राजीव गांधी की जरा याद करो कुर्बानी

सदभावना दिवस पर विशेष

– राकेश अचल


भारत में सबसे कम 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी यदि जीवित होते तो आज वे 81 साल के हो जाते, लेकिन राजीव गांधी नान वायलोजीकल नहीं थे इसलिए उनकी हत्या कर दी गई। 20 अगस्त 1944 को मुंबई में जन्मे राजीव गांधी बाद में देश की प्रधानमंत्री बनी श्रीमती इन्दिरा गांधी के पुत्र थे। 21 मई 1991 को तमिलनाडु में उनकी तमिल आतंकियों ने नृशंस हत्या कर दी थी।
मैं मानता हूं कि आज के दौर में किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री का, खासतौर पर गांधी परिवार के सदस्य का नाम लेना राष्ट्रद्रोह है। लेकिन मैं राजीव गांधी का जिक्र कर रहा हूं, क्योंकि मैं किसी राजनीतिक दल का नहीं बल्कि आम आदमी का माउथपीस हूं। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने के लिए पैदा हुए ही नहीं थे, वे तो एक भारतीय पायलट थे, जिन्हें 1984 में उनकी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद भावुकता में प्रधानमंत्री बनाया गया था। राजीव गांधी ने 1989 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1989 के चुनाव में अपनी हार तक पदभार संभाला और फिर लोकसभा में विपक्ष के नेता बने और अपनी हत्या से छह महीने पहले दिसंबर 1990 में इस्तीफा दे दिया था।
राजीव गांधी का विवाह 1968 में इटली की सोनिया से हुआ। राजीव गांधी के एक पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका हैं जो बाड्रा परिवार में व्याही हैं। राहुल गांधी ने देश सेवा के लिए अब तक अपना घर नहीं बसाया। आपको पता ही होगा कि राजीव गांधी के पिता फिरोज गांधी भी कांग्रेस के सांसद रहे। राजीव के नाना देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू थे। राजीव गांधी की शैक्षणिक योग्यता पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया गया। क्योंकि वे लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज और इंपीरियल कॉलेज लंदन में पढने गए थे। भारत सरकार ने बाद में राजीव गांधी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
सब जानते हैं कि राजीव गांधी का महात्मा गांधी से कोई सीधा संबंध नहीं था। वे राजनीतिक रूप से शक्तिशाली नेहरू-गांधी परिवार से थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुडा था। उनके बचपन के अधिकांश समय में उनके नाना जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। गांधीजी ने दून स्कूल, एक कुलीन बोर्डिंग संस्थान और फिर यूनाइटेड किंगडम में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। वे 1966 में भारत लौट आए और राज्य के स्वामित्व वाली इंडियन एयरलाइंस के लिए एक पेशेवर पायलट बन गए। वे चाहते तो सांसद भी बन सकते थे, लेकिन वे राजनीति के लिए बने ही नहीं थे। 1970 के दशक के अधिकांश समय में उनकी मां प्रधानमंत्री थीं और उनके छोटे भाई संजय एक सांसद थे, वे जब तक बस चला अराजनीतिक ही रहे। वो तो 1980 में एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु के बाद गांधी अपनी मां के कहने पर अनिच्छा से राजनीति में आए। अगले वर्ष उन्होंने अपने भाई की अमेठी संसदीय सीट जीती और भारतीय संसद के निचले सदन, लोकसभा के सदस्य बने।
राजीव गांधी को उनकी मां श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बाकायदा राजनीति का प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षु राजीव गांधी को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाया गया और 1982 के एशियाई खेलों के आयोजन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। 31 अक्टूबर 1984 की सुबह उनकी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या बाद राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। प्रधानमंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें अपने नेतृत्व की परीक्षा भी देना पडी, क्योंकि पूरे देश में आक्रोशित संगठित भीड ने सिख समुदाय के खिलाफ दंगे शुरू कर दिए। दंगों के बावजूद दिसंबर में जब आम चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद का सबसे प्रचण्ड बहुमत हासिल किया। लोकसभा में कांग्रेस को 541 में से 414 सीटें मिलीं। आज के प्रधानमंत्री के लिए इतना प्रचण्ड बहुमत हांसिल करना एक सपना बनकर रह गया। वे 400 पार का लक्ष्य लेकर पिछला आम चुनाव लडे किंतु 240 सीटों पर ही सिमिट गए।
राजीव गांधी का कार्यकाल भोपाल आपदा, बोफोर्स घोटाला और मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम जैसे विवादों में घिरा रहा। 1988 में वे उग्रवादी तमिल समूहों को नाराजगी के शिकार बन गए, क्योंकि राजीव गांधी ने 1987 में हस्तक्षेप किया, श्रीलंका में शांति सेना भेजी, जिसके परिणामस्वरूप लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के साथ खुला संघर्ष हुआ, 1989 के चुनाव में उनकी पार्टी हार गई।
राजीव गांधी ने मैदान नहीं छोडा। राजीव गांधी 1991 के चुनावों तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे। चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे के एक आत्मघाती हमलावर ने उनकी हत्या कर दी। 1991 में भारत सरकार ने गांधी को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। 2009 में इंडिया लीडरशिप कॉन्क्लेव में गांधी को मरणोपरांत आधुनिक भारत के क्रांतिकारी नेता का पुरस्कार प्रदान किया गया।
राजीव गांधी दुस्साहसी नेता थे। 1986 में उन्होंने सेशेल्स के राष्ट्रपति फ्रांस-अल्बर्ट रेने के अनुरोध पर तख्तापलट की कोशिश का विरोध करने के लिए भारत की नौसेना को सेशेल्स भेजा। भारत के हस्तक्षेप ने तख्तापलट को टाल दिया। इस मिशन को ऑपरेशन फ्लावर्स आर ब्लूमिंग नाम दिया गया था। 1987 में भारत ने ऑपरेशन राजीव जीतने के बाद भारत-पाकिस्तान सीमा के विवादित सियाचिन क्षेत्र में कायद पोस्ट पर फिर से कब्जा कर लिया। 1988 के मालदीव तख्तापलट में मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने गांधी से मदद मांगी। उन्होंने 1500 सैनिक भेजे और तख्तापलट को दबा दिया गया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 15वें विशेष सत्र में राजीव गांधी ने परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व पर अपने विचार व्यक्त किए, जिसे ‘परमाणु-हथियार मुक्त और अहिंसक विश्व व्यवस्था की शुरुआत के लिए कार्य योजना’ के माध्यम से साकार किया जाना था। मैं राजीव गांधी का गुणगान करने के लिए ये लेख नहीं लिख रहा, मेरा मकसद आज की पीढी को ये बताना है कि यदि देश को युवा नेतृत्व मिले तो कमाल भी हो सकता है।
राजीव गांधी की देशी, विदेशी नीति सफल थी या असफल इसके लिए आपको अतीत में जाना पडेगा, मैं तो एक ही बात कह सकता हूं कि यदि राजीव गांधी की हत्या न की गई होती तो वे दोबारा सत्ता में आते और अपनी गलतियों को शायद सुधारते। राजीव गांधी वैश्विक पर्यटक नहीं थे। अहंकारी तो बिल्कुल नहीं थे। उनकी हत्या से ठीक तीन दिन पहले भिण्ड शहर में एक चुनाव सभा के बाद हमने उनसे बातचीत की थी। वे प्रेस से भागने या बचने वाले नेता नहीं थे। बहरहाल उनके जन्मदिन पर उनका स्मरण करना मुझे अच्छा लगा। शायद आपको भी अच्छा लगे।