@ राकेश अचल
मप्र मे चार साल पहले लागू की गई पुलिस कमिश्नर प्रणाली पूरी तरह नाकाम हुई है, लेकिन सरकार के पास इस प्रणाली की समीक्षा की फुर्सत नहीं है| यह प्रणाली 1 दिसंबर 2021 से लागू हुई थी| इसे सबसे पहले इसे भोपाल और इंदौर में लागू किया गया था लेकिन इस प्रणाली के बाद भी इन दोनों जिलों में कानून और व्यवस्था की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ, उल्टे भोपाल में मछली और मगरमच्छ पनप गये और इंदौर में ट्रेफिक व्यवस्था से लेकर सब कुछ अराजक हो गया|
मप्र में पुलिस कमिश्नर प्रणाली की मांग बहुत पुरानी थी| मुझे याद है कि अर्जुन सिंह सरकार के समय 1980 से इसकी चर्चा शुरू हुई थी लेकिन कांग्रेस और भाजपा की सरकारें इस प्रणाली को अपनाने से कन्नी काटती रहीं| बामुश्किल 41 साल बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने इसे लागू किया भी किंतु केवल भोपाल और इंदौर जिले में|
पुलिस कमिश्नर प्रणाली दक्षिण के महानगरों से उधार ली गई| इसके तहत इन दोनों शहरों में आईजी/ एडीजी रैंक के अधिकारी को पुलिस कमिश्नर बनाया गया और वे शक्तियां दी गईं, जो पहले कलेक्टर के पास होती थीं।इन दोनों जिलों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली से अपेक्षित परिणाम नहीं निकले| सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भोपाल में 2024 में 2023 की तुलना में अपराधों की कुल संख्या में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट हुई| वर्ष 2023 में भोपाल में 320 यौन शोषण की घटनाएं थीं, जो 2024 में 304 हो गईं। घरेलू हिंसा, दहेज हत्या और
भोपाल पुलिस ने 2024 में 696 नाबालिगों को ट्रेस किया, जिसमें से 645 को वापस उनके परिवारों को सौंपा गया|
दूसरी तरफ भोपाल में हत्याओं, अपहरणों और वाहन चोरी जैसे मामलों में वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, चोरी और सेंधमारी में भोपाल के ज़ोन-2 क्षेत्रों में 2024 में 3-4 प्रतिशत की वृद्धि हुई| भोपाल में यौन अपराधों/ बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं| 2021 से लेकर 2023-2024 तक रिपोर्ट में बढ़ोतरी दर्ज की गई। वर्ष 2024 के शुरुआती आठ महीनों में ही कई नए मामले दर्ज हुए, जिसमें नाबालिग लड़कियों के साथ अपराधों का हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत बताया गया है। भोपाल में बहुचर्चित मछली कांड ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है|
प्रदेश के सबसे बडे शहर इंदौर में अपराधों की दर बढ़ी है|इंदौर में 2024 में, 2023 की तुलना में हत्या, डकैती, अपहरण आदि अपराधों में वृद्धि देखी गई। “क्राइम इंडेक्स 2024” रिपोर्ट में उल्लेख है कि कुल अपराधों में करीब 10.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है इंदौर में। पिछले दिनों एयरोड्रम रोड पर हुई भीषण त्रासदी पुलिस आयुक्त प्रणाली की नाकामी का सबसे बडा उदाहरण है|
मैं मानता हूं कि पुलिस कमिश्नरेट प्रणाली के लागू होने के बाद कुछ सकारात्मक बदलाव हुए हैं, लेकिन कुछ गंभीर अपराधों- अपहरण, हत्या, वाहन चोरी, यौन अपराध में वृद्धि हुई है| इंदौर में अपराधों की दर कुछ मामलों में खराब हुई है, यानी प्रणाली की पूरी आशा और अपेक्षाएं अभी पूरी नहीं हुई हैं।
भोपाल-इंदौर में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद (दिसंबर 2021 के बाद) जो प्रभाव और बदलाव देखने को मिले हैं, वो मिश्रित हैं- कुछ सकारात्मक, कुछ नकारात्मक। आंकड़े बताते हैं कि लूट, यौन अपराध, वाहन चोरी, अपहरण आदि मामले बढ़े हैं। जाहिर है कि नई प्रणाली में “प्रिवेंटिव” कार्रवाई या संसाधन अभी पर्याप्त नहीं हैं।
पुलिस कमिश्नर प्रणाली शहरों के लिए बनाया गया सिस्टम है, इससे ग्रामीण इलाकों से कुछ पुलिस स्टेशनों को बाहर रखा गया, जिससे उन इलाकों में कानून-व्यवस्था, मोबाइल रिस्पांस आदि में देरी या कमी होने की शिकायतें हैं। सरकार और पुलिस ने जो उम्मीद की थी, वो पूरी नहीं हो सकी। कुछ अपराधों में गिरावट के बावजूद, गंभीर अपराधों की संख्या अभी भी चिंताजनक स्तर पर बनी हुई है।
मै मानता हूं कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली ने भोपाल-इंदौर में कुछ मामलों में खास भूमिका निभाई है| अपराधों की कुल संख्या में कमी, त्वरित कार्रवाई, बेहतर निगरानी, शिकायतों में कमी आदि में सुधार हुआ है। लेकिन यह प्रणाली “जादू की छड़ी” नहीं है- कुछ अपराध अभी भी बढ़े हैं, और ग्रामीण इलाकों, संसाधनों की कमी, समन्वय की दिक्कतों के मुद्दे अभी बने हुए हैं। बेहतर हो कि मप्र सरकार इस प्रणाली की तत्काल समीक्षा कर फैसला करे कि यह प्रणाली जारी रखना है या नहीं?