– राकेश अचल
मेरा ज्योतिष में किंचित क्या रत्ती भर विश्वास नहीं है, लेकिन मेरे विश्वास करने और न करने से क्या फर्क पडता है। देश की बहुसंख्यक जनता का विश्वास तो है ज्योतिष पर और इसी विश्वास के सहारे देश का कारोबार, बाजार चलता आ रहा है। ज्योतिषी जब बताते हैं तब हमारे यहां नेता चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करते है। हम खुद ज्योतिषी के बताये मुहूर्त पर गृह प्रवेश करते हैं। और तो और भांवरें डालते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है कि हम खरीद-फरोख्त भी ज्योतिषियों द्वारा बताए गए महूर्त के हिसाब से ही करते हैं।
मैंने जब से होश सम्हाला है तब से देखता आ रहा हूं कि हमारे भारतीय ज्योतिषी मुहूर्तों के बारे में पूछने पर ही बताते हैं और वो भी दक्षिणा लेने के बाद। वे पत्रा/ पंचांग तभी खोलते हैं जब चढौती चढा दी जाए। लेकिन खरीद-फरोख्त के लिए शुभ मुहूर्त बताते हुए ज्योतिषी किसी से कोई दक्षिणा नहीं मांगते। बस बता देते हैं कि कब मकान खरीदना है, कब सोना-चांदी खरीदना है, कब वाहन खरीदना है। त्यौहार के मौसम में ज्योतिषी ऐसे-ऐसे दुर्लभ मुहूर्त बताते हैं कि जनता बावली हो जाती है। जनता को बाबला कर ये ज्योतिषी बाजार की बल्ले-बल्ले करा देते हैं। एक ही दिन में साल-छह महीने का कारोबार हो जाता है। लगता है कि बाजार कि और ज्योतिषियों कि कोई दुरभि संधि है।
हम उन लोगों में से हैं जो अपना हर काम ‘अबूझ मुहूर्त’ में करते है। ज्योतिषियों के बताए मुहूर्त के फेर में नहीं पडते, इसीलिए चाहे जितना दुर्लभ मुहूर्त हो हम बाजार की और रुख नहीं करते। हालांकि हमारे घर में दूसरे लोग नजर बचाकर बाजार से खरीदारी कर लेते हैं, हम धनतेरस को भी चम्मच/ घंटी से ज्यादा कुछ नहीं खरीदते। खरीदना भी नहीं है क्योंकि ज्योतिषी तो साल में दस बार दुर्लभ मुहूर्त बताते हैं। यदि उनके हिसाब से खरीदारी करने लगे तो घर का बजट ही फेल हो जाए।
अब इस साल ही देख लीजिए। ज्योतिषियों ने कहा है कि इस साल 24 अक्टूबर को जो दुर्लभ मुहूर्त बना है वो आज से 752 साल पहले बाना था। कमाल की बात है न कि जब दुनिया में कंप्यूटर नहीं जन्मा था तब भी हमारे ज्योतिषियों का गुणा-भाग चलता था और उन्हें आज भी कंप्यूटर नहीं बल्कि उनका अपना पत्रा/ पंचांग ही सैकडों साल पुराने मुहूर्त के बारे में बता देता है। मुझे कभी-कभी लगता है कि देश की असली सेवा हमारे ज्योतिषी ही करते हैं, लेकिन कभी-कभी इनके ऊपर शक भी होता है, क्योंकि ज्योतिषी आज तक ये नहीं बताए कि देश के अच्छे दिन कब आएंगे?
आपको बता दूं कि मैं जिस शहर में रहता हूं वो एक बडे गांव जैसा ही है। महाराजाओं का शहर है। यहां न सिटी बस है और न मेट्रो रेल। लेकिन वहां भी इस मुहूर्त के फेर में एक दिन में एक हजार वाहनों की खरीद हो गई। मकान खरीदने वालों को मुहूर्त के हिसाब से रजिस्ट्री करने के लिए मुंह-मांगी रिश्वत देने के लिए मजबूर होना पडा। क्या पता कि मुहूर्त निकलने के बाद खरीदारी लाभप्रद हो या न हो। हमारे यहां आदमी धर्मभीरु ही नहीं ज्योतिष-भीरु भी है। ज्योतिषी नट की तरह देश की सीधीसादी जनता को अपने इशारे पर नचाते हैं। जनता कभी नहीं सोचती कि ये दुष्ट ज्योतिषी उनके भले के लिए नहीं, बल्कि बाजार के भले के लिए खास मुहूर्त निकलकर अखबारों में, टीवी चैनलों पर दिखाते हैं। जनता तो ठहरी आंख की अंधी और नाम नयनसुख वाली। अपने दिमाग की खिडकियां और दरवाजे कभी खोलती ही नहीं। चाहे चुनाव हो या भागवत कथा। देश की जनता कभी इन ज्योतिषियों से पूछती ही नहीं कि दुर्लभ योग में उन्होंने अपने लिए क्या खरीदा?
