संत के माध्यम से अपनी बात आप तक पहुंचाते हैं भगवान : अवधेशानंद गिरि

– दंदरौआ धाम में कलश यात्रा के साथ वाल्मीकि कृत श्रीराम कथा का आयोजन शुरू
– 151 कलशों के साथ मन्दिर परिसर से पांच किमी तक निकाली गई कलश यात्रा

भिण्ड, 09 नवम्बर। जिले के दंदरौआ धाम में गुरू महाराज 1008 पुरुषोत्तम दास महंत बाबा की पुण्य स्मृति में 29वां वार्षिक महोत्सव रविवार को 1008 महामंडलेश्वर मंहत रामदास महाराज के सानिध्य में आरंभ हो गया। आयोजन के प्रथम दिवस दंदरौआ धाम में सुबह 10 बजे 151 कलशों के साथ मन्दिर परिसर से करीब पांच किमी तक कलश यात्रा निकाली गई।
कलश यात्रा के साथ 1008 महामण्डलेश्वर रामदास महाराज, महंत अनिरुद्धवन महाराज धूमेश्वरधाम, महंत कालिदास महाराज तेजपुरा रथ पर सवार होकर चल रहे थे। साथ ही कथा पारीक्षित माता बृजेश उपाध्याय संत समाज एवं महिलाओं के साथ वाल्मीकि कृत श्रीराम कथा की पोथी को सिर पर धारण करके चले। बैंड बाजों की धुन पर भगवान श्रीराम और हनुमानजी के भजनों पर थिरकते भक्तों ने संतों के साथ दंदरौआ धाम में धूमधाम से 151 कलशों के साथ करीब पांच किलोमीटर लम्बी यात्रा निकाली गई।
यात्रा के वापस कथा परिसर में आते ही श्रीगणेश पूजन के बाद श्रीराम कथा का वाचन कथा व्यास स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कथा के महत्व को समझाते हुए कहा कि जब भी भगवान के मन में कुछ आता है तो वे संत के माध्यम से अपनी बात आप तक पहुंचाते हैं। संत अगर आज्ञा दे रहे हंै, संत अगर कोई विचार या कोई प्रेरणा दे रहे है तो वह संत नहीं कह रहे हैं वल्कि भगवान नारायण अपनी बात आप तक पहुंचा रहे हैं। संत भगवान की ही विभूति है। उन्होंने कहा कि तीर्थ दो प्रकार के होते हैं, एक तीर्थ होता है जहां हमें जाना पड़ता है और एक तीर्थ वह होता है जो स्वयं चलकर आता है, जहां हमें जाना नहीं पड़ता वह तीर्थ संत हैं।

कथा व्यास ने कहा कि हमारे भारत की संस्कृति ऐसी है कि आप कितने भी अच्छे पकवान और व्यंजनों को बना लो वह प्रसाद नहीं कहलाता है लेकिन जब आप उसमें तुलसी दल डालते हैं तो वह प्रसाद बन जाता है। पौधों और वनस्पतियों में भी भगवान हैं, प्रतिमाओं में प्राण प्रतिष्ठा करते हैं भारत की संस्कृति में धरती को माता कहा जाता है। उन्होंने कहा कि दंदरौआ धाम के आकार हमें वैसा ही अनुभव हो रहा है जैसे चारधाम और 12 ज्योतिर्लिंगों में अनुभव होता है। यहां शांत वातावरण का अनुभव हो रहा है। यहां हनुमान जी केवल शरीर के ही कष्ट को दूर नहीं करते बल्कि अज्ञानता को भी दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि ध्यान रखना हनुमान जी ना देव है ना मानुष लेकिन वह कोई और नहीं वह तो स्वयं महादेव हैं।
कथा का वाचन रोजाना दोपहर एक बजे से शाम चार बजे तक किया जाएगा। यज्ञाचार्य रामस्वरूप शास्त्री के सानिध्य में विश्व शांति और समाज कल्याण के लिए श्रद्धालु आहुतियां देंगे। कार्यक्रम में मंच संचालन पवन शास्त्री द्वारा किया जा रहा है। इस मौके पर यज्ञाचार्य पं. रामस्वरूप शास्त्री, मंहत अनिरुद्धवन महाराज धूमेश्वरधाम, महंत कालिदास महाराज तेजपुरा, कैबिनेट मंत्री राकेश शुक्ला, पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, रामबरन पुजारी, राजेन्द्र शास्त्री, जलज त्रिपाठी, प्रमोद चौधरी ओमप्रकाश पुरोहित, अशोक पाराशर सहित हजारों श्रद्धालु शामिल रहे।