श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में बधाई गीत पर जमकर थिरके श्रोता

भिण्ड, 02 फरवरी। अमाहा में प्राचीन शक्ति पीठ मां रणकोशला देवी मन्दिर प्रांगण में श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कथा के चौथे दिवस श्रीकृष्ण जन्म की कथा का श्रवण श्रोताओं को कराया।
कथा वाचक रमाकांत तिवारी ने कहा कि भाद्र पद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि द्वापर युग में बड रहे कंस के अत्याचारों को खत्म करने और धर्म की स्थापना के लिए उनका जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण बचपन की कई लीलाओं प्रचलित है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने मध्य रात्रि में जन्म लिया था। उनका जन्म लेते ही सभी जगह प्रकाश हो गया था। जव वासुदेव कंस से बचाने के लिए कृष्ण को गोकुल लेकर जा रहे थे तो अचानक से तेज बारिश होने लगी। यमुना के जल में लहरे उठने लगी। पानी का स्तर अचानक से बडने लगा, लेकिन कृष्ण के चरण स्पर्श करते ही यमुना का जल स्तर कम हो गया। बही शेषनाग ने कृष्ण पर छाया की कृष्ण ने लोगों को कंस के अत्याचार से मुक्त करवाया। इनके जन्म की कहानी बडी ही रोचक है।
उन्होंने कृष्ण जन्म की कथा को लेकर कहा कि मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में मथुरा में राजा अग्रसेन का राज था। कंस उनका पुत्र था। लेकिन राज्य के लालस में अपने पिता को सिंहासन पर उतारकर बह स्वम राजा बन गया। और अपने पिता को कारागार में डाल दिया। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को जन्म देने वाली देवकी कंस की चचेरी बहन थी। देवकी का विवाह वासुदेव के साथ हुआ। कंस ने अपनी बहिन का विवाह धूमधाम के साथ किया। जव बहिन की विदाई का समय आया तो कंस स्वांम ही रथ लेकर विदा करने चला तभी अचानक ही आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का काल होगा। तभी कंस उसे मारने का प्रयास करने लगा। तभी वासुदेव ने कहा कि तुम्हें देवकी से कोई भय नहीं है, मैं अपनी आठवीं संतान को तुम्हे सौप देंगे, तो कंस मान गया और देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया। जब भी देवकी को संतान होती उसे कंस मारता जाता। उसने सात संतान का बध कर दिया।
इसके बाद भाद्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रोहाणी नक्षत्र में विष्णु जी ने देवकी जी की कोख से श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। पूरे कारागार में प्रकाश हो गया। पूरे दरवाजे खुल गए पहरेदारों को गहरी नींद आ गई। विष्णु भगवान ने बासुदेव को अपना रूप का दर्शन दिया और कहा कि श्रीकृष्ण को गोकुल में नंदवावा के यहा छोड आओ और उनकी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। बासुदेव ने श्रीकृष्ण को गोकुल पहुंचा दिया और कंस की मौत रूपी माया की कन्या को कंस को सौप दिया। कंस ने जैसे ही कन्या को मारने का प्रयास किया बो छूटकर आकाश में चली गई। इसके बाद आकाश वाणी हुई की तुझे मारने बाला तो गोकुल में पहुंच गया। तभी कंस ने कई राक्षस को कृष्ण को मारने के लिए भेजा। श्रीकृष्ण ने बचपन में कई लीलाएं की ओर राक्षसों का वध किया। जब कंस ने मथुरा में श्रीकृष्ण को आमंत्रित किया, तो वे वहां गए और उन्होंने कंस का वध किया और प्रजा को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई और उग्रसेन को फिर से राजा बनाया।