शराब और सियासत का बडा नजदीकी रिश्ता है

– राकेश अचल


आज सियासत की नहीं, शराब की बात करते हैं। शराब और सियासत का बडा नजदीकी रिश्ता है। शराब बंदी करके कोई नेता बडा सुधारवादी बन जाता है और कोई नेता शराब घोटाले में फंसकर जेल की हवा खाता है, लेकिन लोग हैं कि शराब पीने से बाज नहीं आते। आ भी नहीं सकते, क्योंकि शराब चीज ही ऐसी है। शराब पीना अगर पुण्य नहीं है तो पाप भी तो नहीं है। हम तो सनातनी हैं, इसलिए शराब को समुद्र मंथन का उपहार मानते हैं और चाहते हैं कि शराब हर जगह मिले और हर जगह पी जाए। चचा गालिब ने तभी तो शायद कहा है कि
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर।
या वो जगह बता दे जहां पर खुदा न हो।।
भारत में शराब बंदी की मांग नई नहीं है। महात्मा गांधी के समय से लोग शराब बंदी की मांग करते आ रहे हैं। जहां तक मुझे याद आता है कि 1960 में राज्य के गठन के बाद से ही गुजरात में शराब बंदी लागू है। यहां गांधीजी के सिद्धांतों का कडाई से पालन किया जाता है। साथ ही कडे कानून लागू हैं। हालांकि चुनाव के समय चोरी छिपे शराब बिकने की खबरें आती रहती हैं। गुजरात के बाद बिहार में अप्रैल 2016 से राज्यभर में शराबबंदी लागू कर दी थी। बिहार की तत्कालीन सरकार ने अपराधों पर लगाम लगाने के मकसद से शराब बंदी लागू की थी। हालांकि सरकार शराब की तस्करी को रोकने में यह नाकाम रही है। आए दिन पडोसी राज्यों से बिहार में शराब आने की खबरें आती रहती हैं। बिहार में शराब की बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है।
कहते हैं कि चर्च, महिला समूहों के नेतृत्व में मिजोरम ने 1997 में शराब बंदी लागू की थी। 2015-2019 के बीच प्रतिबंध हटा लिया गया था। हालांकि, फिर से प्रतिबंध लागू कर दिया गया है। शराबबंदी को लेकर यहां आज भी पक्ष-विपक्ष में चर्चा होती रहती है। लक्ष्यद्वीप में शराब को लेकर बेहद सख्त कानून हैं। यहां सिर्फ कुछ रिसॉर्ट्स में ही शराब की बिक्री और सेवन सीमित है। लक्ष्यद्वीप पर्यटन स्थल होने के कारण कुछ रिसॉर्ट्स में ही शराब मिलती है। लक्ष्यद्वीप में स्थानीय स्तर पर शराब बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित है। महाराष्ट्र के भी तमाम शहरों में शराब आसानी से नहीं मिलती।
आज-कल शराब बंदी को लेकर बिआहर एक बार फिर से चर्चा में है। केन्द्रीय मंत्री जीतनराम माझी ने ही बिहार में शराब बंदी को लेकर सवाल किए खडे हैं। केन्द्रीय मंत्री जीतनराम मांझी का एक बयान वायरल हो रहा है, जिसमें वो दावा कर रहे हैं कि राज्य में शराब बंदी होने के बावजूद भी वो शराब पीते हैं। उन्होंने चार-पांच लाख गरीबों के जेल जाने का दावा किया। मांझी ने शराब बंदी की समीक्षा की मांग की। माझी की स्पष्टवादिता के हम तो कायल हैं। उन्होंने कहा है कि हम शराब बंदी के पक्षधर हैं, लेकिन जिस तरीके से यह कानून लागू है वह गलत है। माझी ने कहा कि शराब बंदी कानून के बारे में हम हमेशा कहते रहे हैं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है, हम सबने मिलकर शराबबंदी कानून बनाया है, हम इसे बुरा क्यों कहेंगे? लेकिन इसके कामकाज में अनियमितताएं हैं। गरीब लोग भी अगर थोडा सा भी शराब पीते हैं तो उन्हें जेल भेज दिया जाता है, हजारों-लाखों लीटर शराब की तस्करी करने वाले छूट रहा है।
