@ राकेश अचल
अपने ही नौकर के साथ व्यभिचार के आरोपों से भाजपा नेता राघव जी को अंतत: क्लीनचिट मिल ही गई। ये क्लीनचिट सरकार ने नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी उस अदालत ने दी है जो अपने तमाम आधे-अधूरे फैसलों के लिए भी जानी जाती है। जिसमें आज भी लाखों के जघन्य अपराधों के मामले वर्षों से लंबित पड़े हुए हैं।
भाजपा के 90 साल के नेता राघवजी अब चैन से विदा हो सकेंगे। उनके चरित्र पर उनके ही एक नौकर ने दाग लगाया था, जिसे साफ़ करने के लिए राघवजी ने पूरे 11 साल कानूनी लड़ाई लड़ी। इन 11 सालों में उनके ऊपर क्या बीती ये या तो वे खुद जानते हैं या ऊपर वाला। राज्य सभा, लोकसभा और मप्र विधानसभा के सदस्य रह चुके राघव जी भाजपा के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं जिन्हें दुष्कर्म के आरोपों का सामना करना पड़ा है। राघव जी से पहले मप्र में ही संघ के एक बड़े नेता के खिलाफ भी कमोवेश इसी तरह की सीडी सार्वजनिक हुई थीं, लेकिन उन्हें अदालतों के चक्कर नहीं काटना पड़े थे। मप्र के बहुचर्चित ‘हनी ट्रेप’ काण्ड में तो कोई पकड़ा ही नहीं गय। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मिलकर इस मामले पर राख डाल दी।
आपको बता दें कि मप्र सरकार में वित्तमंत्री रहे राघवजी को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने राघवजी को उनके नौकर के साथ कुकर्म करने के मामले में क्लीन चिट दे दी है। मामले में 11 साल बाद फैसला आया है। इससे पहले मप्र हाईकोर्ट ने भी राघवजी को निर्दोष बताते हुए एफआईआर खारिज करने के आदेश दिए थे। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पूर्व वित्त मंत्री राघवजी ने कहा कि आखिरकार सत्य की विजय हुई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विदिशा शहर के कई समाजसेवियों और वरिष्ठ नागरिकों ने राघवजी के निवास पर पहुंचकर उन्हें शॉल और श्रीफल देकर उनका सम्मान किया। जनता को अब मानना ही पड़ रहा है कि हमारे यहां अदालतों में देर है अंधेर बिलकुल नहीं।
भाजपा में कोई नेता दोषमुक्त हो या जमानत पर आए तो उसका सम्मान जरूर किया जाता है। केवल मप्र में ही नहीं बल्कि जहां-जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां-वहां यही रिवायत है। गुजरात में यदि किसी अल्प संख्यक महिला से दुष्कर्म के आरोपियों की सजा माफ़ी के बाद उनका अभिनंदन होता है तो दक्षिण में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के आरोपियों को भी सम्मानित किया जाता है। हमारे बिरादरी के एक पत्रकार को ग्वालियर पुलिस ने वर्षों पहले देह व्यापार के एक मामले में पकड़ा था। अदालत से दोषमुक्त होने के बाद कलचुरी समाज ने उनका वैसा ही अभिनंदन किया था जैसा राघवजी का किया गया।
देश में न्याय की देवी की आंखों से जबसे काली पट्टी हटाई गई है तब से ही राघवजी जैसे अनेक लोगों की किस्मत चेत गई है। देश की सबसे बड़ी अदलात को बुलडोजर के मामले में अपने मान-अपमान की फ़िक्र नहीं है, लेकिन राघवजी जैसे उन बूढ़े भाजपा नेताओं के मान-अपमान का पूरा ख्याल है जिनके पांव कब्र में लटक रहे हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 70154 से ज्यादा है किन्तु माननीय अदालत ने राघवजी को पहले सुनकर राहत दी। हमें यानि देश को इसी तरह के त्वरित न्याय की जरूरत है। देश में छोटी-बड़ी अदालतों में साढ़े चार करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। लेकिन सभी आरोपियों का नसीब राघवजी जैसा तो नहीं है।
