काम नहीं कर पाते।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कीअमेरिका की पहली ‘आफीसियल स्टेट विजिट’ में अमरीकी सांसदों का खत ‘पहले ही कौर में मख्खी’ के आने जैसा है। अमरीकी सीनेटरों ने अपने राष्ट्रपति से भारत के जिन मुद्दों पर बात करने की मांग की है वे सब हमारा अंदरूनी मामला है, लेकिन मजाल कि भारत के एक सांसद ने अमरीकी सीनेटरों के खत पर एक शब्द कहा हो। कह नहीं सकते क्योंकि अमरीकी सीनेटरों ने जो कुछ रेखांकित किया है उसमें से खण्डन करने लायक हमारे पास कुछ है ही नहीं। हम किस मुंह से अमरीकी सीनेटरों के इस लांछन को झुठला सकते हैं कि हमारे यहां प्रेस की आजादी, धार्मिक सहिष्णुता और इंटरनेट को खतरा नहीं है?
अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी की हवाई अड्डे पर अगवानी करने अमरीका के राष्ट्रपति नहीं आए। इसका बुरा जब प्रधानमंत्री को नहीं लगा तो आखिर हमें क्यों लगे? कायदे से जैसे पं. जवाहरलाल नेहरू की अगवानी करने तत्कालीन राष्ट्रपति हवाई जहाज की सीढिय़ों तक चढक़र गए थे वैसे ही यदि वाइडन भी मोदी का स्वागत करते तो उनका क्या बिगड़ जाता। लेकिन वे नहीं आए। अब नहीं आए तो नहीं आए। हम और आप कर क्या सकते हैं। वाइडन कम से कम आफीसियल स्टेट विजिट पर मोदी को बुलाकर व्हाइट हाउस में 21 तोपों की सलामी और राजकीय भोज तो दे रहे हैं।
भारत के राष्ट्रवादियों की तरह हम भी खुश हैं कि अघोषित (स्वघोषित) विश्वगुरू ने कम से कम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर कम से कम 180 देशों कि लोगों की अगवाई तो की। कायदे से मोदी जी के योग शिविर में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी आना चाहिए था, लेकिन उनकी मर्जी। धार्मिक सहिष्णुता के मामले में दुनिया के 180 देशों की रैंकिंग में 150वे स्थान पर आने वाले भारत ले लिए अमेरिका में योगासन लगना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है, हमें इस पर गर्व हैं। आखिर मोदी जी कुछ तो कर रहे हैं। योग को पहचान दिलाना कोई आसान काम है भला? ये काम तो महर्षि पतंजलि भी नहीं कर पाए। बाबा रामदेव ने जरूर कोशिश की थी।
बहरहाल भारत में इंटरनेट पर पाबंदी की अमरीकी चिंताओं को खारिज करने का हमारे पास कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि जब मोदी जी अमेरिका में हैं तब हमारे मणिपुर में इंटरनेट पर पाबंदी है। मोदी जी के राज में इंटरनेट पर साल में सबसे ज्यादा पाबंदी लगाई गई, कम से कम 134 बार। लगाना पड़ती है। कांग्रेस के जमाने में ये झंझट था ही नहीं। अगर होता तो कांग्रेस भी शायद पीछे नहीं रहती। सरकार आखिर अपना मुंह तो बंद नहीं कर सकती। इंटरनेट बंद कर सकती है, सो करती है। इसमें अमरीकी सीनेटरों को आपत्ति क्यों है? आखिर अमेरिका क्यों चाहता है कि हम यानि भारत भी वैसा ही लोकतंत्र बनाएं जैसा अमरीका में है। भला हम अमरीका की नकल क्यों करें? अमरीका चाहे तो हमारी नकल करे! हमारा लोकतंत्र अमेरिका के लोकतंत्र से पुराना जो है।
हम और आप अमेरिका को कोई आज से जानते हैं, अमेरिका जन्मजात बनिया ठहरा। वो एक तरफ मोदी को 21 तोपों की सलामी दे रहा है तो दूसरी तरफ भारत की पड़ौसी चीन में भी जाकर वहां के राष्ट्रपति से गलबहियां कर रहा है। वहां सब काम राष्ट्रपति को नहीं करना पड़ते, उनके कैबिनेट के दूसरे सदस्य भी करते हैं। हमारे यहां तो कैबिनेट में हैं ही दो सदस्य। एक मोदी जी और दूसरे शाह साहब। बांकी तो राष्ट्रपति जी की तरह रबर की मुहरे भर हैं। हमारे यहां सारा देशी-विदेशी काम इन दो लोगों को ही करना पड़ता है। जब कभी जयशंकर जैसों को भी काम मिल जाता है।
