‘ना-रंगी’ जमात की ‘औरंगी’ सियासत

– राकेश अचल


सियासत का कोई एक रंग होता तो उसे आसानी से पहचाना जा सकता था, लेकिन मुल्क की सियासत तो बहुरंगी है। इन तमाम रंगों के बीच एक रंग ऐसा है जो नारंगी होकर भी ना-रंगी है। इस ना-रंगी सियासत की जमात अलग है। फर्जी की तरह टेढी-टेढी चलती है, जैसे प्यादे से फर्जी होकर फर्जी चलता है। मेरा ख्याल है कि अब आप समझ गए होंगे कि मैं किस सियासत की और किस जमात की बात कर रहा हूं?
दरअसल मुल्क में ना-रंगी सियासत ने नैतिकता की तमाम हदों को पार कर लिया है और अब नारंगी सियासत मुल्क में औरंगी सियासत पर उतर आई है। औरंगी यानी औरंगजेबी सियासत। अब नारंगी सियासत चाहती है कि इस मुल्क के इतिहास से न सिर्फ औरंगजेब को बल्कि इस मुल्क की धरती पर बनी औरंगजेब की कब्र को भी तखलिया कह दिया जाए, ताकि ‘न रहे बांस और न बजे बांसुरी।’ नारंगी सियासत को लगता है कि जब तक इस मुल्क की जमीन पर औरंगजेब का नाम लेने वाली किताबें और लोग रहेंगे, तब तक इस देश में नारंगियों की सियासत कामयाब नहीं हो सकती।
नारंगी सियासत देश की अर्थ व्यव्स्था की दयनीय हालत, किसानों के आंदोलन, कुपोषण, गरीबी से परेशान नहीं है। उसे परेशानी नहीं है दुनिया के आधुनिक औरंगजेबों से जो मुल्क कि अस्मिता और समरभूता की धज्जियां उदा रहे हैं। उसे परेशान किऐ हुए है चैन से दो गज जमीन के नीचे 300 साल से सोया हुआ औरंगजेब। वो औरंगजेब जो इसी मुल्क की सरजमीं पर पैदा हुआ और इसी मुल्क की सरजमीं में सुपुर्दे खाक कर दिया गया। 300 साल पहले चूंकि इस मुल्क में कोई नारंगी सियासत करने वाला नहीं था, इसलिए औरंगजेब को दो गज जमीन भी मिल गई, वरना यदि औरंगजेब आज मरता तो उसे दफन होने के लिए बहादुर शाह जफर की तरह रंगून या एमएफ हुसैन की तरह कुवैत ले जाना पडता। क्योंकि नारंगी सियासत में औरंगी सियासत के लिए कोई जमीं नहीं है।
ताजा खबर ये है कि ना-रंगी ब्रिगेड मुगल सम्राट रहे औरंगजेब की कब्र तक खोद कर फेंक देना चाहती है। नारंगी ब्रिगेड की मांग पर महाराष्ट्र की महान सरकार कानूनी रास्ते भी खोजने में लग गई है। औरंगजेब की कब्र पुराने औरंगाबाद में है, जिसे नारंगी ब्रिगेड ने बदलकर छत्रपति संभाजी नगर कर दिया है। अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भी इस मामले पर बयान दिया है। फडणवीस ने कहा है कि सभी का मानना है कि छत्रपति संभाजी नगर में स्थित औरंगजेब की मजार को हटाया जाना चाहिए, लेकिन यह काम कानून के दायरे में किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र की सतारा सीट से भाजपा के सांसद और मराठा राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयन राजे भोसले ने छत्रपति संभाजी नगर जिले में स्थित औरंगजेब के मजार को हटाने की मांग की थी। उदयन राजे से पहले उनके तमाम पुरखों के दिमाग में ये हल्का ख्याल कभी नहीं आया। वे ‘बीती ताहि बिसार दे’ के सिद्धांत पर अमल करते रहे।
