अवैध से वैध तक की राजनीति

– राकेश अचल


कुर्सी के लिए नेता कुछ भी कर सकता है, करता आ रहा है, करता रहेगा। किसी अवैध काम को बेशर्मी से वैध करना मप्र में एक पुरानी परंपरा है। ये परंपरा तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने शुरू की थी और शिवराज सिंह चौहान तक जारी है। मप्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने करीब 6077 अवैध कॉलोनियां वैध करने की घोषणा की। इन कॉलोनियों को सिर्फ वैध ही घोषित नहीं किया गया, बल्कि इनमें नि:शुल्क विकास कार्यों की भी गारंटी दी गई है। दी भी क्यों न जाए, इन अवैध कालोनियों में वोटों की फसल जो लहलहाती हैं।
मप्र में अवैध कॉलोनियां विकसित करने का धंधा बहुत पुराना है। इस धंधे में भूमाफिया, जन प्रतिनिधि और प्रशासन की परस्पर सांठ-गांठ आदिकाल से है। ये अवैध कॉलोनियां बसाने के लिए नगर नियोजन कानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। राजस्व कानून को ठेंगा दिखाया जाता है। अफसर आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं और अदालतें फैसले करने से कतराती हैं। मप्र में सोशल इंजीनियरिंग के जनक माने जाने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अवैध कॉलोनियों को वैध करने की नींव रखी थी। उनकी सोच समाजवादी अवश्य थी लेकिन वोट का गणित वे भी नहीं भूले थे। अर्जुन सिंह के बताए रास्ते पर कांग्रेसी मुख्यमंत्री तो चले ही लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्री तो दौड़ लगाते नजर आने लगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के मुरीद हैं। वो सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि अर्जुन सिंह अपने व्यक्तित्व और कार्यों की वजह से देश में जाने जाते हैं। उन्होंने मप्र को पूरे देश में पहचान दिलाने का कार्य किया और गरीबों के कल्याण के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें राजनीति के चाणक्य के रूप में भी जाना जाता है। अवैध कॉलोनियों को बनाने और नियमित कराने का धंधा अरबों रूपए का है। आज तक किसी सरकार ने अवैध कॉलोनियों की बसाहट के लिए किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। हर विधानसभा चुनाव के पहले राज्य सरकार अवैध को वैध करती है। इन अवैध कॉलोनियों में रहने वाले भी इस सच को जानते हैं और स्थानीय निकाय भी। इसलिए कहीं कोई गफलत नहीं है। चुनाव आयोग भी इसे कदाचार नहीं मानता, जबकि ये सब कदाचार के साथ ही कानून की धज्जियां उड़ाने का संगीन अपराध है। कोई इस तरह के फैसलों का विरोध नहीं करता। विरोध होता भी है तो केवल औपचारिकता के लिए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नगरीय क्षेत्रों की अवैध कॉलोनियों को वैध करने के साथ ही ‘भवन अनुज्ञाÓ देना भी शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि खून पसीने की कमाई से बनाया गया मकान अवैध नहीं हो सकता। कॉलोनी को अवैध ठहराने का निर्णय ही अवैध है। इस निर्णय को मैं समाप्त करता हूं। हमारे भाई-बहनों ने शहरों में आकर जहां सस्ती जमीन मिली, वहीं प्लाट खरीदे। बाद में वह कॉलोनियां अवैध घोषित हो गईं। अवैध के नाम पर जो कलंक कॉलोनियों पर लगा था आज उसे हम मिटाने आए हैं। अब सवाल ये है कि अवैध कॉलोनियों को जब सरकार ही कलंक मानती है तो वैध कॉलोनियों की बात करना ही बेकार है। क्या इस तरह की सोच कानून के राज के लिए आदर्श हो सकती है? कल को सरकार अवैध शराब के कारोबार को भी वैध घोषित कर दे तो कोई क्या कर सकता है। सरकार एक समर्थ संस्था है। वो जो चाहे कर सकती हैं, कर रही है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश भर में कुकुरमुत्ते की तरह अवैध कॉलोनियों के फैलने से शहरी विकास के रास्तें में बड़ा खतरा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारों के पास इस तरह के अवैध कॉलोनियों से निपटने और उसे बनने देने से रोकने के लिए एक समग्र प्लान की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने मामले में गोपाल शंकरनारायण को कोर्ट सलाहकार नियुक्त किया है और सुझाव मांगा है कि सरकार इन अवैध कॉलोनियों को रोकेने के लिए क्या कर सकती है ये बताएं। लेकिन आज तक किसी ने कुछ नहीं बताया।
अवैध कॉलोनियों को वैध करने का पुण्य हर दल कमाना चाहता है। मप्र कोई अपवाद नहीं है। राजधानी दिल्ली में भी यही पाप हो रहा है जो भोपाल में हुआ है। मुझे याद है कि दिल्ली की अवैध कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की लिए बड़ी खबर है कि अब वे अपने मकान, दुकान या प्लॉट की रजिस्ट्री करा सकेंगे। वे अपनी संपत्तियों पर बैंक से लोन ले सकेंगे। संसद के बजटकालीन सत्र में दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का बिल पास हो गया है।
आवास और शहरी विकास राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सदन में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) द्वितीय (संशोधन) विधेयक 2021 पेश किया। थोड़ी चर्चा के बाद निचले सदन ने यह विधेयक पारित कर दिया गया। दिल्ली के इन सभी कॉलोनियों में अब पीएम-उदय योजना लागू की जा रही है। इसके अलावा दिल्ली रिफॉर्म्स ऐक्ट के सेक्शन 81 के तहत दर्ज केसों को भी वापस लिया जा रहा है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने राजधानी के 79 गावों के शहरीकरण को भी मंजूरी दे चुके हैं।
अवैध कॉलोनियों को नेस्तनाबूद करने के लिए जहां बुलडोजर चला, वहां राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी निशाने पर रहे। कानून के राज को स्थापित करने के लिए नहीं। कानून का राज तो गैरकानूनी काम को वैध करने से होता है। तीन महीने बाद चुनाव मैदान में उतरने वाली मप्र की भाजपा सरकार को अवैध कॉलोनियों से कितना समर्थन मिलेगा, ये कहना संभव नहीं है, लेकिन ये खेल है चुनावी है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।