बहरहाल अमेरिका को मोदी का अहसान मानना चाहिए कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के भाग्यविधाता होने के बावजूद अहंकारी नहीं है और अमेरिका सरकार के बुलाए बिना भी बार-बार मेरी तरह अमेरिका जा धमकते हैं। उन्हें ऑफिसियल स्टेट विजिट की दरकार कभी नहीं रही। वे बीते नौ साल में कम से कम आठ बार तो अमेरिका हो आए, लेकिन जो बाइडेन ने ये उदारता नहीं दिखाई। मोदी की तरह उदार राष्ट्रप्रमुख दुनिया में शायद ही कोई हो। वे तो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रैम्प के चुनाव प्रचार तक में जाने से नहीं हिचके। मेरे ख्याल से मोदी जी को अमेरिका के बजाय चीन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि कम से कम चीन के राष्ट्रपति सही जिनपिंग एक से अधिक बार तो भारत आए। ये व्यवहार तो ‘ले पपरिया, दे पपरिया’ जैसा होना चाहिए।
बातचीत का मुद्दा अमरीकी सीनेटरों से सीखने का था। हम फिर चाहते हैं कि हमारे सांसद अमरीकी सीनेटरों की तरह निडर बनें। वे विदेशी मामलों में भले ही दखल न दें, किन्तु घरेलू मामलों में तो प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी लिखने की आदत डाल ही लें। यदि उनके पास मुद्दे नहीं हैं तो अमरीकी सीनेटरों की चिट्ठी में रेखांकित किए गए मुद्दों पर ही प्रधानमंत्री जी को चिट्ठी लिखें। मणिपुर पर लिखें, जम्मू-कश्मीर पर लिखे। चिट्ठी लिखना अच्छी बात होती है। हमारे यहां तो चिट्ठियां साहित्य का भी अंग रही हैं, मुझे पूरा यकीन है कि यदि हमारे सांसद प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखकर कोई बात कहेंगे तो प्रधानमंत्री जी जरूर गौर करेंगे। चिट्ठी लिखना कोई राष्ट्र विरोधी कृत्य थोड़े ही है। चिट्ठी लिखने से सौहार्द बढ़ता है, मसले सुलझते हैं।
मुझे याद है कि एक जमाने में देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और तबके गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल के बीच एक ही शहर में रहते हुए भी खतोकिताबत होती रहती थी। सुबह की चिट्ठी के जवाब में शाम की चिट्ठी लिख दी जाती थी। अब आम जनता ही नहीं सरकार और हमारे सांसद, विधायक तक चिठियां लिखना भूल गए हैं। चिट्ठियां न लिखने से राष्ट्र का बहुत नुक्सान हो रहा है। देश में धार्मिक असहिष्णुता शायद इसीलिए बढ़ी है। लिखा-पढ़ी चलती रहती तो शायद ये नौबत न आती कि हमारे घरेलू मामले पर कोई अमरीकी बोलता। हम तो कभी अमरीका में मानवाधिकारों के हनन, रंगभेद और इंटरनेट जैसे मुद्दों पर कभी कुछ कहते। अमेरिका को भारत से वीतरागी होना सीखना चाहिए, हम अमेरिका से चिट्ठी लिखना सीख सकतें है। चिट्ठियां द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। अमेरिका में सीनेटरों और राष्ट्रपति के रिश्तों में कड़वाहट शायद इसीलिए कम है क्योंकि वहां के सीनेटरों को राष्ट्रपति के नाम चिट्ठी लिखने की आजादी है। चिट्ठी लिखने को अमरीका में बुरा नहीं माना जाता। जो बाइडेन ने अपने सीनेटरों को चिट्ठी लिखने पर झिडक़ा नहीं। ये नहीं कहा कि आप कौन होते हैं हमें मश्विरा देने वाले? अमेरिका में कोई किसी भी दल का हो सबसे पहले अमरीका के बारे में सोचता है। हमारे यहां देश के बारे में बाद में पहले अपने दल और अपनी सरकार के बारे में चिंतन को प्राथमिकता दी जाती है।
कुल जमा हमारी और हर भारतीय की यही इच्छा है कि मोदी जी की अमरीका यात्रा कामयाब हो। उन्हें भी द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने में वो ही सुयश मिले जो पूर्व कि प्रधानमंत्रियों को बिना योगासन लगाए मिला। हमें उम्मीद है कि हमारे सांसद भी मोदी जी की इस यात्रा कि दौरान अमरीकी सीनेटरों द्वारा दिए गए चिट्ठी ज्ञान को आत्मसात करेंगे।