– राकेश अचल
हैरान मत होइए, मेरे निशाने में आज भी कोई बदलाव नहीं है। मैं आज भी अपने प्राणप्रिय प्रधानमंत्री जी की ही बात कर रहा हूं। आपको पढना हो तो पढिए और न पढना हो तो मत पढिए। मुझे अपने भाग्यविधाता उन भटके हुए बादलों की तरह नजर आ रहे हैं जिन्हें अपने गरजने और बरसने के ठिकानों का पता नहीं है। पहलगाम के नृशंस हादसे के बाद मोदी जी से उम्मीद थी कि वे रात आठ बजे दूरदर्शन पर दर्शन देंगे या फिर पहलगाम में मौकाए वारदात पर नजर आएंगे, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। वे आवारा बादलों की तरह उडकर सीधे बिहार पहुंच गए और बिहार के मधुबनी में मैथली में नहीं अंग्रेजी में बरसे और जमकर बरसे।
ये कोई व्यंग्य की बात नहीं है। ये हकीकत है और पूरे देश और दुनिया ने मोदी जी को मधुबनी में गरजते हुए देखा है। उन्होंने मधुबनी में हिन्दी में या मैथली में नहीं बल्कि अंग्रेजी में भाषण दिया। मंच चुनाव की सभा का था। सामने गैर अंग्रेजी समझने वाले लोग थे लेकिन मोदी जी अंग्रेजी में बरसे। उन्होंने आतंकवादियों को चेतावनी दी कि ‘वी टार्गेटिड, आइडेंटिफाइड एंड पनिश्ड।’ मुझे लगा कि मोदी जी को पता है कि पहलगाम में नृशंस हत्याकाण्ड करने वाले आतंकवादी हिन्दी या उर्दू या मैथिली नहीं जानते, वे केवल अंग्रेजी जानते हैं इसलिए उन्हें अंग्रेजी में ही धमकाया जाए। मुमकिन है कि मोदी जी भूल गए हों कि वे मधुबनी की चुनावी सभा में नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में बोल रहे हैं और वहां अंग्रेजी में ही बोलने से दुनिया उनकी बात समझेगी।
मुमकिन है कि मोदी जी का प्रयोग कामयाब भी हो जाए। उनकी चेतावनी को आतंकवादी और पाकिस्तान दोनों समझ गए हों और भारत की ओर से संभावित जबाबी कार्रवाई से बचने में जुट गए हों। पाकिस्तान को पता है कि मोदी जी खाली बादल नहीं हैं, वे गरजे हैं तो कहीं न कहीं बरसेंगे भी। मोदी जी को बरसना भी चाहिए अन्यथा जनता उन्हें और उनकी पार्टी को एकदम से खारिज कर देगी। मोदी जी के सामने हिन्दुओं के जख्मों पार मरहम लगाने के साथ ही पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी से भी बडी जंग छेडना होगी। बात अब जंग से कम पर हो ही नहीं सकती।
भारत सरकार द्वारा पहलगाम हत्याकाण्ड के फौरन बाद उठाए गए कदमों से पाकिस्तान में बौखलाहट है। भारत ने सिंधु जल समझौता रद्द किया तो पाकिस्तान शिला समझौता रद्द करने की धमकी दे रहा है, हालांकि अभी उसने ऐसा किया नहीं है। हम तो कहते हैं कि पाकिस्तान को जो करना है वो करे, लेकिन हमें जो भी करना है हम भी करें और निर्णायक ढंग से करें। हम पहलगाम हत्या काण्ड को बिहार चुनाव के लिए मुद्दा बनाने की गलती करें। लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा। मोदी जी ने तमाम रोका-टोकी के बावजूद पहलगाम हत्याकाण्ड को चुनावी मुद्दा बना ही दिया। वे बिहार में भी इस नृशंस हत्याकाण्ड के सहारे ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी पूरे 11 साल से ध्रुवीकरण में लगी है। ध्रुवीकरण भाजपा और प्रधानमंत्री जी का प्रिय खेल है। वे पहलगाम हत्याकाण्ड के बाद