– राकेश अचल
तो ये तय हो गया है कि भारत के पंत प्रधान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) समिट में शामिल होने मलेशिया नहीं जा रहे। मोदी इस समिट में आभासी (वर्चुअली) जुड़ेंगे। मोदी की जगह भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर इस समिट में हिस्सा लेंगे। यह समिट मलेशिया की राजधानी कुआलालमपुर में 26 से 28 अक्तूबर तक है।
आसियान सम्मेलन के जरिये दुनिया एक होने के बजाय दो धड़ों में बंटती नजर आ रही है। एक तरफ अमेरिका है और दूसरी तरफ रूस, चीन तथा भारत। अमेरिका के टैरिफ वार से आतंकित इन तीन बड़े देशों ने शायद अमेरिका के सामने घुटने न टेकने की रणनीति बनाई है, इसीलिए इस समिट में भारत के पंत प्रधान नरेन्द्र मोदी के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल नहीं शामिल हो रहे। आसियान की इस समिट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अलावा जापान की प्रधानमंत्री सनाए तकाइची, ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भी शामिल होंगे।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपना एशिया दौरा मलेशिया से शुरू कर रहे है, जो जापान के बाद दक्षिण कोरिया में खत्म होगा। दक्षिण कोरिया में आयोजित एशिया पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन (एपीईसी) समिट में ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हो सकती है। ट्रंप अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति हैं, जो मलेशिया दौरे पर जा रहे हैं। ट्रंप से पहले बराक ओबामा और लिंडन बी जॉनसन ने मलेशिया का दौरा किया था।
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, 27 अक्टूबर को मलेशिया में आयोजित 20वें ईस्ट एशिया सम्मेलन में एस जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। जाहिर है कि पंत प्रधान मोदी के मलेशिया नहीं जाने का मतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी आमने-सामने की मुलाकात नहीं होगी। मोदी वैश्विक आयोजनों से दूर रहने के लिए नहीं जाने जाते हैं। कुआलालंपुर समिट में मोदी के नहीं जाने को असामान्य फैसले के रूप में भी देखा जा रहा है।
आपको याद दिला दूं कि वर्ष 2020 और 2021 में कोविड महामारी के कारण पीएम मोदी आसियान समिट में वर्चुअली शामिल हुए थे, जबकि 2022 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उनका प्रतिनिधित्व किया था। इसके अलावा 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेन्द्र मोदी खुद सभी आसियान समिट में शामिल हुए हैं। यहां तक कि 2023 में भारत में आयोजित जी-20 समिट से ठीक पहले मोदी जकार्ता में आयोजित आसियान समिट में शरीक हुए थे।
दुनिया में सबसे ज्यादा घूमने वाले मोदी जी के आशियान समिट में न जाने की वजह अंतर्राष्ट्रीय दबाब तो है ही, साथ ही बिहार विध का प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव भी है। मोदी जी को अपने संकटमोचक गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति पर भी पूरा यकीन नहीं है, इसलिए वे एक दिन को भी बिहार को अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देना चाहते। वैसे टैरिफ प्रहार के बाद से हाल के मोदी ने कुछ वैश्विक आयोजनों से दूरी बनाई है। इससे पहले मिस्त्र के शर्म अल-शेख शहर में आयोजित गाजा शांति सम्मेलन से दूर रहे थे। आपको याद होगा कि सितंबर महीने में मोदी जी न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने वाले थे, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात टालने की गरज से मोदी ने इससे भी दूरी बनाई थी। मजे की बात ये है कि मोदी ने तीन दिन पहले ही गुरुवार को एक्स पर लिखा, आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने और आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने की प्रतीक्षा कर रहा हूं। लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया।
विपक्षी दल कांग्रेस ने पीएम मोदी के मलेशिया नहीं जाने के फैसले पर सवाल उठाया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सामना नहीं करना चाह रहे हैं। जयराम ने कहा, सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति ट्रंप की तारीफ में पोस्ट करना एक बात है लेकिन उनसे आमना-सामना करना दूसरी बात है। उन्होंने एक्स पर लिखा, पीएम मोदी के मलेशिया नहीं जाने की वजह साफ है, वह राष्ट्रपति ट्रंप के सामने नहीं आना चाहते, जो वहां मौजूद होंगे। उन्होंने कुछ हफ्ते पहले मिस्त्र में गाजा शांति शिखर सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भी इसी वजह से ठुकरा दिया था।
सवाल ये है कि मोदी जी क्या अब प्रधानमंत्री के रूप में कभी ट्रंप से मिलेंगे ही नहीं? क्या अब वे ट्रंप के राष्ट्रपति रहते कभी अमेरिका भी जाएंगे या नहीं? क्या भारत की विदेशनीति अनबोला साधकर अपना लक्ष्य हासिल कर सकती है? या फिर मोदी जी ट्रंप के हथियार की नोंक पर व्यापार समझौते पर दस्तखत करने से बचने के लिए पुतिन और शी जिनपिंग की तरह अड़कर ट्रंप को जीतने की कोशिश करेंगे? फिलहाल तेल देखिए, तेल की धार देखिए।







