हिन्दुत्व का राग अलापते-अलापते देश जातियता में स्वाहा?

अशोक सोनी ‘निडर’


जो भारतीय जनता पार्टी हिन्दुत्व के नाम पर कार्य सूची लेकर चली थी, पर न जाने हिन्दुत्व कहा खो गया और अगड़ा पिछड़ा का, दलित महादलित का खेल शुरू हो गया। जातियता के चक्कर में हिन्दुत्व को तार-तार कर दिया गया।
अब केवल जातिवाद या धर्म के नाम पर जनता को बरगलाने भर की राजनीती रह गई है, विकास तो कब का अलोप हो गया। देश के अन्य शिक्षा स्वास्थ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे गौड़ हो गए। अब किस जाति विशेष का सम्मेलन कब और कहां किस दल द्वारा आयोजित होना है, इसकी सूचना मिल जाती है तो उस जाति विशेष के लोग अभी से तैयार हो जाते हैं, हिन्दू एकता करते करते हम कितने जातिवादी हो जाएंगे कभी सोचा न था। राजनैतिक दल, समस्त देशवासियों को अपने छुद्र स्वार्थ के लिए जब तक हमें टुकड़ो-टुकड़ों में न बाट देंगे, मानेगे नहीं। देश ने गुलामी का इतना दंश सहा है मगर यदि राजनैतिक दलों की यह सोच रंग लाई तो हम सदा के लिए ग्रह युद्ध में झोक दिए जाएंगे।
सरदार पटेल पटेलों के नेता बनाए जा रहे, अम्बेडकर को भी कुछ खास जातियों ने बंधक बना लिया। रानी दुर्गावती गोड़ों की रानी, शबरी माता कॉल समाज की, परशुराम ब्राह्मणों के तो क्षत्रियों के महाराणा प्रताप पेटेंट हो गए। अब ऐसी कोई जाति नहीं बची जिसने अपनी अपनी जातियों के महापुरुषों को अपना पेटेंट न बना लिया हो। और तो और देवी-देवता, ऋषि-मुनी, साधु-संत में भी पेटेंट करा लिए गए। राम रघुवंशियों, क्षत्रियों के तो कृष्ण यादवों के, कबीर, रविदास, झलकारी बाई, नरसी मेहता, महाराज अग्रसेन, घनानंद, सम्राट अशोक भी जाति विशेष के आराध्य बन गए। राजनैतिक दल इन महापुरुषों के नाम पर सम्मेलन करने लगे, जिनमें सिर्फ उन्हीं जाति के लोग आमंत्रित किए जा रहे हैं।
मात्र कुछ सालों पहले तक हम गांधी, लालबहादुर, नेहरू आदि नेताओं को राष्ट्र नायक, राम, कृष्ण, परशुराम आदि देवताओं को हिन्दू धर्म के देवता मानते रहे थे, आज वे सभी राजनीति के ओछेपन के कारण जातियों तक सीमित किए जा रहे हैं। शिवाजी, बाजीराव पेशवा, रानी दुर्गावती, महारानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, गुरु नानक, कबीर, भक्त रैदास, तुलसीदास, महर्षि बेद ब्यास, विवेकानंद आदि महापुरुषों, साधुओं मनीषयों को हमने जाति का नेता बना दिया, मान लिया या सरकारों, राजनैतिक दलों द्वारा इन सभी को जातिवादी बना देने की सरल योजना लागू की जा रही है। हम भी बिना विचार किए ऐसे जातिय सम्मेलनों में सगर्व उपस्थित हो रहे हैं।
देश में हिन्दू/ सनातनी अब नहीं बचा, क्योंकि हिन्दुस्तान में निवासरत सभी जातियों के सम्मलित समूह को हिन्दू कहा गया, अकेले ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र हिन्दू नहीं कहे जा सकते। भारत की एकता व अखण्डता के लिए कितने वीर शहीद हो गए। अगर सीमा पर खड़ा सैनिक जातिवाद के नाम पर लड़े, चिकित्सक सिर्फ जातिवाद के नाम पर चिकित्सा करे, उस समय मानव मात्र की क्या स्थिति होगी विचार करें। अंधभक्त नहीं राष्ट्रभक्त बनें। जयहिन्द, वंदे मातरम।