– राकेश अचल
ईसाईयों के जगतगुरू पोप फ्रांसिस के सम्मान में भारत का राष्ट्रिय ध्वज 3 दिन के लिए झुका देखकर मैं भ्रम में पड गया हूं कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए संघर्षरत संगदिल लोगों की सरकार का दिल अचानक दरिया कैसे हो गया कि भारत में पोप फ्रांसिस के निधन पर 3 दिन का राष्ट्रिय शोक घोषित कर दिया गया। भारत में तो इन दिनों ईसाई हों या मुसलमान या जैन सभी के खिलाफ एक अघोषित शीतयुद्ध चल रहा है। पोप फ्रांसिस का 21 अप्रैल को 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया, उनके लिए भारत ने 22 से 24 अप्रैल तक तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। मुमकिन है कि ऐसा अमेरिका को खुश करने कि लिए किया गया हो।
पोप फ्रांसिस को न मैंने कभी देखा और न मिला, लेकिन टेलीविजन के पर्दे पर वे जब भी दिखे एक आकर्षक धार्मिक नेता की तरह ही नजर आए। उनके चेहरे से दया, करुणा ही झलकती दिखाई दी, उन्हें कभी उत्तेजित होते हुए नहीं देखा गया। पोप फ्रांसिस रोमन कैथोलिक ईसाई समाज के सबसे बडे धार्मिक गुरू थे। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक पोप फ्रांसिस रोमन कैथोलिक समुदाय के 266वे और सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट ऑर्डर) के पहले पोप थे, दक्षिणी अमेरिका से पहले पोप थे तथा 8वीं शताब्दी के सीरियाई पोप ग्रेगरी तृतीय के बाद यूरोप के बाहर जन्मे या पले-बढे दूसरे पोप थे।
अर्जेन्टीना के बोनस आइरिस में जन्मे पोप फ्रांसिस की भी ईश्वर में आस्था एक बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद बढी। ये बात 1958 की है। वे 1969 में पहली बार पादरी बने और फिर उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा। पोप फ्रांसिस 2013 में तत्कालीन पोप के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी बनाए गए। आप जानते ही हैं कि पोप की हैसियत सिर्फ एक धार्मिक नेता की ही नहीं होती, बल्कि वे विश्व राजनीति में एक कूटनीतिज्ञ की तरह भी किरदार अदा करते हैं। पोप फ्रांसिस प्रगतिशील और दक्षिणपंथ विरोधी नेता के रूप में उभरे। उन्होंने अनेक विवादास्पद रिश्तों और प्रवासियों के मुद्दों पर चीन जैसे देशों से मुठभेड की। पोप फ्रांसिस हमेशा प्रवासियों के हितों की रक्षा को सभ्य समाज का कर्तव्य मानते थे। उन्होंने इस मुद्दे पर अमरीकी नीतियों का भी विरोध किया।
मुझे लगता है कि पोप फ्रैंसिस का पूरा जीवन लॉर्ड और चर्च की सेवा में समर्पित रहा। पोप फ्रांसिस ने दुनिया को हमेशा साहस, प्यार और हाशिए के लोगों के पक्ष में खडा रहने के लिए प्रेरित किया। एक मायने में कहें तो पोप फ्रांसिस लॉर्ड जीसस के सच्चे शिष्य थे। पोप फ्रांसिस को कैथोलिक चर्चों में सुधार के लिए भी जाना जाता है। इसके बावजूद पोप परंपरा वादियों के बीच भी लोकप्रिय थे। फ्रांसिस दक्षिण अमेरिका (अर्जेन्टीना) से बनने वाले पहले पोप थे। पोप फ्रांसिस ईस्टर संडे को ही वेटिकन में सेंट पीटर्स स्क्वेयर पर अपने भक्तों के सामने प्रकट हुए थे।
