ग्रंथ का मूल स्वरूप सत्यम परम् धीमहि पर आधारित है जिसे कोई भी सुन सकता है : आचार्य अवस्थी

ग्राम खड़ीत में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस हुई धुंधकारी और गौकर्ण की कथा

भिण्ड, 06 मई। अटेर क्षेत्र के ग्राम खड़ीत में कृषि फार्म मैन रोड पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथावाचक आचार्य मनोज अवस्थी महाराज ने भक्तों को कथा का मर्म समझाते हुए गोकर्ण-धुंधकारी की कथा प्रसंग शुरुआत की।
आचार्य मनोज अवस्थी जी ने समझाया कि किस तरह प्रभु की भक्ति भक्तों को सहज भाव से प्राप्त हो सकती है? पं. आत्माराम को संतान नहीं हो रही थी तो एक महर्षि के द्वारा फल प्रदान किया गया और महर्षि ने कहा कि यह फल पत्नी को खिलाना, संतान सुंदर और श्रेष्ठ होगी पत्नी ने अपनी बहन के बहकावे में आकर वह फल गाय को खिला दिया, गाय के खाने के बाद गाय माता ने एक बछड़े को नहीं एक पुत्र को जन्म दिया, उसके कान बड़े थे, गाय की तरह गाय माता का पुत्र मनुष्य के संतान के रूप में हुई, क्योंकि मनुष्य संतान होने के नाते कान उसके गाय की तरह बड़े थे, तो उस बालक का नाम विद्वानों ने गोकर्ण रख दिया और जो महात्मा जी द्वारा दिया फल नहीं खाया, वह अपनी बहन के ब्यूह में फंसकर अपनी बहन की संतान लेकर उसका नाम धुंधकारी रखा। धुंधकारी का मतलब बदली छा जाना, संशय हो जाना, भ्रम में चले जाना और धुंधकारी आतताई बन गया। सारे पाप कर्म करने लगा और अंत में अपने कुकृत्य द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ और प्रेत योनि में जन्म हुआ। धुंधकारी का भाई अपने घर में सोया रहता था, तभी प्रेत धुंधकारी ने आवाज लगाई कि भाई मुझे इस योनि से छुड़ाओ। गौकर्ण त्रिकाल संध्या की पूजा करते थे। तभी सूर्यनारायण भगवान से पूछते हैं कि इसके लिए क्या उपाय करना पड़ेगा। सूर्यनारायण ने कहा कि तुम सात गांठ बांस मंगाओ और भागवत का आयोजन करो। हर दिन बांस की गांठ धीरे-धीरे फट जाती है, जो सात दिन फटती है। तब पवित्र होकर धुंधकारी एक दिव्य रूप धारण करके सामने खड़ा हो जाता है।


भागवत कथा का आयोजन श्रीश्री 108 सुंदरदास जी महाराज चित्रकूट धाम के आशीर्वाद से कटारे परिवार के श्याम सुंदर कटारे द्वारा कराया जा रहा है, जिसके परीक्षित अवधेश कटारे हैं। भागवत कथा का रसपान करने दूर दराज से आए अतिथियों के साथ-साथ सैकड़ों की संख्या में आस-पास के गांव के लोग उपस्थित रहे।