चंबल बचाओ आंदोलन की हुई जीत : दीक्षित

पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के बाद अटल प्रोग्रेस वे चंबल के बीहड़ों से नहीं निकलेगा

भिण्ड, 26 जुलाई। भिण्ड जिले के पास इटावा उत्तर प्रदेश से कोटा राजस्थान तक 404 किमी लंबी सड़क ‘अटल प्रोग्रेस वे’ चंबल के बीहड़ों से होकर बनाया जाना प्रस्तावित किया गया। इस परियोजना की घोषणा वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव से पूर्व की गई। तत्पश्चात 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस परियोजना के नाम पर वोट बटोरे गए। अभी हाल ही में जमीन अधिग्रहण के नाम पर 10 हजार किसान परिवारों जिनके पास भूमि स्वामी स्वत्व है, को भिण्ड, मुरैना, श्योपुरकलां जिलों से विस्थापित किया जा रहा था। जिन्हें नाम के वास्ते जमीन या कुछ मुआवजा दिया जाना प्रस्तावित किया। इनके अलावा पीढिय़ों से बीहड़ की जमीन को समतल बनाकर खेती कर रहे लगभग 30 हजार किसान परिवारों को भी उजाडऩे की योजना प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। इन किसान परिवारों को किसी तरह की कोई जमीन या मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था। कुल मिलाकर थोड़ा बहुत कम नगण्य मुआवजा देकर किसानों को विस्थापित कर हाईवे का निर्माण कराने के उपरांत चंबल के बीहड़ की बेशकीमती लाखों एकड़ जमीन को कार्पोरेट्स को सौंपने की योजना प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। यह जमीन कार्पोरेट्स को सड़क के दोनों ओर एक-एक किमी के कॉरिडोर में दी जानी थी। जिसमें न तो किसानों का हित देखा गया और न हीं पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का मूल्यांकन किया गया। जल्दबाजी में योजना स्वीकृत कर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई। स्थानीय किसानों ने मप्र किसान सभा (अखिल भारतीय किसान सभा) के नेतृत्व में मार्च में भिण्ड, मुरैना और श्योपुरकलां में व्यापक आंदोलन किए। उसके बाद भी लगातार कार्रवाईयां जारी रही। अंतत: कैन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के बिगाड़ को देखते हुए किसान आंदोलन के दबाव के चलते परियोजना को रोकने का आदेश दिया है। यह जानकारी मप्र किसान सभा के जिला अध्यक्ष राजीव दीक्षित ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में दी।
दीक्षित ने आगे बताया कि यह परियोजना चंबल के बीहड़ की जमीन को कार्पोरेट को सौंपने के लिए बनाई गई थी। इसमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली भारी क्षति का मूल्यांकन नहीं किया गया। यह योजना क्षेत्र के लिए तो नुकसानदायक थी ही, पर्यावरण के लिए भी भारी अपूर्णीय क्षति कारित करने वाली थी। किसान आंदोलन ने इन मुद्दों को व्यापक रूप से उठाया। जिसका नतीजा यह हुआ कि अंतत: पर्यावरण मंत्रालय को संज्ञान लेना पड़ा और योजना को निरस्त करने का आदेश जारी करना पड़ा।
दीक्षित ने इसे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत बताया है। साथ ही प्रदेश की भाजपा सरकार से मांग की है कि चंबल के बीहड़ की जमीन कार्पोरेट्स (पूंजीपतियों) को देने के बजाय किसानों को दी जाए। जमीन के पट्टे स्थानीय किसानों को ही आवंटित किए जाए। साथ ही उन्होंने बीहड़ के गांवों के विकास के लिए सड़क, स्कूल, बिजली आदि की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि चंबल बचाओ आंदोलन में चंबल के बीहड़ के 50 हजार से ज्यादा किसान परिवार जुड़े हुए हैं। उनके संघर्ष के चलते ही सरकार को पीछे हटना पड़ा है। उन्हें आगे भी इस आंदोलन को मजबूत करने और किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाने तथा गरीब और भूमिहीन किसानों को जमीन उपलब्ध कराने के संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्होंने किसानों से आगे आने की अपील की है।