शा. महाविद्यालय आलमपुर में ‘स्वाधीनता आंदोलन में चंबल के वीरों की भूमिका’ विषय पर वेबिनार आयोजित
भिण्ड, 21 फरवरी। शासकीय महाविद्यालय आलमपुर में मंगलवार को ‘स्वाधीनता आंदोलन में चंबल के वीरों की भूमिका’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ शहीदों के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। जिसके मुख्य अतिथि प्रो. कुमार रत्नम अतिरिक्त संचालक ग्वालियर चंबल संभाग एवं अध्यक्षता सीताराम गुप्त ‘दिनेश’ ने की।
कार्यक्रम के प्रारंभ में इतिहासकार एवं वरिष्ठ अधिवक्ता देवेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि चंबल की भूमि स्वाधीनता सेनानियों, क्रांतिकारियों और शहीदों की जननी रही। यहां के दबोह, बालाजी मिहोना, बंथरी गांव, औरैया, जालौन और चंबल के पचनद के आस-पास के क्षेत्र क्रांतिकारियों के स्थल रहे। गेंदालाल दीक्षित, दौलत सिंह 1857 के महासमर का बिगुल बजते ही चंबल क्षेत्र निवासी, ग्वालियर हिजहाइनेस की ग्रेनेडियर पलटन में सूबेदार मेजर सैय्यद अमानत अली ने 14 जून 1857 को विद्रोह कर दिया था। उन्होंने बुहारा (इंदुर्खी निवासी) क्षेत्र के प्रमुख क्रांतिकारी नेता चिमनाजी उर्फ हरिश्चंद्र सिंह की रेजिमेंट से मिलकर इटावा में अंग्रेज कलेक्टर एओ ह्यूम और तमाम अंग्रेज अधिकारियों को बंदी बना लिया था। फिर 17 जून 1857 को इटावा को अंग्रेजी दासता से मुक्त करा दिया था। लेकिन 1857 की क्रांति सफल नहीं होने से अक्टूबर 57 में ही उन्हें बंदी बनाकर आगरा में फांसी दे दी गई थी। उनका समाधि स्थल आज भी आगरा की शान है। चंबल के कुदौल निवासी गंगा सिंह अंग्रेजी फौज में सिपाही थे। 1857 के महासमर में इन्होंने कई अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतारा। अंग्रेजों की ओर से इन पर पांच हजार रुपए का इनाम किया गया था। इटावा कलेक्टर ह्यूम के दस्तावेजों के अनुसार 1857 से 1870 तक लड़े गए क्रांति युद्घों में गंगासिंह कमांडर इन चीफ रहे।
अंग्रेजों के खिलाफ पूरे गांव ने निभाई सैनिक की भूमिका भिण्ड के ग्राम कचोंगरा निवासी रंधीर सिंह भदौरिया के विद्रोह से ही ब्रिटिश और ग्वालियर रियासत की संयुक्त फौज ने दो बार कचोंगरा का संपूर्ण विध्वंस किया था। आजादी की लड़ाई में ग्राम नदौरी (कनावर) के 31 वीरों को कालेपानी की सजा दी गई थी। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को सहयोग, संरक्षण देने के आरोप में गांव के सभी लोगों को कैद कर एक हजार रुपए के सामूहिक दण्ड की सजा दी थी। नाना साहब पेशवा का दिया साथ ग्राम ककहरा (सगरा) निवासी बंकट सिंह कुशवाह क्षेत्र के प्रमुख नेता थे। आजादी की लड़ाई में नाना साहब पेशवा ने उन्हें चंबल में अपने प्रतिनिधि के रूप में अधिकृत किया था। 1857 के शुरू से 1870 के बीच जो भी लड़ाइयां लड़ी गईं उन में सक्रिय भूमिका निभाई। रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, अजीमुल्ला खां जैसे राष्ट्रीय क्रांतिकारी नेताओं से निकटता थी। 1960 में जब ह्यूम के नेतृत्व में अंग्रेजी फौजों ने विद्रोहियों का सफाई अभियान चलाया, तब भिण्ड शहर में उन्हीं के दल के एक क्रांतिकारी योद्घा को फांसी की सजा दी गई थी, जिनका नाम अभिलेख में उपलब्ध नहीं है।