पोप फ्रांसिस को मैं कोरा धार्मिक नेता नहीं मानता, क्योंकि उन्हें चुनाव के दौरान उन्हें रूढिवादियों और सुधारकों का जबरदस्त समर्थन मिला। पोप ने आलोचनाओं की परवाह किए बिना यौन मामलों में रूढिवादी और सामाजिक मामलों में उदारता दिखाई। पोप को उनके समर्थक उन्हें लोगों से जुडने, क्यूरिया (वेटिकन नौकरशाही) में सुधार लाने, वेटिकन बैंक में भ्रष्टाचार को समाप्त करने और चर्च में बाल यौन शोषण रोकने के संकल्प के कारण खासा पसंद करते थे। पोप बनने के चार साल बाद हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि पोप की लोकप्रियता कैथोलिक और अन्य धर्मों के बीच बहुत ज्यादा है। सोशल मीडिया एक्स पर उन्हें डेढ करोड से भी ज्यादा लोग फॉलो करते हैं। कई मुद्दों पर सीधा दखल न देने के कारण वेटिकन के अंदर और बाहर उनके विरोधियों की संख्या भी काफी रही।
आप मानें या न मानें किन्तु मुझे पोप फ्रांसिस हमेशा गांधीवादी लगे। उनका जीवन सादा और उच्च विचारों का था। एक बार की बात है कि पोप फ्रांसिस वेटिकन लौटते समय इतालवी राजधानी के मध्य में पादरी वर्ग के लिए बने एक होटल में रुके। ये होटल पोप क लिए नि:शुल्क था किन्तु उन्होंने अपना बिल चुकाने पर जोर दिया, इससे उनकी शैली की छाप पोप पद पर तुरंत पड गई। पोप ने उस विशाल पेंट हाउस अपार्टमेंट को त्याग दिया, जिसे पोप कई शताब्दियों से इस्तेमाल कर रहे थे। वह वेटिकन गेस्ट हाउस के एक छोटे से सुइट में रहने लगे। पोप फ्रांसिस ने पोप के ग्रीष्मकालीन निवास कासल गंडोल्फो को भी त्याग दिया था।
पोप फ्रांसिस मुझे इसलिए भी आकर्षित करते रहे क्योंकि वे कोरे धार्मिक भाषणों तक ही सीमित नहीं रहे। उन्होंने सामाजिक सरोकारों को भी रेखांकित किया। उन्होंने मुक्त बाजार अर्थशास्त्र पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि चर्च को समलैंगिक लोगों के लिए राय बनाने के बजाय उनसे माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने अन्य बातों के अलावा यूरोपीय प्रवासी हिरासत केन्द्रों की तुलना नजरबंदी शिविरों से की। कभी-कभी पोप फ्रांसिस की झलक मुझे भारत की द्वारिकापीठ के शंकराचार्य रहे स्वामी स्वरूपानद जी और उनके उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानद में भी दिखाई देती है।
पोप फ्रांसिस इस साल 2025 के बाद भारत दौरे पर आने वाले थे। इसके लिए भारत की तरफ से पोप फ्रांसिस को आधिकारिक तौर पर निमंत्रण दिया जा चुका था, लेकिन भारत यात्रा से पहले ही वे अनंत यात्रा पर निकल गए। पोप फ्रांसिस भारतीय संत परम्परा से भी खासे प्रभावित थे। उन्होंने पिछले साल संत श्रीनारायण गुरू की खुलकर प्रशंसा की थी। पोप फ्रांसिस ने तब कहा था कि संत नारायण गुरू का सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि दुनिया में हर तरफ और हर जगह नफरत बढ रही है। पोप ने ये बातें तब कही थीं, जब केरल के एर्नाकुलम जिले के अलुवा में श्रीनारायण गुरू के सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के मौके पर धर्म गुरुओं का सम्मेलन हुआ था। पोप ने तब वेटिकन में भी जुटे धर्म गुरुओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए ये बातें कही थीं। मानवता के इस महान प्रहरी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।