नए संसद भवन के उदघाटन का अधिकारी कौन

अशोक सोनी ‘निडर’


आगीम 28 मई को नए संसद भवन उदघाटन भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी करने जा रहे हैं। लेकिन इस उदघाटन में न तो 19 विपक्षी दलों का एक भी सदस्य शामिल हो रहा है और न ही भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू इस आयोजन से खुश हैं। इस विरोध की वजह भी साफ है।
भारतीय लोकतंत्र की परंपरा के अनुसार संसद भवन जैसी महत्वपूर्ण इमारत का उदघाटन देश के प्रथम नागरिक के रूप में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू द्वारा कराया जाना चाहिए था, लेकिन मोदी जी की अति स्व महत्वाकांक्षा के चलते यही लगता है कि एक तो राष्ट्रपति दलित समाज से आती हैं, दूसरी बात राष्ट्रपति के हाथों उदघाटन होने से शिलान्यास पत्थर पर मोदी जी का नाम नहीं लिखा जाता। जिससे उनका कद व महत्व कम हो जाता। और सही भी है जो प्रधानमंत्री कोरोना वेक्सिन और शौचालयों पर अपनी फोटो और नाम लिखाने का लोभ संवरण नहीं कर सके तो संसद भवन के पत्थर पर नाम न लिखने को कैसे बर्दास्त करते।
वैसे भी अभी तक के राजनीति के इतिहास में संसद में पक्ष और विपक्ष ने एक-दूसरे को जमकर कोसा है, लेकिन हमारे पहले प्रधानमंत्री मोदी ऐसे व्यक्ति हैं जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को व्यक्तिगत रूप से गालियां देने और भारत की दुर्दशा का जिम्मेदार ठहराने में नहीं चूकते और शायद यही वजह है कि संसद भवन का उदघाटन किसी महापुरुष, शहीद या स्वतंत्रता सेनानी के स्मरण दिवस के बजाय सावरकर जैसे व्यक्ति के जन्म दिवस पर किया जा रहा है, जिस पर स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजों से माफी मांगने और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की साजिश के आरोप लगते रहे हैं। गांधी जी के हत्यारे गोडसे को जननायक बनाकर नई पीढ़ी को स्वतंत्रता के इतिहास से भ्रमित करने का दुष्चक्र रचा जा रहा है। मोदी जी सबका साथ, सबका विकास का नारा देते हुए कहते हैं कि राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन अगर यही उदघाटन सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बाल गंगाधर तिलक, रानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी या अन्य महापुरुषों के जन्मदिवस पर होता तो सारा देश ही नहीं विश्व भी गौरवान्वित होता।
आज पहली बार ऐसा हो रहा है कि इस भव्य आयोजन में न तो राष्ट्रपति को महत्व दिया गया और न ही विपक्षी पार्टियों को, शायद इसी लिए प्रधानमंत्री अकेले ही संसद भवन का शिलान्यास करने का गौरव प्राप्त करेंगे।