साम्प्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता के कथाकार थे मुंशी प्रेमचंद : कटारे

-आलमपुर महाविद्यालय में हुआ प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन

भिण्ड, 31 जुलाई। शासकीय महाविद्यालय आलमपुर में बुधवार को प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन किया गया। जिसका मुख्य विषय प्रेमचंद की सामयिकता रखा गया था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जनभागीदारी के अध्यक्ष कल्याण सिंह कानूनगो मौजूद रहे, तो वहीं बतौर मुख्य वक्ता कथाकार महेश कटारे, लेखिका डॉ. कामिनी एवं ग्वालियर के पत्रकार रवीन्द्र झारखरिया मौजूद रहे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता महेश कटारे ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के कथा साहित्य में साम्प्रदायिक सदभाव और सामाजिक समरसता देखने को मिलती है। इसका सबसे बेहतर उदाहरण 1913 में लिखी गई उनकी कहानी पंच परमेश्वर और 1933 में लिखी गई ईदगाह में मिलता है। दोनों ही कहानियां अलग-अलग हैं। पंच परमेश्वर जुम्मन शेख और अलगू चौधरी पर आधारित है, जो बचपन से ही मित्र थे और जुम्मन के पिता जुमराती दोनों को शिक्षा प्रदान करते थे, लेकिन जुमराती ने कभी जुम्मन और अलगू में फर्क नहीं समझा। इस तरह मुंशी प्रेमचंद के कथा साहित्य में साम्प्रदायिक सदभाव मिलता है। उन्होंने कहा कि उर्दू भी हमारी प्रमुख भाषा है, हमें उर्दू को नहीं भुलाना चाहिए।
कार्यक्रम में प्रसिद्ध लेखिका डॉ. कामिनी ने कविता से शुरूआत करते हुए कहा कि भावों के आंगन में बडे दिनों के बाद कोयलिया बोली है, बहुत दिनों के बाद खुशबुएं खोली हैं। ओ सांवली पवन तुम्हारा स्वागत है, ऐ संगदिली पवन तुम्हारा स्वागत है। उन्होंने कहा कि पहले गरीब आदमी को धन के बल पर परेशान किया जाता था और आज के गरीब को छल से परेशान किया जाता है। मुंशी प्रेमचंद के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का पूरा लेखन शोषण और अन्याय के विरुद्ध खुला लेखन है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य से इस ओर इशारा किया कि प्रदर्शन, प्रियता हमें बडे-बडे संकटों में डाल देती है।
वरिष्ठ पत्रकार झारखरिया ने कहा कि आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के रचनाकार मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया था। वे न केवल ग्रामीण समाज के कुशल चित्रकार थे वरन नगरीय समाज की भी उन्हें अच्छी समझ थी। स्वतंत्रता के बाद भारत को जिस तरह से परखने, समझने और समाधान तक जाने की बागडोर अपने हाथ में ली वह अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि हिन्दी रचनाकारों में जितनी प्रसिद्धि गोस्वामी तुलसीदास की है उससे कहीं कम मुंशी प्रेमचंद की नहीं है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. भगवान सिंह निरंजन ने और आभार प्रदर्शन प्राचार्य डॉ. विजय शर्मा ने किया। इस दौरान प्राचार्य डॉ. विजय शर्मा, सीताराम गुप्त, मंदाकिनी शर्मा, रामबिहारी कौरव, देवकुमार चौधरी, मनोज कुमार, हरनारायण हिण्डौलिया, प्रथम जैन, राजकुमार परिहार, ईमान खान, रानू तिवारी, अरुण कुचिया, ऋषि त्रिवेदी, चित्रेश कौरव समेत अन्य गणमान्य नागरिक एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।