पिता-पुत्र से घबराते थे अंग्रेज अफसर बुहारा (इंदुर्खी) निवासी चिमना जी उर्फ हरिश्चंद्र सिंह और दौलत सिंह कुशवाह रिश्ते में पिता-पुत्र थे। दोनों चंबल के प्रमुख क्रांतिकारी नेता रहे। 1863 में चिमना जी को जालौन में फांसी दी गई। चंबल, यमुना दोआब की विद्रोही शक्तियां 1860 के बाद या तो तात्या टोपे के साथ या फिर दौलत सिंह के साथ संगठित हुईं। उस समय अंग्रेजी सेना के पास जो श्रेष्ठ आयुध थे वे क्रांतिवीर दौलत सिंह के पास भी थे। इसलिए उन्हें अजेय योद्घा माना जाता था। चंबल की क्रांतिकारी गतिविधियों में पीतम उर्फ बंजोर सिंह, बंकट सिंह और दौलत सिंह की तिकड़ी ने अहम भूमिका अदा की थी।
अमायन के राजा ने दिया लक्ष्मीबाई का साथ
अमान सिंह कुशवाह भिण्ड के अमायन ग्राम के राजा थे। महारानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में 31 मई 1858 को जब ग्वालियर पर चढ़ाई की गई थी उस मुहिम में अमान सिंह अपनी फौज का नेतृत्व करते हुए ग्वालियर के युद्घ में शहीद हो गए थे। शहादत का समाचार सुनकर उनकी रानी साहिबा अमायन में सती हो गईं थीं। ग्राम अमायन में सती चबूतरा आज भी मौजूद है। देश की आजादी में चंबल की वीर गाथाओं को वह स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। यही वजह है चंबल को देश-विदेश में लोग बीहड़ और डकैतों के लिए ज्यादा पहचानते हैं।
चंबल उन्नयन और इस क्षेत्र को सही पहचान दिलाने के लिए कार्य कर रहे डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि डकैत समस्या पर बनी मशाला फिल्मों ने चंबल की छबि को धूमिल किया है। यहां के रामप्रसाद बिस्मिल, कमाण्डर गेंदालाल दीक्षित ने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झांसी की रानी का चंबल के वीरों ने निडर होकर साथ दिया था। मैं चंबल नाम से रेजिमेंट बनाने, यूनिवर्सिटी बनाने के लिए पूरी ताकत से कार्य कर रहा हूं। यहां पर अपार संभावनाएं हैं। यहां घडिय़ाल हैं, चंबल सेंचुरी है। अनेक प्रकार के पक्षी है। आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक श्याम सरीन ने कहा कि ग्वालियर भी आजादी का केन्द्र बिन्दु रहा है। यहां चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह आते रहते थे। दतिया के भगवानदास माहौर इन क्रांतिकारियों से जुड़ गए थे और उनके साथ रामचंद्र सरवटे भी थे। ये स्वाधीनता की प्राप्ति के लिए लगातार संघर्ष कर रहे थे। झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई का तो कहना ही क्या उनकी जलाई ज्योति हम सबको आज भी आलोकित कर रही है।
पत्रकार योगेश जादौन ने कहा चंबल के पानी में ही कुछ खास है जो यहां के वीरों को अलग बनाता है। यहां के लोगों में राजनीतिक चेतना का अभाव है इससे चंबल के क्रांतिकारी इतिहास में जगह नहीं बना सके। डॉ. मंदाकिनी शर्मा ने कहा कि चंबल के भिण्ड के रघुवीर सिंह कुशवाह का भी आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान है। वह अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता और समाज सुधारक थे। सीताराम गुप्त दिनेश ने कहा कि आलमपुर के वीरों का भी आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्हें याद किया जाना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. भगवान सिंह निरंजन ने किया और आभार व्यक्त डॉ. दिनेश कुमार माहौर ने किया।
इस अवसर पर केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के प्राध्यापक साथी, विद्यार्थी, शोधार्थी ऑनलाइन जुड़े थे और महाविद्यालय का समस्त स्टाफ उपस्थित रहा।