नोट ही नहीं, नेता भी बदल सकते हैं आप

– राकेश अचल


इस समय देश में 2000 के नोट बदलने की होड़ लगी है। याद रखिये की होड़ लगी है कतार नहीं। कतार तब लगती है, जब ये बड़ा नोट आम आदमी के पास होता। लेकिन ये बड़ा नोट तो बड़े-बड़े लोगों के पास है और बड़े लोग कभी कतार में नहीं लगते। 2016 में भी नहीं लगे थे और आज भी नहीं लगे हैं। आगे भी शायद ही ऐसी कोई नौबत आएगी। नोटबंदी से आतंकित लोगों ने बड़े नोट रखना ही बंद कर दिए, लेकिन नोटबांडी से ताकतवर हुए लोगों के लिए बड़े नोट बड़े ही काम के निकले। अभी भी बड़े नोट जमा करने या बदलने में वैसी दिक्कत नहीं है जैसी पहले की नोटबंदी के दौरान थी।
मैं भी महान अर्थ शास्त्रियों की तरह नोटबंदी का समर्थक नहीं रहा। मैंने भी पिछले अनेक वर्षों से भारत को छोड़ दुनिया के किसी दूसरे देश में नोटबंदी न देखी थी और न सुनी थी। लेकिन अब नोटबंदी मुझे अच्छी लग रही है। तो इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं है कि मेरा हृदय परिवर्तन हो गया है और मैं भाजपा का समर्थक हो गया हूं। वैसे भाजपा का समर्थक होना कोई पाप नहीं है। दलबदल करना पाप है, जो अक्सर लोग करते है। और बड़े नोटों की तरह बड़े लोग ही करते हैं। जो नहीं करते, वे अब करना चाहते हैं।
बड़े नोटों को बंद करके सरकार ने देश की जनता को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है, किन्तु ये संदेश 2000 के नोट में लगी अदृश्य चिप की तरह ही है। सरकार ने आम जनता को संदेश दिया है कि जैसे देश में बड़े नोट बदले जा सकते हैं ठीक वैसे ही जनता चाहे तो देश के बड़े नेताओं को भी बदल सकती है। बड़े नेताओं को बदलने के लिए किसी रिजर्व बैंक से पूछने की जरूरत नहीं है, हां इसके लिए आपको कतारों में अवश्य लगना पड़ेगा। आप कतार में लग कर जिसे चाहे उसे बदल सकते हैं। संविधान ने ये ताकत आपको दी है, लेकिन आप शायद बदलने की इस ताकत से वाकिफ नहीं हैं।
पिछले दिनों कर्नाटक की जनता ने 2000 के नोट में छिपी अदृश्य चिप के इस संदेश को पढ़ लिया, समझ लिया और ऐसी कतारों में लगी कि कर्नाटक के 40 फीसदी कमीशन लेने वाले मंत्रियों को ही नहीं बल्कि भाजपा की पूरी सरकार को ही बदल डाला। यानि बदलाव कोई बड़ी बात नहीं है। बदलाव आपके अंदर की भावना है, जो अंदर करेंट की तरह होता है। आप ही उसे नहीं पहचान पाते या भक्तिभाव में बदलाव करने से पीछे हैट जाते हैं। बचपन में हमारे बुजर्ग कहते थे कि नाक, मूछ, नारी को बारेपन में ही सम्हाल लेना चाहिए। ठीक इसी प्रकार तवे की रोटी और घोड़े की जीं को भी समय-समय पर बदल लेना चाहिए, अन्यथा परेशानी होना स्वाभाविक है।
बड़े नोट हों या छोटे, बड़े नेता हों या छोटे सबको समय-समय पर बदलते रहिए। कभी कोई परेशानी नहीं होगी। बदलाव प्रकृति का नियम है, प्रकृति खुद बदलकर आपको ये संदेश देती है कि बदलो, अपने आपको बदलो, अपनी सरकार को बदलो। खुद को बदलो तो जग बदल ही जाएगा, अन्यथा न बदलने के जो दुष्परिणाम होते हैं वो आप आज भोग ही रहे हैं। मंहगाई आपके सिर पर भूत की तरह सवार है। बेरोजगारी आपका जीना हराम किए हुए है। भ्रष्टाचार आपको आम के अचार की तरह अच्छा लगने लगा है। अरे भाई! इन सबको बदलिए। बदलाव के बिना अब कोई और विकल्प बचा ही नहीं है।
बदलाव को लेकर देश की जनता भुलक्कड़ लगती है। जनता ने 2014 में बदलाव किया था। जिन अच्छे दिनों के लिए बदलाव किया था, वे नहीं आए। इसे देखते हुए 2019 में जनता को फिर बदलाव करना चाहिए था, किन्तु नहीं न किया। तो आज भुगत रही है जनता और कर कुछ नहीं पा रही। बदलाव में यकीन रखने वाले ही प्रगतिशील माने और जाने जाते हैं। विधानसभा चुनावों में बदलाव की बयार चलती है तो अच्छा लगता है, अन्यथा हमारे सूबे की तरह न बदले जाने वाले नेता मामा बनकर जनता को मामू बनाने लगते हैं। मामू बनने से बेहतर है कि बदलाव करो। मुफ्त की रेल तीर्थ यात्राओं और हवाई यात्राओं के चक्कर में मत पड़ो। देश की 80 करोड़ से ज्यादा जनता मुफ्त के खाने के चक्कर में घनचक्कर बनी फिर रही है। भूल गई है कि वो किस कुचक्र में फंस गई है।
