और सूर्य अस्त हो गया

पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर विशेष

अशोक सोनी निडर


27 मई 1964 ये वो काला दिन था जब भारत के लोकप्रिय यशस्वी प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ था। पूरा देश शोक में डूबा हुआ था। सियासी तौर पर नेहरू जी और अटलबिहारी वाजपेई एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे, लेकिन उनके आपसी संबंध बहुत ही माधुर्य पूर्ण रहे और वे हमेशा एक-दूसरे का सम्मान करते रहे। हमारे भारत के, नहीं-नहीं भाजपा के वर्तमान प्रधानमंत्री दामोदर दास मोदी जो पानी पी-पीकर नेहरू जी को कोसते रहते हैं, उसी भाजपा के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटलविहारी वाजपेई ने नेहरू जी के निधन पर दुखी एवं भावुक मन से श्रृद्धांजलि देते हुए लोकसभा में संबोधन देते हुए कहा था कि एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूंगा हो गया, एक लौ थी जो अनंत में विलीन हो गई, एक ऐसे दीपक की लौ जो रात भर अंधेरों से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर बुझ गया। मृत्यु अटल है, शरीर नश्वर है, कंचन जैसी जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए हैं उसका नाश निश्चित था। लेकिन मौत इतनी चोरी छिपे आई जब सभी संगी साथी सारे पहरेदार गहरी नींद में सोए थे। भारत माता शोक मग्न है आज उसकी एक अमूल्य निधि लुट गई उसका लाडला बेटा खो गया, मानवता खिन्न है उसका पुजारी सो गया, शांति आज अशांत है उसका रक्षक चला गया, दलितों का सहारा, जन-जन की आंख का तारा, विश्व के रंगमंच का कुशल अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अंतरध्यान हो गया। वे शांति के पुजारी थे तो क्रांति के अग्रदूत भी थे, अहिंसा के प्रशंसक थे, लेकिन स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हथियारों से लडऩे के हिमायती भी थे, उनमें उदारता भी थी और दृढ़ता भी, पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अदभुत समिश्रण का प्रतीक थी। चीनी आक्रमण के दिनों में कुछ मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान से समझौता किया जा सकता है, अन्यथा हमें दोनों मोर्चों पर लडऩा पड़ेगा, तो युद्ध होते हुए नेहरू जी ने कहा था कि जरूरत हुई तो हम लड़ेंगे, लेकिन दबाव में समझौता नहीं करेंगे। जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी व संरक्षक थे आज वह स्वतंत्रता संकट में है, राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को हर मूल्य पर कायम रखते हुए हमें संपूर्ण शक्ति के साथ उसकी रक्षा करनी होगी। जिस भारतीय लोकतंत्र की स्थापना कर उसे सफल बनाया आज उसके भविष्य के प्रति कई आशंकाएं हैं। नेता चला गया अनुयायी रह गया, सूर्य अस्त हो गया, अब तारों की छांव में हमें अपना मार्ग ढूंढना है, यह परीक्षा काल है, यदि हम अपने को समर्पित कर सकें एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए जिससे भारत सशक्त हो समर्थ हो और स्वाभिमान के साथ विश्वशांति की चिर स्थापना में अपना योगदान दे सकें यही उनके लिए सच्ची श्रृद्धांजलि होगी। उनकी जिंदादिली, उनकी सज्जनता, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की भावना, मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति उनकी देशभक्ति के प्रति, उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर सम्मान के अलावा और कुछ नहीं है। जयहिन्द वंदे मातरम।