भिण्ड, 08 जुलाई| मप्र आउटसोर्स कर्मचारी संघ इस समय अपनी दुर्दशा पर कर्मचारी संघ आंसू बहा रहा है। मजेदार बात यह है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार दो साल कोरोना काल से लेकर 2021 तक कोई खास निर्णय नहीं लिया। जबकि इस कोरोना महामारी में राज्य सरकार के साथ लगातार हाथ से हाथ मिला कर मप्र विद्युत वितरण कंपनी के आउटसोर्स कर्मचारियों ने राज्य सरकार के साथ बहुत ही सराहनीय कार्य किया। लेकिन राज्य सरकार ने इस विषय पर कोई अच्छा निर्णय लेते हुए अब इन कंपनियों द्वारा भी आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है। शासकीय कर्मचारियों के लिए चुनावी समय पर बाहीवाही लूट जाती है, लेकिन मप्र आउट सोर्स कर्मचारियों के साथ मप्र विद्युत वितरण कंपनी की नई कंपनियों द्वारा वेतन में इस माह लगभग 600 रुपए में कटौती की गई है। लेकिन इस ओर किसी मंत्री, विधायक, नेता, जनप्रतिनिधि एवं अधिकारियों का कोई ध्यान नहीं है। राज्य शासन द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है और शायद हमेशा किया जाता रहेगा। क्योंकि राज्य कर्मचारी संघ शासन के दामाद होते हैं, आउटसोर्स कर्मचारी इस तरह हैं कि जिस तरह गुलामी, जैसे कि दूध से मक्खी निकाल कर फेंक दी जाती है, उसी तरह इनके साथ दुव्र्यवहार एवं शोषण किया जा रहा है। इतनी महंगाई में विद्युत वितरण कंपनी इनके परिवार के भरण-पोषण के लिए मात्र 9500 रुपए में एक महीने का राशन किस तरह के लिया जा सकता है पर सोचने वाली बात है कि मप्र आउटसोर्स कर्मचारी संघ इसका विरोध कर रहा है, लेकिन राज्य सरकार इस ओर कोई ठोस निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं। मप्र सरकार में लगभग 50 हजार आउटसोर्स कर्मचारी कार्य कर रहे हैं, वहीं इनके परिवारों को बड़े सोचने की बात है, इस भरी महंगाई में अगर आउटसोर्स कर्मचारी गृह निवास को छोड़कर राजधानी या अन्य संभाग में अगर कार्य करें तो वह नौ हजार रुपए में अपने परिवार का एवं माता-पिता का भरण-पोषण नहीं कर सकता, इसे सरकार को गंभीरता से लेने की अत्यंत आवश्यकता है।