घुली है यहां हवाओं में नफरतें, चलो चाहत की खुशबू बिखेर दें

महिला काव्य मंच ग्वालियर इकाई मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न

ग्वालियर, 01 जुलाई। महिला काव्य मंच ग्वालियर इकाई की जून माह की मासिक गोष्ठी का आयोजन व्हाट्सएप समूह पर आडियो वीडियो के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम का आयोजन महिला काव्य मंच ग्वालियर इकाई की अध्यक्ष डॉ. निशी भदौरिया ने डॉ. ज्योत्स्ना सिंह के सानिध्य में किया। मंचस्थ अतिथियों में अध्यक्षीय आसंदी पर डॉ. प्रीति प्रवीन खरे प्रदेश अध्यक्ष मकाम,
मुख्यअतिथि डॉ. ज्योति उपाध्याय, विशिष्ट अतिथि सुषमा खरे जबलपुर इकाई अध्यक्ष मकाम, कार्यक्रम संरक्षिका सुबोध चतुर्वेदी, कार्यक्रम संचालिका सीता पवन चौहान, आभार पुष्पा मिश्रा आनंद द्वारा प्रकट किया गया। सर्वप्रथम सरस्वती वंदना मधुर स्वर में प्रतिभा द्विवेदी ने प्रस्तुत की, इसी क्रम सभी बहनों ने अपनी-अपनी श्रेष्ठ रचनाएं बड़े आनंद और उत्साह के साथ पटल पर प्रस्तुत कीं। जिससे पटल पर रौनक छा गई। सभी बहनों की मनमोहक प्रस्तुतियां रहीं। रसात्मकता से भरपूर काव्य पाठ महफिल की झलक कुछ इस तरह से है-
डॉ. प्रीति प्रवीण खरे ने काव्य गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए अपनी रचना यूं सुनाई- माहिया के माध्यम से, तुम दरस दिखा जाना। हाल बता जाना एक आस जगा जाना।। सुषमा खरे जबलपुर ने मां शेरावाली का आह्वान यूं किया- माँ ओ माँ मेरी माँ शेरावाली है, माँ बड़ी दयालु है माँ बड़ी कृपालु है। डॉ. ज्योति उपाध्याय ने अपनी कविता यूं सुनाई- जिन्दगी यू हमारी महकती रहे। प्यार बनके यूं सजती रही।। सुबोध चतुर्वेदी ने भी रचना यूं प्रस्तुत की- विवाह के पहले उसका अलग था कमरा, अलग थी, अलमारी, मेज, कुर्सी।


श्रीमती रचना पटवर्धन ग्वालियर ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा- कभी-कभी पंछी बन मेरा, मन कहता उड़ मस्त गगन में। खोल परों को अपना पूरे, सपनें अपने पूरे कर लें।। शिमला शर्मा ‘लक्ष्मीप्रिया’ ग्वालियर ने अपनी रचना यूं सुनाई- ये रात है मिलन की, है चांदनी खिली। है इश्क भी जवां तुम छत पर मिला करो।। सासें बढ़ी हुई यो धड़कन ये तेज है। साजन मुझे सदा बांहों मे भरा करो।। रजिया वेगम ने भी स्वर में स्वर यूं मिलाया- मिलन आपसे है हमारा जरूरी। तभी हो सकेगी सनम साध पूरी।। मुश्किल सा लगता वो संभव दिखे है। मुलाकात हो पूर्ण जो अब तक अधूरी।।
सीता पवन ग्वालियर ने अपनी कविता यूं सुनाई- रखती धारण धैर्य है, रखती निज विश्वास। कठिन समय में भी रखे, नारी मन में आस।। चंदा गुप्ता ‘नेह’ राम भजन यूं सुनाया- मन भजो राम का नाम, छोड़ मोह, अभिमान जय बोलो श्रीराम की, जय जय श्री हनुमान। प्रो. मीना श्रीवास्तव पुष्पाशीं ने झांसी की रानी को यूं याद किया- लेकर चली तलवार रानी प्राण हरने के लिए। झांसी हमारा राज है आजाद करने के लिए।। पुष्पा मिश्रा आनंद ने अपनी कविता यूं सुनाई- इंद्रधनुष बादल में बन गए, पवन चले पुरवइया। पानी बरसे ना धरती पर, प्यासी धरती मैया।। डॉ. निशी भदौरिया ने अपनी देशभक्ति कविता यूं पढ़ी- तिरंगे को सलामी जब मैं दूंगा जोश में भरकर।जय हिंद का नारा तभी उठकर लगा देना।।
अस्टिेंट प्रोफेसर डॉ.ज्योत्स्ना सिंह ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा- घुली है यहां हवाओं में नफरतें, चलो चाहत की खुशबू बिखेर दें। गुलजार हो जाये हर एक दिल, चलो मशविरे इन गुलाबों से ले लें।। प्रतिभा द्विवेदी ने अपनी कविता यूं गुनगुनाई- जो टेखाकर दिन ढला, आंसू पीकर रात।
सहती जाए जिन्दगी, काल कुठाराघात। मनीषा गिरि ‘मनमुग्ध’ ने भी अपनी कविता यूं सुनाई- देखो मैंने नहीं देखा उसे आते हुए। देखो मैंने नहीं देखा उसे तेरे शरीर को तपाते हुए।। विजया ठाकुर रायपुर छत्तीसगढ़ ने अपनी कविता यूं पढ़ी- सखियों के संग रास रचाते, सांवरिया चितचोर दुलारे। चहक उठा मन का वंशीवट, वृन्द गान करते गलियारे।। उमा उपाध्याय ने अपनी कविता यूं सुनाई- जिसे सरोकार ना हो, किसी ख्वाहिश से, जो जी रहा हो, बस संपूर्णता से यदि नहीं, तो अफसोस क्यों? उस आंशिक रिक्तता का। शिल्पी पचौरी ने भी स्वर में स्वय यूं मिलाया- मिलेगी तभी तुमको तारीफियां, काम में रखोगे ज़ब बारीकियां, सोच समझकर रखना कदम, कब तलक करोगे नादानियां। आरती आचार्य ने अपनी रचना यूं पढ़ी- जीवन की इस धूप-छांव में बदले है जीने के मायने। कितना बदला है ये समाज ,कितने बदले हैं आइने।। विभा भटोरे ने अपनी कविता यूं सुनाई- सांवले सलोने प्यारे, मीत मेरे मतवाले। सबको मोह ते, बड़े वो पालनहारे।। कुमारी चंदादेवी स्वर्णकार ने अपनी रचना यूं पढ़ी- संवेदनाएं यदि नहीं होते, तो मानव मानवता का पाठ सिख पाता। संवेदनाएं ना होती तो कोई देश के नाम पर अपनी जानना लुटाता।।
इस मौके पर अनेक कवित्रीयों एवं श्रोता बहनों ने मंच पर उपस्थित होकर काव्य गोष्ठी की भूरि-भूरि प्रशंसा की।