इस शानदार मुल्क में नारंगी ब्रिगेड लम्बे इंतजार के बाद सत्ता में आई है। उसके दोनों और बैशाखियां लगी हैं, लंगडा कर चलती है, लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आना चाहती नारंगी ब्रिगेड। मुल्क के अमनो-अमान से उसे शायद चिढ है। नारंगी ब्रिगेड का ख्वाब तो इस मुल्क से 20 करोड मुसलमानों को देश निकला देने का है, लेकिन वो ऐसा दस साल में नहीं कर पाई, इसीलिए शायद अब औरंगजेब की कब्र हटाकर वो अपने ख्वाब में सांकेतिक रंग भरना चाहती है। यानि आप समझ सकते हैं कि घृणा मरकर भी नहीं मरती। 300 साल बाद भी नहीं मरती घृणा अमर है, अजर है। इसी घृणा के सहारे आज-कल मुल्क की नारंगी सियासत चल रही है। भगवान श्रीराम भी इस घृणा को समूल समाप्त नहीं कर सकते।
आने वाले दिन बेहद चुनौती भरे हैं। कुछ लोग हैं जो औरंगी राजनीती के बहाने खून की होली खेलना चाहते हैं। खेल शुरू भी हो गया है। कोई संभल में एक मस्जिद का चेहरा पोतना चाहता है, तो कोई चैम्पियन ट्राफी जीतने के बहाने बजरंगवली के नारे लगाकर अपना मकसद पूरा करना चाहता है, हालांकि किसी ने बजरंगवली से इसके वारे में कोई इजाजत नहीं ली है। नारंगी ब्रिगेड की औरंगी सियासत आजाद भारत की सबसे कडवी, काली और बदसूरत सियासत है। अब ये मुल्क की अवाम को तय करना है कि वो इसी तरह की सियासत को पसंद करती है या नहीं? इस तरह की सियासत के चलते खामोश रहना भी एक तरह का गुनाह है। आप इसके खिलाफ लिखकर, बोल कर, सडकों पर निकल कर विरोध कीजिए। और कुछ नहीं तो अपने मताधिकार के जरिए बोलिए। यदि आप सबने अपनी चुप्पी न तोडी तो तय मानिए कि ये नारंगियों की औरंगी सियासत इस मुल्क को पूरी दुनिया में मुंह दिखने लायक नहीं छोडेगी।
बहरहाल औरंगजेब की कब्र सांभाजी नगर में रहे या उखाड फेंकी जाए, इससे न औरंगजेब की रूह को कोई फर्क पडऩा है और न औरंगजेब के वारिसों को, वे तो कहीं पंचर जोड रहे होंगे या बढईगीरी कर रहे होंगे। फर्क पडेगा इस मुल्क के आइन को, उस आइन को जिसकी कसमें खाते हमारे भाग्यविधाता नहीं थकते। आइन यानि संविधान। यदि संविधान के रहते ये मुल्क एक 300 साल पुरानी किसी मुगल की कब्र नहीं बचा सकता तो आम आदमी के हको-हुकूक को क्या खाक बचाएगा? फिर इस संविधान की जरूरत क्या है? मुझे इस बात में कोई संदेह यानि शक-सुब्हा नहीं है कि नारंगी ब्रिगेड औरंगजेब की कब्र को बख्श देगी। नारंगी ब्रिगेड इससे पहले बाबर के नाम से तामीर एक मुर्दा इमारत को जमीदोज कर चुकी है, वो भी बिना किसी जेसीबी मशीन या बुलडोजर के। तो आप किसी दिन देखेंगे कि औरंगजेब की कब्र भी ठीक उसी तरह खोद फेंकी जाएगी हालांकि उस क्रूर बाशाह की कब्र किसी विवादास्पद जगह पर नहीं बनी है। ऊपर वाला नीचे हो रहे इस नाटक को रोक सके तो रोक ले, अन्यथा नीचे रहने वाले भगवान तो खुद नारंगी और औरंगी सियासत के लंबरदार है। जय श्रीराम।