– डॉ. सुनील त्रिपाठी निराला भिण्ड
भारतीय दर्शन, परंपरा संस्कृति की जब भी चर्चा होती है तो उसमें जिस महान व्यक्तित्व का प्रसंग उभर कर आता है वह हैं राम। अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम, लोकनायक के रूप में स्थापित आराध्य राम, असत्य पर धर्म की जीत के प्रणेता राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदि नामों से विभूषित। ऐसा है श्रीराम का व्यक्तित्व। लौकिक रूप में मान्यता यही है कि वैदिक धर्म जिसको सनातन धर्म भी कहा जाता है के आदिदेव विष्णु के अवतार हैं राम, उन्होंने लंका के राजा रावण का विनाश करने के लिए धरती पर अवतार लिया। कहा यह भी जाता है कि रावण एक पूरे परंपरा से गुजर कर के लंका के राजा बने, इसके पूर्व स्वयं विष्णु के दरबार में जय और विजय के नाम से द्वारपाल, हिरण्य कश्यप और हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया, इसके उपरांत प्रतापभान और उनके भाई और उसके भाई के रूप में उन्होंने जन्म लिया और इन अवतारों को अन्यान्य कर्म से देव कोप, ऋषि कोप का शिकार बनना पडा और वह आगे चलकर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के रूप में अवतरित हुए।
जहां तक रावण का प्रसंग है तो आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास लिखा है वयम रक्षामि, उसके अनुसार रावण रक्ष संस्कृति की अधिष्ठाता थे। इसका मूल अर्थ है कि मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा तुम हमारे पाले में आ जाओ, हमारे खेमे में आ जाओ, हमारी शरण में आ जाओ। कहने का तात्पर्य है कि हमारी अधीनता स्वीकार कर लो तुम्हारी रक्षा की जिम्मेदारी में लेता हूं, यह मूल मंत्र था रक्ष संस्कृति का। रक्ष संस्कृति के प्रतापी राजाओं में रावण का नाम आता है। रावण ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी जगत जननी, जनक दुलारी सीता का वन में छल पूर्वक अपहरण किया। यहां इस शब्द पर विशेष ध्यान देने वाली बात है कि रावण ने सीता जी का छल पूर्वक अपहरण किया। रावण ने अपने मामा मारीच को प्रेरित किया, धमकाया कि वह कैसे भी भुलावा देकर की राम-लक्ष्मण को कुटिया से दूर ले जाएं। मान्यता तो यह भी है कि मारीच अपने वेश बदलने में प्रसिद्ध था सो उसने सोने के हिरण का रूप धारण किया और उसकी चर्म के लिए सीताजी ने रामजी से कहा, रामजी गए वहां षडयंत्र पूर्वक उसने मुंह से आवाज निकाली, हा! लक्ष्मण यहां एक के तत्व की बात है कि मारीच के द्वारा बार-बार हा! लक्ष्मण की आवाज निकालने पर भी लक्ष्मण जी ने सीता की रक्षा का जो दायित्व स्वीकार किया था उसको नहीं त्यागा; तब एक चौपाई आती है कि
कटुक वचन सीता जब बोला।
हरि प्रेरित लक्ष्मण मन डोला।।
लक्ष्मण जी वहां से चले जाते हैं और एकांत देखकर रावण साधु के वश में आता है और सीता जी का अपहरण करके ले जाता है। एक राजा के द्वारा किसी विवाहित स्त्री का अपहरण करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता। सामंती परंपरा में कुंवारी कन्याओं का अपहरण करके उनसे विवाह करने के तो अनेक उदाहरण हैं लेकिन किसी की विवाहित स्त्री का अपहरण करना निम्नकर्म की श्रेणी में आता है और यही राम-रावण युद्ध का कारण बना। राम ने अपने पूरे जीवन में लोक व्यवहार का पालन किया, क्योंकि शंकर जी ने पार्वती जी से कहा है उमा करें रघुपति नर लीला। जब वह नर के रूप में अवतरित हुए हैं तो उन्होंने नर लीला पूरी तरह से की। लोक व्यवहार में मान्यता, मर्यादा की स्थापना करने के लिए सौतेली मां कैकेई द्वारा वरदान मांगे जाने की बात को सहजता में स्वीकार कर लिया अर्थात यहां उन्होंने सौतेली मां को अपने मां के समान सम्मान दिया, साथ ही पिता के वचनों का पालन किया। आगे चलकर हम देखते हैं कि वन में राम, लक्ष्मण और सीता अपने प्रवास के दौरान अलग-अलग ऋषि मुनियों के आश्रम में जाते हैं, वहां ज्ञान सीखते हैं, सीता जी भी ज्ञान सीखती हैं। सीता का अनसूया का प्रसंग प्रसिद्ध है जहां वह पतिव्रत धर्म की सीख देती है।