पूरे देश को एक ध्रुव पर लाने के बजाय केवल हिन्दुओं का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। जन भावनाओं के विरुद्ध जाकर मोदी जी और उनकी सरकार जिस तरह से ध्रुवीकरण का खेल खेल रही है उससे आतांकवाद के खिलाफ भारत की लडाई कमजोर हो सकती है। मोदी जी को अभी एक देश, एक चुनाव की तरह पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करना चाहिए थी लेकिन हो उल्टा रहा है। हत्याकाण्ड पाक सेना द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादियों ने किया और सजा दी जा रही है भारत के मुसलमानों को, जबकि पहली बार देशभर में मुसलमान तक इस हत्याकाण्ड के खिलाफ एकजुट नजर आ रहे हैं।
मैंने पहले दिन ही ये आशंका जताई थी कि भाजपा और हमारी लंगडी सरकार पहलगाम हत्या काण्ड का इस्तेमाल चुनावों के लिए ठीक उसी तरह करेगी, जैसे की उसने पुलवामा काण्ड का किया था। पुलवामा के शहीदों की तस्वीरें चुनावी सभाओं में खुलकर लगाई गई थीं। न केन्द्रीय चुनाव आयोग सरकार और भाजपा को रोक पाया था और न अदालतें। आज भी यही सब हो रहा है। खुद मोदी जी ने पहलगाम हत्याकाण्ड का इस्तेमाल बिहार विधानसभा के चुनावों के लिए किया। बेहतर होता कि वे बिहार विधानसभा चुनावों को भूलरकर पहलगाम हत्याकाण्ड का जबाब देने में अपना समय खर्च करते, किन्तु ऐसा नहीं किया गया। मोदी जी ने एक बार फिर अपने मन की कर दी। बधाई उन्हें, क्योंकि आलोचनाओं और विरोध का तो मोदी जी पर कोई असर पडता ही नहीं है।
मोदी जी का तो ट्रेक रिकार्ड रहा है कि वे जहां जाना होता है, वहां भूलकर भी नहीं जाते और जहां नहीं जाना चाहिए वहां सबसे पहले जाते हैं। आपको याद होगा कि ढाई साल से जल रहे मणिपुर में मोदी जी नहीं गए तो नहीं गए। उन्हें मुर्शिदाबाद और मालदा के दंगों के बाद बंगाल नहीं जाना था, वे नहीं गए। उन्हें पहलगाम जाना चाहिए था किन्तु नहीं गए। अब ये ड्यूटी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी निभा रहे हैं। राहुल अमरीका से वापस लौटे हैं और सीधे श्रीनगर जा रहे हैं। उनके जाने से क्या होगा और क्या नहीं ये वे जानें, लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि राहुल ने अक्ल से काम लिया है। वे भी श्रीनगर न जाकर मधुबनी से पीडितों के प्रति अपनी सहानुभूति का प्रदर्शन कर सकते थे, लेकिन वे मधुबनी नहीं गए। वे मोदी जी का पीछा नहीं कर रहे हैं, फिर भी पूरी भाजपा जितना पाकिस्तान से नहीं डरती, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस और राहुल गांधी से डरती है।
अंततोगत्वा मुझे उम्मीद है कि मोदी जी पाकिस्तान को सबक जरूर सिखाएंगे। हम सब उनके साथ हैं, क्योंकि मसला देश की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता से जुडा है। इस मामले पर हम कोई राजनीति नहीं करना चाहते, किसी को भी नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी को भी नहीं और मोदी जी को भी नहीं। किन्तु मुझे पता है कि मेरे जैसे अदने से लेखक की बात मानता कौन है? न मानें, लेकिन मैं अपना काम कर रहा हूं और मैं कोई भटका बादल नहीं हूं कि गरजूं कहीं और और बरसूं कहीं और।