कहते हैं कि जहां बदलाव नहीं होता वहां पानी भी सडऩे लगता है। काई ही काई फैल जाती है और काई का काम है आपको फिसलाना, गिराना। इसलिए सावधान, न पानी को सडऩे दीजिए और न काई को पनपने दीजिए, ये बातें सुनी-सुनाई नहीं बल्कि तजुर्बे की हैं। बदलाव आनंददायक होता है। बदलाव संसार का नियम है। बदलाव को दूसरे शब्दों में चेंज, तबदील, तबदीली, तब्दीली, परिवर्तन, विकार, विकृति भी कहते हैं, अब ये आपके ऊपर है कि आप इनमें से किस शब्द को जानते और मानते हैं। सूक्ति है कि ‘हर कोई इस दुनिया को बदलने के बारे में सोचता है, लेकिन कोई भी खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता।’ मैं अक्सर कहता हू कि यदि आप चीजों को देखने का तरीका बदल दें, तो जो चीजें आप देखते हैं बदल जाएंगी।
आप सोच रहे होंगे कि बंदा आज बहक गया है, लेकिन मैं बहका नहीं हूं। कुछ समय के लिए बदला हूं। बदलाव से डरने वाले लोग अक्सर सोचते हैं कि लोग क्या कहेंगे? यह सोच कर जीवन जीते हैं, भगवान क्या कहेंगे, क्या कभी इसका विचार किया? ठण्डे दिल से सोचिये कि जब फैशन बदलता है, तो राजनीति और नेता क्यों नहीं बदल सकता? बदलाव की भी सीमाएं है। आप भूतकाल यानि अपने अतीत को नहीं बदल सकते, किन्तु भविष्य को बदल सकते हैं, सवांर सकते हैं। तो फिर जब नोट बदलने में आपको कोई हिचक नहीं है तो नेता और नेतृत्व बदलने में झिझक कैसी?
जब नेता और नेतृत्व झांसा देने लगें तब समझ लीजिए कि उनको बदलने का समय आ गया है, फिर भले ही वे किसी भी दल के हों, किसी भी विचारधारा के हों। बदलने का अर्थ है सुधरना, परफेक्ट होने के लिए भी बदलाव जरूरी माना जाता है। आप यकीन कीजिए कि ‘जिन बदलावों से हम सबसे ज्यादा डरते हैं, उनसे हमारा उद्धार हो सकता है।’ भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा अक्सर कहते थे कि ‘इस दुनिया को बदलने का सबसे शक्तिशाली हथियार शिक्षा है।’ और मैं कहता हूं कि दूषित नेतृत्व को बदलने का सबसे शक्तिशाली हथियार वोट है। वोट का इस्तेमाल कीजिए। ये भूल जाईए कि कुछ भी नहीं बदलता। सब कुछ बदलता है, कोशिश तो कीजिए। कभी-कभी जो सबसे छोटे फैसले होते हैं। वह आपके जीवन को हमेशा के लिए बदल सकते हैं। इसलिए हे मित्र ‘बदलाव के बारे में सोचिए और दोस्तों को छोड़ दीजिए। जिंदगी किसी के लिए भी नहीं रुकती।’
बदलाव को लेकर भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। एक कट्टरपंथी ही बदलाव के खिलाफ हो सकता है, क्योंकि कट्टरपंथी वो होता है जो अपना दिमाग बदल नहीं सकता और विषय वो बदलता नहीं है। आज आपको बदलाव से रोका जा रहा है। कहा जा रहा है कि कमाओ, कमाते रहो और तब तक कमाओ, जब तक महंगी चीज सस्ती न लगने लगे। याद रखिए कि सभी महान परिवर्तन अराजकता से पहले कर लिए गए। आप जान लीजिए कि कोई अकेला इस दुनिया को नहीं बदल सकता, लेकिन अकेला व्यक्ति लहरें बनाने के लिए पानी में पत्थर जरुर फेंक सकता है। समस्याएं हमारी सोच पर धूल की परतें चढ़ाती जाती है। हम भूल जाते हैं कि जिस दुनिया को हमने बनाया है, वह हमारी सोच की एक प्रक्रिया है। हमारी सोच को बदले बिना इसे बदला नहीं जा सकता और अंत में मैं अपने अमरीकी प्रवास का एक दिलचस्प अनुभव बता दूं कि अमेरिका में सभी बड़े बदलाव खाने की मेज पर शुरू होते हैं।