बिहार में शराब बंदी की तीन मर्तबा समीक्षा हो चुकी है और सरकार चौथी बार भी शराब बंदी की समीक्षा करने के लिए तैयार है, ये सरकार की दरियादिली है। अब समीक्षा होती है या नहीं, ये बाद की बात है, लेकिन इसी मुद्दे पर बिहार में सरकार बनाने का सपना देख रहे प्रशांत किशोर का कहना है कि यदि वे सत्ता में आए तो बिहार में शराब बंदी को तत्काल समाप्त कर देंगे। लगता है कि प्रशांत किशोर गांधीवादी नहीं बल्कि गालिबवादी हैं। अब उनकी इस घोषणा से बिहार के मदिरा प्रेमी कितने उत्साहित होंगे, इसका पता तो बिहार विधानसभा चुनाव के समय पता चलेगा। फिलहाल सब कुछ हवा-हवाई है।
अनेक राजनीतिक दलों को चुनाव लडा चुके प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि अगर जन सुराज की सरकार बनती है तो वो एक घण्टे के भीतर शराब बंदी खत्म कर देंगे। प्रशांत किशोर ने शराब बंदी कानून को महज एक दिखावा करार दिया। मौजूदा शराब बंदी को अप्रभावी बताते हुए पीके ने कहा कि इस कानून के कारण राज्य के हर कोने में शराब की अवैध होम डिलीवरी हो रही है और बिहार को हजारों करोड रुपए का नुकसान हो रहा है। मुझे लगता है कि प्रशांत किशोर सच ही कह रहे हैं। लेकिन सच आज-कल सुनता कौन है?
प्रशांत किशोर उर्फ पीके के शराब बंदी खत्म करने वाले बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए जेडीयू ने कहा, प्रशांत किशोर पटना में बेली रोड पर एक हवेली में रहते हैं। उसके ठीक बगल में जेडी वीमेंस कॉलेज है। उसके आगे वीमेंस कॉलेज है। प्रशांत किशोर में हिम्मत है कि वहां लडकियों के हुजूम के बीच आकर बोले दें कि हमारी सरकार बनी तो शराब बंदी हटाएंगे? छात्राएं उनका होश ठिकाने लगा देंगी।
भाजपा प्रवक्ता अरविन्द सिंह ने तंज कसते हुए कहा, ‘कौन हैं प्रशांत किशोर? नहीं जानते हम लोग। एक प्रशांत किशोर का नाम सुने हैं जिन्होंने ममता बनर्जी, कांग्रेस, आरजेडी को जिताने का टेंडर लिया था। वे राजनीतिक दलों को जिताने-हराने का टेंडर लेते हैं। जिस राजनीतिक दल का जन्म नहीं हुआ है उसके नेता बिहार बदलने की बात कर रहे हैं। यह मुंगेरीलाल के हसीन सपने हैं। आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ‘प्रशांत किशोर कह रहे मदिरालय खोलेंगे, लोगों को वह शराब पिलाएगे। वह लोगों को शराबी बनाएंगे। आज तक प्रशांत किशोर वार्ड पार्षद तक का चुनाव नहीं लडे हैं। वे सरकार बनाने का दिवास्वप्न देख रहे हैं। रोज अनाप-शनाप बयान देकर सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं। जनता प्रशांत किशोर को खारिज करेगी तब उनको पता चल जाएगा कि जनता राजनीतिक रूप से कितनी जागरूक है। मदिरालय नहीं पुस्तकालय, विद्यालय, महाविद्यालय चाहिए।’
मैं प्रशांत किशोर से बडा सत्यवादी ही नहीं, बल्कि गांधीवादी भी हूं और पूरी ईमानदारी से कहता हूं कि मैंने दुनिया के तमाम देशों की मदिरा का स्वाद चखा है, लेकिन मैं शराबी नहीं हूं। मुझे पता है कि भारत में शराब पीने की कानूनी उम्र और शराब की बिक्री तथा खपत को नियंत्रित करने वाले कानून प्रत्येक राज्यों में अलग-अलग हैं। भारत में मुख्य रूप से बिहार, गुजरात, नागालैण्ड और मिजोरम राज्यों के अलावा केन्द्र शासित प्रदेश लक्ष्यद्वीप में शराब का सेवन प्रतिबंधित है। मणिपुर के कुछ जिलों में शराब पर आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अलावा अन्य सभी भारतीय राज्य शराब की बिक्री की अनुमति देते हैं, लेकिन शराब पीने की कानूनी उम्र को भी तय करते हैं, जो प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग उम्र में निर्धारित होती है।
