तवांग में गलवांन जैसा जबाब देकर भारतीय सेना ने चीन का घमंड कर दिया खण्ड खण्ड : मुदगल

भारत तिब्बत सहयोग मंच की तवांग तीर्थयात्रा ने चीन का लिया है चैन

भिण्ड, 13 दिसम्बर। तवांग में चीनी सैनिकों से विगत नौ दिसंबर को हुई झड़प को लेकर भारत तिब्बत सहयोग मंच युवा विभाग के राष्ट्रीय महामंत्री अर्पित महेश मुदगल ने भारतीय सेना के शौर्य की प्रशंसा की है। तवांग में भारतीय सीमा में घुसे 300 चीनी सैनिकों का भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया है।
मुदगल ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में भारत और चीन के सैनिकों के बीच एक बार फिर से झड़प हुई। इस बार ये संघर्ष अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ। नौ दिसंबर को करीब 300 पीएलए सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में एलएसी को क्रॉस करने की कोशिश की। पीएलए की इस हरकत का भारतीय सैनिकों ने दृढ़ता और सूझबूझ से मुकाबला किया। इस आमने-सामने की लड़ाई में दोनों पक्षों के जवानों को मामूली चोटें आईं। हालांकि, दोनों पक्ष तुरंत इलाके से पीछे हट गए। बाद में क्षेत्र में भारत के कमाण्डर ने शांति बहाल करने के लिए अपने चीनी समकक्ष के साथ एक फ्लैग मीटिंग भी की। मिली जानकारी के मुताबिक इस झड़प में भारत के सैनिक घायल हुए हैं, वहीं चीन के भी कई सैनिक घायल हुए हैं, जिनकी संख्या अधिक बताई जा रही है। हालांकि भारत का कोई भी सैनिक गंभीर रूप से घायल नहीं है। अक्टूबर 2021 में अरुणाचल प्रदेश के यांगत्से में भी दोनों देशों के सैनिकों में विवाद हुआ था, लेकिन ऐसी नौबत नहीं आई थी। 15 जून 2020 की घटना के बाद यह अपनी तरह की पहली घटना है। तब लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे। सूत्रों के अनुसार इस झड़प में चीन के ज्यादा सैनिक चोटे खाए हैं।
राष्ट्रीय महामंत्री अर्पित महेश मुदगल ने भी एक टिप्पणी करते हुए कहा भारतीय सेना ने तारीफ की, जिस तरह से चीन की घुसपैठ को नाकाम करते हुए एलएसी पर रोड़ा कर रहे चीनी ड्रैगन को बुरी तरह से खदेड़ा गया है, इससे चीन बौखला रहा है। अब चीन को करारा जबाब देने का समय आ गया है, क्योंकि चीन बार-बार 1962 की तरह छल से विस्तारवादी नीति को बढ़ाने का दुस्साहस कर रहा है। लेकिन शायद चीन यह भूल रहा है कि चीन की सीमा चीन की दीवार है, वैसे भी अब यह 1962 का नहीं बल्कि 2022 का भारत है, जो विश्व में शांति का पैगाम देना जानता है तो किसी भी वैश्विक महाशक्ति से निपटने की क्षमता भी रखता है। चीन की सरकार और उसकी सेना को यह भलीभांति अहसास डोकलाम और गलवांन में हो चुका है, अब फिर तवांग में जो बखेड़ा उसने खड़ा करने का प्रयास किया, उसका माकूल जबाब भारतीय सेना से उसे मिल गया है।
उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में जिस प्रकार के राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत राष्ट्रवादी कार्यक्रम होने लगे हैं, तबसे चीन की सिटीपीटी गुम हो गई है, उसे मालूम है अब भारतीय जनमानस तिब्बत की आजादी, कैलाश मानसरोवर की मुक्ति के लिए बेचैन है, अब चीन पहले की तरह भरतीय सीमा में घुसपैठ भी नहीं कर सकता, क्योंकि आज भारत की सेना के जवान हर मोर्चे पर मुस्तैदी से डटे हैं।