– राकेश अचल
आइना टूटे या दिल, पहाड टूटे या पेड सब अशुभ ही माना जाता है। इसीलिए एक हफ्ते से लगातार टूट रहे शेयर बाजार को भी हम अशुभ ही मानकर चल रहे है। शेयर बाजार का टूटना निवेशकों के लिए शुभ है और न कारोबारियों के लिए। सरकार के लिए तो टूटना बिल्कुल शुभ नहीं है। शेयर बाजार के टूटने का सीधा-सीधा मतलब निकाला जाता है कि कहीं न कहीं हमारी सरकार टूट रही है। शेयर बाजार के टूटने से तीन दिन में ही निवेशकों को 22 लाख करोड का चूना लग गया।
हिन्दुस्तान हो या पकिस्तान। दुनिया का कोई भी हिस्सा हो, इस टूटन से अछूता नहीं है। बीमारी से आम आदमी का जिस्म टूटता। नेताओं की वादा-खिलाफी से मतदाता का दिल टूटता है। दिल नेता ही नहीं, प्रेमी-प्रेमिका भी एक-दूसरे का गाहे-बगाहे तोडते ही रहते हैं। वर्षा ऋतु में पहाड टूटते हैं। नदियों के तटबंध टूटते हैं। इसे कहर टूटना कहा जाता है। घर में किसी तस्वीर का फ्रेम हो या कप बसी टूटती है तो मां इसे अशुभ मानती थी। मैं तो उन लोगों में से हूं जो टूट-फूट को शुभ या अशुभ नहीं बल्कि एक नैसर्गिक क्रिया मानते हैं।
आपको याद है कि 1947 में जब भारत टूटा था और पाकिस्तान बना था, तब असंख्य लोगों के दिल टूट गए थे। इस टूटन को हमारी सरकार और देश की ही नहीं दुनिया की सबसे बडी पार्टी आज भी महसूस करती रहती है। इस टूटन के लिए महात्मा गांधी को कोसने वालों की कमी नहीं है। आखिर टूटने का दोष किसी पर तो मढा जाना है। इसके लिए महात्मा गांधी से अच्छा कोई दूसरा नाम हो ही नहीं सकता। 1971 में पाकिस्तान को भी टूटना पडा, इसके लिए महात्मा गांधी नहीं बल्कि श्रीमती इन्दिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया। भारत ही नहीं दुनिया में तमाम देश टूटे हैं। कोरिया टूटा, जर्मनी टूटा रूस टूटा, चीन टूटा। टूटने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त है। भारत में अतीत में हुई टूट-फूट से नाखुश लोगों ने अयोध्या में एक निर्जीव मकबरे को तोडकर ही अपना गुस्सा ही नहीं निकाला बल्कि शहीदों में अपना नाम लिखवा लिया। इस इमारत के टूटने से भी करोडों के दिल टूटे थे लेकिन किसी ने इस टूटन की आवाज को सुना नहीं।
पिछले दस साल में देश में जितने राजनीतिक दल और गठबंधन टूटे उतने पहले कभी नहीं टूटे। राजनीतिक दलों में कांग्रेस न जाने कितनी बार टूटी। समाजवादी दल तो टूटने के लिए ही बना है। सत्तारूढ भाजपा भी बीच-बीच में टूटी रहती है लेकिन जल्द ही सम्हल भी जाती है। भाजपा ने तो जिस क्षेत्रीय दल को अपना बगलगीर बनाया उसे किसी न किसी मोडपर टूटना ही पडा। हाल ही में एनसीपी और शिवसेना टूट कर दो खण्ड हो चुकी है। गठबंधन तो टूटने के लिए ही बनते हैं। जैसे भांवर पडने के बाद मौर को नदी में विसर्जित कर दिया जाता है उसी तरह गठबंधनों को सरकार बनने के बाद तोड दिया जाता है।