विदेशों में न गांधीवाद के नाम पर शराब बंदी है और न शराब को लेकर कोई सियासत होती है। वहां शराब एक उपभोक्ता वस्तु है और हर जगह उपलब्ध है। विदेशों में शराब, किराने और दवाएं एक ही छत के नीचे मिलती हैं। शराब से सरकार को राजस्व मिलता है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। कहीं शराब घोटाले हो जाते हैं और कहीं होकर भी नहीं होते। हर सरकार में एक आबकारी मंत्री होता है। कहीं-कहीं तो मुख्यमंत्री खुद आबकारी मंत्री होता है, क्योंकि आबकारी राजस्व ही सरकारों की आय का प्रमुख मद होता है। बिहार में शराब को लेकर सियासत नकली है। मेरे ख्याल से शराब को लेकर सियासत होना ही नहीं चाहिए। शराब आखिर शराब है, न अच्छी है और न खराब।
फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अवैध शराब का कारोबार 23 हजार 466 करोड रुपए का है। फिक्की के मुताबिक अवैध शराब की तस्करी से सरकार को 15 हजार 262 करोड रुपए के नुकसान का अनुमान है। अवैध शराब का कोई रिकार्ड नहीं होता है। हम भारतीय शराब को घर पर भी बनाते हैं और विदेश से भी मंगाकर पीते हैं। एग्री एक्सचेंज किवर्ष (2020-21) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा शराब अमेरिका से आती है। 2020-21 के आंकडों के अनुसार, देश में अमेरिका से कुल 325.56 मिलियन अमेरिकी डॉलर की शराब आयात की जाती है। 2020-21 यूके से कुल 131.29 अमेरिकी डॉलर की शराब आयात हुई थी। बेल्जियम तीसरे पायदान पर है, जहां से सबसे ज्यादा शराब भारत आयात की जाती है। फ्रांस चौथा ऐसा देश है जहां से कुल 12.67 अमेरिकी डॉलर की शराब आयात की गई थी, सिंगापुर इस लिस्ट में पांचवे पायदान पर आता है। जहां से कुल 12.66 मिलियन शराब आयात की जाती है। कहने का आशय ये है कि शराब एक हकीकत है और इसे लेकर जो भी दल राजनीति करता है वो जनता को धोखा देता है। भारत में शराब उपभोक्ताओं का कोई आधिकारिक आंकडा नहीं है, फिर भी एक जानकारी कहती है कि 140 करोड के देश में से कोई 16 करोड लोग तो पक्के शराबी हैं। आंध्र और तेलंगाना इसमें सबसे आगे हैं। इसके बाद असम, छत्तीसगढ, गोवा, हरियाणा, झारखण्ड, कर्नाटक और केरल का नंबर आता है।
जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि शराब का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है तथा कृषि के इतिहास एवं पश्चिमी सभ्यता से इसका गहरा संबंध है। वर्तमान समय में अंगूर पर आधारित किण्वित पेय का सबसे पुराना अस्तित्व सात हजार ईसा पूर्वष पूर्व में चीन में होना सिद्ध है। शराब शाकाहारी उत्पाद है। इसके विभिन्न नाम और रूप हैं। शराब को रम, विस्की, चूलईया, महुआ, ब्रांडी, जीन, बीयर, हंडिया भी कहा जाता है। शराब के सेवन को कई समाज में धार्मिक व अन्य सामाजिक अनुष्ठानों से भी जोडा जाता है। परन्तु कोई भी समाज या धर्म इसके दुरुपयोग की स्वीकृति नहीं देता है। हालांकि पांच मकार में मदिरा शामिल है। शराब स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है या हानिकारक ये तो तय नहीं, लेकिन हमारे यहां वैधानिक चेतावनी दी जाती है कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। शराब साहित्य में है। शराब फिल्मों में है। शराब सियासत में है। शराब मन्दिरों में है। शराब यत्र-तत्र सर्वत्र है। सर्वव्यपी है। शराब को लेकर किसी ने लिखा है कि
मत पूछ उसके मैखाने का पता ऐ साकी,
उसके शहर का तो पानी भी नशा देता है
तो कोई लिखता है कि
कभी उलझ पडे खुदा से कभी साकी से हंगामा,
ना नमाज अदा हो सकी ना शराब पी सके।
शराब को लेकर मेरी चिंता तो इस शेर में बाबस्ता है कि
नतीजा बेवजह महफिल से उठवाने का क्या होगा,
न होंगे हम तो साकी तेरे मैखाने का क्या होगा।