– राकेश अचल
कहते हैं कि ‘जब सूप तो सूप, छलनी भी बोल उठे’ तो समझिये कि संकेत अच्छे नहीं हैं। सत्तारूढ दल में मुस्लिम शासकों के खिलाफ छाया युद्ध में अब औरंगजेब के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की एंट्री हो गई है। भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने अपने तुगलक लेन आवास की नेमप्लेट बदलकर स्वामी विवेकानंद मार्ग कर ली है। उनके इस कदम पर राजनीति शुरू हो गई है। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि ऐसे नामों को बदलने का दिल्ली में भी सही समय आ गया है।
मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में जानने से पहले दिनेश शर्मा के बारे में जान लीजिए। पंडित जी उसी लखनऊ के हैं और उत्तर प्रदेश से ही राजयसभा के लिए चुने गए हैं। लखनऊ से कभी भाजपा के संस्थापक अटल बिहारी बाजपेयी सांसद हुआ करते थे। पंडित जी राजनीति में आने से पहले प्रोफेसर थे, फिर महापौर बने, विधायक बने, उप्र के उप मुख्यमंत्री बने और अब सांसद हैं। एक जमाने में पं. अटल बिहारी वाजपेयी ने दिनेश शर्मा को महापौर बनाने के लिए जनता से वोट मांगे थे। यही दिनेश शर्मा अब उस रास्ते पर निकल पडे हैं जिस पर अटल जी कभी नहीं चले।
आइये अब मोहम्मद बिन तुगलक के बारे में जान लेते हैं। तुगलक क्रूर औरंगजेब से भी पुराना मुगल शासक था। गयासुद्दीन तुगलक के इस पढे लिखे बेटे ने 1325 से 1351 तक दिल्ली के तख्त पर राज किया और अपने जमाने में क्रूरता की, सनक की अनेक इबारतें लिखीं। तुगलक को पढने बैठिये तो आपको एक उपन्यास जैसा मजा आ जाएगा। 20 मार्च 1351 में कालकवलित हुए तुगलक के नाम पर दिल्ली में युगों से एक सडक है। अब इसी सडक के विरोध के बहाने तुगलक 674 साल बाद एक बार फिर जेरे बहस है। तुगलक के सनकी फैसलों की वजह से एक मुहावरा ही बन गया, जिसे ‘तुगलकी फरमान’ कहा जाता है। तुगलक के बारे में यदि आपको ज्यादा जानना है तो इतिहास की कोई किताब खरीद लीजिए।
मैं वापस आता हूं भाजपा की बिना मुद्दों की राजनीति की ओर। भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी से लेकर दिनेश शर्मा तक बिना मुद्दों की राजनीति करते हैं। वो इसलिए करते हैं क्योंकि मुद्दों पर राजनीति करना आसान नहीं होता है, लेकिन बिना मुद्दों के सुर्खियां बटोरना और असल मुद्दों को इन सुर्खियों के नीचे दफन कर देना होता आसान होता है। भाजपा नेता आसान काम पहले करते हैं। भाजपा मुस्लिम शासकों को न मरने देती है और न जनता को चैन से बैठने देती है। बेचारा औरंगजेब कब्र से बाहर निकालकर पीटा जा रहा है। अभी वो अध्याय समाप्त भी नहीं हुआ था कि पं. दिनेश शर्मा तुगलक को कब्र से बाहर निकाल लाए। मतलब भाजपा मुर्दों को भी चैन से सोने नहीं दे रही। कल पता नहीं कौन सा मुर्दा कब्र से बाहर निकाल लाए भाजपा।
मुसलमान शासकों को हौवा बनाकर सियासत करने वाली भाजपा को मेरा एक ही मश्विरा है कि उसे रोज-रोज का मुस्लिम विरोध करने की बजाय एक बार में किस्सा समाप्त कर देना चाहिए। देश में मुस्लिम शासकों के नाम से जितने गांव, शहर, गली-मुहल्ले हैं, उन सबके नाम एक झटके में एक विधान बनाकर बदल देना चाहिए। कम से कम जहां डबल इंजिन की सरकारें हैं, वहां तो ये काम आसानी से हो सकता है। दूसरे भारत में जितने भी कब्रस्तान हैं उनके ऊपर बुलडोजर चलाकर वहां बागीचे बना देना चाहिए, न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। किन्तु मुश्किल ये है कि भाजपा ये भी नहीं कर सकती। क्योंकि यदि ऐसा कर दिया गया तो विरोधी भाजपा नेताओं की तुलना ही औरंगजेब और तुगलक से किए बिना नहीं मानेंगे।
इतिहास गवाह है कि जिस किसी भू-भाग में इतिहास पर धूल डालने की कोशिश की गई है, वहां का न वर्तमान समृद्ध हो पाया है और न भविष्य उज्ज्वल हुआ है। इतिहास ही ज्ञान का असल स्त्रोत माना जाता है। इतिहास ही यदि नींव में नहीं है तो कैसा वर्तमान और कैसा भविष्य? मुझे मध्यकाल के किसी भी मुगल शासक से कोई सहानुभूति नहीं है, लेकिन मैं उनके होने को भी खारिज नहीं करता। मै उनसे घृणा भी नहीं करता। मै नहीं कह सकता कि इस मुल्क को बनाने में केवल आज के शासकों का योगदान है और अतीत के किसी भी शासक का कोई योगदान नहीं है। यदि भाजपा की ये धारणा है तो उसे सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने की गुलामी के चिन्ह समाप्त करने से पहले मुगलों के और मुगलों से पहले जो भी शासक रहे हैं उनके अवशेष या चिन्ह समाप्त करना चाहिए। विस्मिल्लाह दिल्ली में बनी कुतुब मीनार तोडकर किया जा सकता है। कहते हैं कि कुतुब मीनार किसी मुगल शासक कुतबुद्दीन ऐबक ने बनाई थी। उसके नाम से भी दिल्ली में बहुत कुछ है।
पाठकों को और हिन्दुस्तान के लोगों को ये तय करना है कि मुल्क में क्या रहे और क्या न रहे? ये तय करने वाले भाजपाई कौन होते हैं? उन्हें तो देश बनाने का मौका जुम्मा-जुम्मा दस साल पहले मिला है और उसमें भी उन्होंने जो हिन्दुस्तान बनाया है वो दरका हुआ, डरा हुआ, एक सशंकित हिन्दुस्तान बना है। जिसमें सरकार शहरों, स्टेशनों, सडकों की नाम बदलने से ही फारिग नहीं हो पाई है। मुझे तो हैरानी होती है कि जो घ्रणित और घटिया काम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं किया, वो घटिया और घ्रणित काम अटलजी के शिष्य दिनेश शर्मा कर गुजरे। तुगलक लेन का नाम हालांकि अभी बदला नहीं है, लेकिन यदि बदल भी जाए तो तुगलक इतिहास से गायब नहीं हो सकते। तुगलक क्या कोई भी गायब नहीं हो सकता। इसलिए बेहतर है कि भाजपा और भाजपाई अपना मुस्लिम प्रेम (घृणा) बंद करें और ये मुल्क जैसा बना था उसे वैसा ही बना रहने दें। हिन्दुस्तान/ भारत/ इंडिया जैसा था खूबसूरत है। उसे विकृत मत कीजिए। जय श्रीराम।