रिश्वतखोर प्रधान आरक्षक व तीन आरक्षकों को तीन-तीन वर्ष का कारावास

असली गुनहगार से 55 हजार की रिश्वत के बदले एक भीख मांगने व पन्नी बीनने वाले को बनाया था आरोपी

सागर, 06 मार्च। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर श्री आलोक मिश्रा की अदालत ने असली गुनहगार से 55 हजार की रिश्वत के बदले एक भीख मांगने व पन्नी बीनने वाले को आरोपी बनाने वाले आरोपी प्रधान आरक्षक अशोक पटैल को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियि 1988 की धारा 7, 13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) के तहत तीन-तीन वर्ष कारावास व दस-दस हजार रुपए जुर्माना तथा धारा 196, 218, 219 भादंवि में तीन-तीन वर्ष सश्रम कारावास व जुर्माना तथा आरोपी आरक्षक रामप्रवेश व आरक्षक चंद्रेश को धारा 7, 13(1)(डी), सहपठित धारा-13(2) के तहत तीन-तीन वर्ष सश्रम कारावास व दस-दस हजार रुपए जुर्माना तथा धारा 196, 218 भादवि, सहपठित धारा 120बी, 219, सहपठित धारा 120बी के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास व जुर्माना तथा आरोपी मधु त्यागी को धारा 411 भादंवि में तीन वर्ष सश्रम कारावास व दस हजार रुपए जुर्माना, धारा 218, सहपठित धारा 120बी, 219, सहपठित धारा 120बी के तहत तीन-तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार व दस हजार रुपए जुर्माना से दण्डित किया है। मामले की पैरवी अतिरिक्त जिला अभियोजन अधिकारी शिवसंजय एवं सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्याम नेमा ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है एक आईपीएस अधिकारी ईशा पंत का भोपाल एक्सप्रेस में यात्रा के दौरान पर्स चोरी हो गया। पर्स में उसका मोबाइल और पासपोर्ट और अन्य सामान भी था। उक्त चोरी की रिपोर्ट आईपीएस अधिकारी द्वारा जीआरपी हबीबगंज रेलवे स्टेशन में कराई, जिसके पश्चात यह अपराध विवेचना में लिया गया और जांच प्रधान आरक्षक/अभियुक्त अशोक पटेल को सौंपी गई। अशोक पटेल ने अपने हमराह स्टाफ रामप्रवेश यादव एवं चंद्रेश दुबे के साथ मिलकर एक निर्दोष व्यक्ति आमीन को आरोपी बनाकर पेश कर दिया। अशोक पटेल द्वारा आमीन से नोकिया कंपनी का मोबाइल और रुपए जब्त कर जब्ती पंचनामा बनाया गया और साक्षी सगीर व आरक्षक रामप्रवेश के समक्ष अमीन को गिरफ्तार कर गिरफ्तारी पंचनामा बनाया गया और अभियुक्त अमीन के विरुद्ध 26 अगस्त 2011 को जेएमएफसी बीना के न्यायालय में अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें आमीन अपराध अस्वीकार किया, जिसके पश्चात उसका विचारणा आरंभ किया गया। कहानी में नया मोड़ तब आया जब आईपीएस अधिकारी के चोरीशुदा मोबाइल की सीडीआर सामने आई। सीडीआर की रिपोर्ट के अनुसार उक्त मोबाइल एक अन्य महिला मधु त्यागी द्वारा उपयोग किया जा रहा था, किंतु सिम दीपक चौधरी के नाम की चल रही है। जिससे संदेह मधु और दीपक पर हुआ। जब दीपक से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि उसके नाम की सिम मधु त्यागी द्वारा उपयोग की जा रही है, जो कि पूर्व में मेरी दोस्त रही है। दीपक ने बताया कि मधु के मुंह बोले पिता भूपाल का मेरे पास फोन आया था कि मोबाइल चोरी करने वाला वाला लड़का पकड़ा गया और तुम पुलिस को यही बताना जो प्रधान आरक्षक अशोक पटेल को बताई थी। दीपक के कथनों से संदेह सबूत में बदल गया। जब मधु त्यागी से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि मुझे यह मोबाइल भूपाल सिंह (मुंहबोले पिता) ने दिया है। भूपाल सिंह को पुलिस द्वारा तलाश करने पर उसके भोपाल जेल में निरुद्ध होने की सूचना प्राप्त होने पर विधिवत् पुलिस अभिरक्षा में लेकर पूछताछ करने पर उसने पांच जुलाई 2011 को रात्रि में एसी कोच से महिला का पर्स चोरी करना व मोबाईल मधु त्यागी को देना बताया। उसने यह भी बताया कि जब जीआरपी पुलिस बीना वाले (अभियुक्त अशोक पटैल, रामप्रवेश व चंद्रेश) मधु त्यागी के पास पहुंचे थे, तो उसने मधु व स्वयं को बचाने की ऐवज में उन्हें 55 हजार रुपए दिए तथा चोरी का मोबाईल फोन, नगदी आगरा पहुंचकर एक निर्दोष लड़के आमीन को लालच देकर व छुड़वा लेने का कहकर उससे जब्त करा दिया। इसके अलावा 19 अक्टूबर 2012 को दिए मेमोरेण्डम में अभियुक्त भूपाल सिंह ने यह भी बताया कि वह अपने साथी भाउ व आकाश के साथ रात में रेलवे स्टेशन जाकर ट्रेन में चोरियां करते हैं और चोरी का सामान बिकवाते हैं। इसके पश्चात चोरी के पूर्व आरोपी अमीन से भी पूछताछ की गई, जिसमें उसने बताया कि उसने चोरी नहीं की है और उसेे अशोक पटेल और उसके हमराह स्टाफ को भी पहचाना गया, उसने बताया कि उन्होंने ही मुझे जबरन गिरफ्तार किया था। जिसके पश्चात प्रधान आरक्षक/ अभियुक्त अशोक पटेल, आरक्षक रामप्रवेश यादव एवं आरक्षक चंद्रेश दुबे को रिश्वत लेकर निर्दोष व्यक्ति को फंसा कर दोषियों को बचाने के संबंध में उक्त रिपोर्ट के आधार पर थाने पर प्रकरण पंजीबद्ध कर मामला विवेचना में लिया गया। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर थाना जीआरपी बीना पुलिस ने धारा 166, 167, 193, 196, 213, 218 व 219, सपठित धारा 120बी एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 12, 13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपीगण के विरुद्ध दर्ज करते हुए विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया एवं अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) सागर श्री आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपीगण को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।