राघवजी भाजपा के उन नेताओं में से हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के लिए विदिशा सीट छोड़ चुके थे। पार्टी में उनका बड़ा सम्मान भी था, लेकिन राघवजी पर आरोप लगा था कि उन्होंने अपने नौकर के साथ अप्राकृतिक कृत्य किया है। जुलाई 2013 में आरोप लगाने वाले नौकर ने हबीबगंज थाना भोपाल में शिकायत देकर एफआईआर कराई। सरकार से मंजूरी मिलने के बाद मामले की जांच शुरू की गई। आरोप लगने के बाद राघवजी को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 5 जुलाई 2013 को उन्हें भोपाल से पुलिस ने गिरफ्तार किया। लेकिन, करीब दो साल तक पुलिस की ओर से मामले में चालन पेश नहीं किया गया।
बुढ़ापे पर दाग लगने के बाद दिसंबर 2015 में पुलिस ने कोर्ट में चालान पेश किया। इसके बाद राघवजी की ओर से मप्र हाईकोर्ट में एफआईआर खारिज करने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई। याचिका लंबे समय तक पेडिंग में पड़ी रही। करीब आठ साल बाद याचिका पर सुनवाई हुई। एक ही सुनवाई में हाईकोर्ट में फैसला सुनाया और एफआईआर निरस्त कर दी। 44 पेज के फैसले में हाईकोर्ट में मामले को राजनीति और द्वेषपूर्ण बताते हुए एफआईआर खारिज करने का आदेश दिया। लेकिन आरोप लगाने वाले नौकर ने भी हार नहीं मानी। वो हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा। आखिर नौकर किसका था ?
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ पीड़ित नौकर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पीड़ित ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए होईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की। तीसरी सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।उनका कहना था कि मुझे षड्यंत्र के तहत यौन शोषण के मामले में फंसाया गया था, जिससे मेरी सामाजिक और 60 साल के राजनीतिक जीवन पर धब्बा लग गया था। मुझे भारत के कानून पर भरोसा था, उस भरोसे की जीत हुई। अगर, इस बीच मेरी मृत्यु हो जाती तो यह कलंक कभी न मिटता। अब राघव जी चैन से रघुपति राघव राजा राम भजन गाते हुए मोक्ष पा सकते हैं।
कांग्रेस हो या भाजपा सभी दलों में अमरमणि त्रिपाठी जैसे लोग हैं। लेकिन राघवजी जैसे खुशनसीब नेता कम ही हैं। राजनीति में व्यभिचार एक आम समस्या है लेकिन बहुत कम मामले पुलिस और अदालत की दहलीज तक पहुंच पाते हैं और सुप्रीम कोर्ट तक तो अपवाद स्वरूप ऐसे मामले पहुंचते हैं। इसलिए वे तमाम नेता जो यौनाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं वे उम्मीद कर सकते हैं कि किसी न किसी दिन उनको भी क्लीन चिट मिल सकती है। क्लीन चिट, नकल की चिट से ज्यादा महत्वपूर्ण है । आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी हाल ही में ऐसी ही एक क्लीनचिट पाकर मिस्टर क्लीन घोषित किए गए हैं। मुझे हैरानी है कि राघवजी जिस भाजपा के सदस्य थे उस भाजपा में तो अच्छे-अच्छे दाग धुल जाते हैं, फिर वे कैसे रह गए थे। भाजपा चाहे तो अब राघवजी की सदस्यता का नवीनीकरण कर सकती है। हमारी सहानुभूति राघव जी के साथ भी है और उस नौकर के साथ भी जो देश की सबसे बड़ी अदालत में जाकर भी हार गया। जय श्रीराम|