जब धरती पर अत्याचार और अन्याय बढ़ता है जब भगवान धर्म की स्थापना के लिए लेते हैं अवतार : रामभूषण दास

– मां निरंजना धाम में श्रीमद भागवत कथा अमृत महोत्सव का आयोजन
– आईजी, डीआईजी ग्वालियर पहुंंचे भागवत कथा में

भिण्ड, 09 नवम्बर। 17 बटालियन माता मन्दिर प्रांगण मां निरंजना धाम में श्रीमद भागवत कथा अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें 1008 महामण्डलेश्वर रामभूषण दास महाराज (खनेता धाम) श्रीधाम वृंदावन द्वारा भागवत कथा का वाचन किया जा रहा है।
रामभूषण दास महाराज ने चतुर्थ दिवस की कथा में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जब अत्याचारी कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने देवकी और वासुदेव के घर मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। कथावाचक बताया कि कैसे कंस को देवकी के आठवें पुत्र के हाथों अपनी मृत्यु का भय था और धर्म की स्थापना के लिए यह दिव्य अवतार हुआ। श्रीमद् भागवत के अनुसार जब-जब धरती पर अत्याचार और अन्याय बढ़ता है, तब-जब भगवान धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। कंस के अत्याचारों का अंत करने के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। द्वापर युग में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। देवकी के विवाह के समय कंस ने एक आकाशवाणी सुनी थी कि उसकी बहन के गर्भ से पैदा होने वाला आठवां पुत्र उसे मारेगा। इस भविष्यवाणी से डरकर कंस ने देवकी और वासुदेव के सभी बच्चों को मार डाला था, लेकिन श्रीकृष्ण के जन्म के बाद ही कंस के अत्याचारों का अंत हुआ।कारागार में जन्म लेते ही, भगवान का स्वरूप इतना दिव्य और प्रकाशमान था कि वासुदेव आश्चर्यचकित रह गए। जन्म के तुरंत बाद वासुदेव ने भगवान को कंस के भय से बचाते हुए टोकरी में लेकर नंदबाबा के घर गोकुल पहुंचाया, जहां यशोदा ने उनका पालन-पोषण किया।

श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन आईजी ग्वालियर रेंज अरविन्द कुमार सक्सेना, डीआईजी ग्वालियर रेंज अमित सांघी, कमाण्डेंट 17 बटालियन आशुतोष बागरी एवं 17 बटालियन का स्टाफ एवं भागवत समिति की समस्त सदस्य प्रमुख रूप से उपस्थित रहे और उन्होंने महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया। कथा में पारीक्षित की भूमिका में मुन्नी देवी प्रमोद शर्मा (डंगरौलिया) उपस्थित रहे। साथ ही चार हजार श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण कर प्रसादी ग्रहण की भी प्राप्त की।