सियासत की शब्दावली या शब्दों की सियासत

– अशोक सोनी निडर


त्ता का नशा कहें या बंदरों के हाथ में उस्तरा लग जाना। नेता पहले भी होते थे राजनीति भी होती थी, आरोप प्रत्यारोप भी होते थे, लेकिन सदन की चरित्र की व्यक्तित्व की मर्यादा होती थी। तब राजनीति देश पर होती थी आज राजनीति सिर्फ अपने स्वार्थ पर होती है। सत्ता का नशा सिर्फ विधायकों, सांसदों को ही नहीं प्रधान मंत्री तक को पागल कर देता है।
जब राजा ही पथ भ्रष्ट हो जाए देश की हालत की कल्पना भर की जा सकती है। एक चपरासी की नौकरी के लिए डिग्री आवश्यक है, लेकिन मंत्री बनने के लिए किसी डिग्री की कोई आवश्यकता नहीं है। कोई भी अंगूठा छाप व्यक्ति शिक्षा मंत्री, रक्षा मंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी बन सकता है, बस शर्त यही है जो जनता को जितना मूर्ख बना सकता हो, जितना चिल्ला सकता है या जिस पर जितने अधिक आपराधिक केस हों वह उतना बड़ा नेता बन सकता है। व्यक्ति की पहचान अच्छे कपड़ों से नहीं शब्दों से होती है। क्षोभ होता है जब साधारण केसों में आमजन को वर्षों तक उलझाने वाले वकील व न्यायालय नेताओं के तलवे चाटने वाले गुलाम बनकर कानून नहीं उनके हिसाब से फैसले करने लगते हैं।
कहा गया है कि राजदण्ड से बड़ा धर्मदण्ड होता है पहले के धर्मगुरू निर्भीक होकर राजाओं को जनहित की सलाह देते थे और राजा भी सम्मान करता था। लेकिन आज के तथाकथित गुरू जनता को धर्म पाखण्ड की अफीम खिलाकर जनता को बहलाने का कार्य कर रहे हैं और नेता इनका सहारा लेकर सिर्फ अपना चेहरा चमकने का घिनौना कार्य। अब बात करें समाज के दर्पण कहे जाने वाले पत्रकारों की तो अगर चंद ईमानदार पत्रकारों को छोड़ दें तो अधिकांश मीडिया, चैनल, अखबार मालिक पैसों के लालच में अपनी कलम गिरवी रख चुके हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण टीवी डिबेट में अनर्गल चीख चिल्लाहट, अशिष्ट शब्दावली के रूप में दिखाई देता है। अच्छे पत्रकार साथियों के लिए एक प्यारा सा संदेश-
कोई लड़े बंदूक से यारो कोई लड़े तलवार से।
हम सीना छलनी कर देते कलम की पैनी धार से।।
कलम की ताकत बहुत बड़ी है वार हृदय पर करती है।
भ्रष्टाचारी नेता अफसर नहीं किसी से डरती है।।
तलवारें तो खून बहाती समझाते हम प्यार से।
हम सीना छलनी कर देते कलम की पैनी धार से।।
हो विचार की क्रांति अगर तो फिर सब कुछ हो सकता है।
आतंकी पाषाण हृदय भी कोमल मन बन सकता है।।
प्यार का मरहम अगर लगाएं जख्मी दिल पर प्यार से।
हम सीना छलनी कर देते कलम की पैनी धार से।।
है समाज का दर्पण लेखक इस पर जरा विचार करें।
शुद्ध स्वच्छ तस्वीर दिखाएं ना इसका व्यापार करें।।
हम अपना कर्तव्य निभाएं बिना डरे संसार से।
हम सीना छलनी कर देते कलम की पैनी धार से।।