अब अगर हम अवतार की बात करें तो राम, लक्ष्मण या सीता को कुछ भी सीखने की आवश्यकता नहीं थी। सीताजी जगत जननी हैं, राम विष्णु के अवतार हैं, लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं, लेकिन बात वहीं आ जाती है कि यदि आप नर लीला कर रहे हैं तो नरोचित समस्त कार्य आपको संपादित करने होंगे और राम ने इसको बखूबी संपादित किया।
एक प्रसंग उनसे यह भी जुडा है कि उन्होंने बाली को छलपूर्वक मारा। बाली को छलपूर्वक नहीं मारा। बाली ने भी वही कार्य किया था सुग्रीव की विवाहित पत्नी का अपहरण करके उसने अपने महल में रख लिया था। नरलीला के फलस्वरूप राम ने बाली को प्राप्त वरदान की मर्यादा बचाने के लिए तरूओट में आकर बाली का वध किया। यह नरलीला थी मर्यादा का पालन करने के लिए कुछ कार्य ऐसे भी करने पडते हैं जो अमर्यादित दिखाई देते हैं किंतु होते नहीं क्योंकि बाली को जो वरदान प्राप्त था वह देवताओं के द्वारा दिया गया था। देवताओं के वचनों का निरादर या निराकरण राम करते तो यह मर्यादित नहीं होता।
दीपावली से राम का प्रसंग इस प्रकार जुडा है कि दशहरा को लंका के राजा रावण का वध हुआ और उसके बाद राम अपने राज्य अयोध्या वापस आए और उनके आगमन की खुशी में लोगों ने दीप जलाकर के उनका स्वागत किया, तब से ही दीपावली का त्यौहार मनाया जा रहा है। दीपावली का त्योहार पांच दिवसीय होता है। धनतेरस जो धनवंतरी देवता के नाम से जानी जाती है आज भौतिकवाद में इस दिन को सामान खरीदने के लिए लोगों ने नियत कर दिया जबकि यह आरोग्य वर्धन दिवस है। धनवंतरी वैद्य के रूप में स्थापित हैं और दीपावली के पहले पहले ऋतु परिवर्तन होता है। बरसात की ऋतु सर्दी की ऋतु में परिवर्तित होती है और इस अवधि में रोग ज्यादा बढाते हैं, शारीरिक वेदना ज्यादा बढती हैं इसलिए यह आरोग्य दिवस है। अगला दिन आता है रूप चौदस का (नरक चौदस) यानि दीपावली के पूर्व की तैयारी साफ-सफाई, स्वच्छता फिर लक्ष्मी पूजन। अगले दिन आता है गोधन गोवर्धन इसको गोवर्धन पहाड से जोडने की जो परंपरा है वह कालांतर में जोडी गई है। मूल परंपरा यह है कि भारत कृषि प्रधान देश रहा है; आज भी है। पूरा आर्यावर्त कृषि प्रधान देश था। सिंधु घाटी की सभ्यता सहित अनेक अनियन सभ्यताएं इस बात का प्रमाण है कि यह कृषि प्रधान देश था और गोधन यानी गाय का धन। गाय का धन बैल, गाय का धन बछडे। गाय दूध देती थी और बछडे कृषि कार्य में काम आते हैं, इसलिए यह कृषि पूजन का दिवस है। अगला दिन आता है भाईदूज यह भी हमारी परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है; जिसमें भाई-बहन के पवित्र रिश्तों को समाज में स्थापित करने का उपक्रम सदियों से चला रहा है, इसी क्रम में हम भाई-दूज मानते हैं। तो आइए हम एक बार फिर संकल्प लें कि दीपावली की जो अवधारणा है उसका पूरा पालन करें, आरोग्य दिवस, दीपावली के पूर्व साफ स्वच्छता, धन पूजन, ईश्वर पूजन, गोवर्धन पूजन और भाई बहन के रिश्ते, सामाजिकता के रिश्ते बने रहें।