सिनेमा वाले तो न जाने कितनों का दिल तोडते रहते हैं। सिनेमा में हीरो-हीरोइनें आपस में ही अपने दिलों की तोडफोड नहीं करते बल्कि अपने चाहने वालों का दिल भी तोड देते हैं। दिल तोडने की पुरानी परिपाटी है। आप इसे सनातन भी कह सकते हैं। हमारे यहां त्रेता में राम ने परशुराम को प्रिय शिव का धनुष तोड दिया था। उन्हें इसके पुरस्कार में सीता मिल गई थीं, किन्तु सबके भाग्य में तोड-फोड करने पर इनाम-इकराम नहीं होता। दिलीप कुमार का दिल मधुबाला ने तोडा था तो अमिताभ बच्चन का दिल रेखा ने तोड दिया था। दिल तोडना हमारी फिल्मी दुनिया का एक रोग है। इसका दुनिया में कहीं, कोई इलाज है नहीं।
देश-दुनिया में जब भी चुनाव होते हैं और उनके नतीजे आते हैं तो न जाने कितने दिलों को तोड देते है। किसी का सपना टूटता है, तो किसी का अपना टूट जाता है। टूटने के बाद जोडना आसान नहीं है। जुड भी जाए तो टूटन के निशान हमेशा टूटने की याद दिलाते रहते हैं। इसलिए कोशिश की जाना चाहिए की कहीं, कोई टूट-फूट हो ही नहीं। बच्चों का दिल उनके खिलौनों में बसता है। कोई खिलौना टूटता है तो बच्चों का नाजुक दिल टूट जाता है। हमारे यहां तो गया जाता है- ‘दिल का खिलौना है टूट गया, कोई लुटेरा आके लूट गया’ या ‘खिलौना जान कर तुम तो मेरा दिल तोड जाते हो’ टूटते तो रिश्त भी हैं, भले ही वे खून के रिश्ते क्यों न हों? आप टूटने से किसी भी चीज को बचा सकते हैं, लेकिन इसका एकमात्र उपाय है सावधानी। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।
टूटना इत्तफाक भी है और साजिश भी। मिसाल के तौर पर इस बार मुल्क में एक के बाद एक दर्जनों पुल टूट गए। ये पुल भ्रष्टाचार ने तोडे। महंगाई बढती है तो आम आदमी की कमर टूटी है, लेकिन महंगाई बढाने के लिए जिम्मेदार सरकार टूटी कमर पर अच्छे दिनों की मराहम लगा देती है। आम आदमी कुछ देर के लिए कमर टूटने का दर्द भूल जाता है, लेकिन जैसे ही दोबारा कसक होती है आम आदमी कमर तोडने वालों की कमर तोड देती है अपने वोट से। हमारा जिस्म तो टूटने के लिए ही बना है। बुखार से पूरा जिस्म टूटता है। लेकिन पुलिस आपकी पसलियां भी तोड सकती है और दांत भी। टूटने का कोई मुआवजा नहीं मिलता। ज्यादा से ज्यादा आप गाना गा सकते हैं ‘दिल का खिलौना है टूट गया’।
दरअसल टूटना या तोडना एक ललित कला है। सबको नहीं आती और जिसे आती है वो किसी को सिखाता नहीं है। लोग अपने आप ही सब कुछ सीखते हैं। टूटने वाली चीजों की फेहरिश्त बहुत लम्बी हो सकती है। आप इसे अपनी मर्जी से घटा -बढा सकते हैं। अब जैसे मैंने टूटने वाली फेहरिश्त में करार को शामिल नहीं किया था। करार होते ही टूटने के लिए है। करार दो व्यक्तियों के बीच हो सकते हैं, दो दलों के बीच हो सकते हैं, दो या दो से ज्यादा मुल्कों के बीच हो सकते हैं, बल्कि होते आए हैं और टूटते भी आए हैं। कीर्तिमान भी टूटते हैं और आदमी का घमण्ड भी। शादियां भी टूटी हैं और जीवन की डोर भी, यानि जोड-तोड का ये सिलसिला अनंत है। इसके ऊपर कोई पूर्ण विराम नहीं लगाया जा सकता। लगाया भी नहीं जाना चाहिए। आज आप जब ये टूट-फूट गाथा पढ रहे होंगे तब हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की जनता न जाने कितने नेताओं का दिल तोड चुकी होगी। बाहरहाल ‘शीशा हो या दिल हो, टूट जाता है’ इसलिए जितना मुमिकन है टूटने वाली चीजों को सम्हालकर रखिए।