ज्योतिषी बडे चतुर-सुजान होते हैं। जनता को किश्तों में उलूक बनाते हैं। इस साल उन्होंने वृषभ, कन्या और तुला राशि के जातकों को चुना। कहा कि इन राशियों के लोग यदि 752 साल बाद पडने वाले दुर्लभ योग का लाभ उठाना चाहते हैं जो हनकर यानि जमकर दरियादीली से खरीद-फरोख्त करें। ईडी, सीबीईआई की फिक्र न करें।
चूंकि ये मुहूर्त केवल हिन्दू पंचांगों में से निकलते हैं इसीलिए ये हिन्दुओं के लिए ही शुभ होते हैं। मुसलमान, ईसाई या दूसरे धर्मों के लोगों के लिए नहीं। हामिद को तो आज भी अपनी अम्मी के लिए बाजार से चिमटा ही खरीदना पडता है। देश के 85 करोड लोग तो उस मुहूर्त को ही शुभ मानते हैं जिस दिन उन्हें पांच किलो मुफ्त का अन्न मिलता है। लाडली बहिनों के लिए तो केवल वो मुहूर्त शुभ होता है जिस दिन उनके खाते में सरकार 1250 रुपए राखी बंधन के नेग के रूप में डाल देती है।
हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम लोग चाहकर भी इन ज्योतिषियों की भविष्य वाणियों को चुनौती देने देश की किसी छोटी या बडी अदालत नहीं जा सकता। जैसे-तैसे पहुंच भी जाएं तो वहां हमें सुनेगा कौन? अदालतों में भी तो आखिर धर्मभीरु/ मुहूर्त प्रेमी लोग ही विराजते हैं। हमारे देश के मुख्य न्यायाधीश ने खुद रहस्योदघाटन किया कि वे जब भी किसी बडे मामले में फैसला करने वाले होते हैं भगवान की शरण में चले जाते हैं। देश का कोई ज्योतिषी वही गुरू, अल्लाह या जीसस की शरण में कभी गया हो तो हमें पता नहीं। कहने का आशय ये है कि जिस देश में कार्य पालिका, विधायिका और न्याय पालिका तक भगवान के भरोसे काम करती हो उस देश में आखिर ज्योतिषियों का तम्बू कौन उखाड सकता है? इन्हें तो सर्वदलीय समर्थन हासिल होता है। किसी भी दल की सरकार हो कोई इनके खिलाफ जाने वाला नहीं है। क्योंकि सभी की दुकानदारी में ज्योतिष की अहम भूमिका है।
आप मुझे ज्योतिष शास्त्र या विज्ञान का विरोधी न माने। निंदक न मानें। मुझे तो अपने सनातन ज्ञान पर गर्व है। इसी के चलते सहमत न होते हुए मैं जिस अखबार में काम करता था उसके पंडित जी यदि किसी दिन भविष्य फल भेजने में आलस करते थे तो मैं खुद उनकी और से भविष्य फल लिखकर छाप लेता था। पाठकों का मन जो रखना होता था। मैंने जिस स्थानीय न्यूज चैनल में काम किया उसके दर्शकों के लिए खुद कंठीमाला पहनकर ज्योतिषी की भूमिका अदा की। आज कल चैनलों में अभिनय ही तो प्रधान है। आखिर जनता की आंखों में धूल ही तो झोंकना है नेताओं की तरह। जनता की आंखों में धूल झोंकना सबसे आसान काम और सबसे अधिक ललित कला है। इसलिए आप भी मेरे कहने से 752 साल बाद बने इस सौभग्यशाली मुहूर्त की अनदेख न करें। खरीदारी करें। क्रेडिट कार्ड से करें, पर्सनल लोन लेकर करें, कढुआ (कर्ज लेकर) काढ कर करें, खरीदारी जरूर करें। क्योंकि इसी से तो आपका भाग्य चमकने वाला है। जय श्रीराम।